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एकता का प्रतीक है झोलहू बाबा का मेला

निघासन (लखीमपुर) तहसील मुख्यालय से मात्र छह किमी की दूरी पर रकेहटी के उपग्राम में लगने वाला झोलहू

By Edited By: Published: Thu, 20 Nov 2014 09:29 PM (IST)Updated: Thu, 20 Nov 2014 09:29 PM (IST)
एकता का प्रतीक है झोलहू बाबा का मेला

निघासन (लखीमपुर)

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तहसील मुख्यालय से मात्र छह किमी की दूरी पर रकेहटी के उपग्राम में लगने वाला झोलहू बाबा का मेला एकता की जीती-जागती मिसाल है। इसमें खीरी के अलावा दूसरे जनपदों के व्यापारी भी दुकानें आती हैं। यह मेला ताजियादारों द्वारा मान्यता के रूप में लगता है जो कि करीब सप्ताह भर चलता है। मेले में पड़ोसी मित्र देश से काफी संख्या में अकीतमंद आकर मेले की रौनक बढ़ाते हैं।

मालूम हो कि तहसील मुख्यालय से छह किमी दूर रकेहटी के उपग्राम झोलहूपुरवा नामक एक गाव में भले ही लगता हो, लेकिन इस मेले की रौनक किसी प्रदेश स्तर से कम नहीं होती है। मान्यता है कि करीब दो सौ वर्ष पूर्व यह सरयू नदी का किनारा था, जहां पर एक संत निवास करते जोकि क्षेत्र लोगों की दुख-सुख में हाथ बंटाकर उनको ज्ञान दिया करते थे। एक बार क्षेत्र मे भयंकर एक विशेष प्रकार की बीमारी ने पूरे क्षेत्र के लोगों को अपने आगोश में लेकर उन्हें घेर रखा था। इसका शिकार क्षेत्र का एक न एक आदमी रोज हो जाता था और उसकी जान पर बन आती थी। इस जानलेवा बीमारी से क्षेत्र के जानवर व इंसानों को धीरे-धीरे काल के गाल मे समाने लगे थे। पूरे इलाके में त्राहि-त्राहि मच गयी। विकराल समस्या को लेकर क्षेत्रावासी संत बाबा के पास गये और समस्या बतायी तो संत बाबा ने उपाय बताया और सरयू नदी में पहले बाबा ने स्नान किया। उसके बाद गाव वालों को स्नान करने के लिए कहा उसके बाद गाव में फैली भयंकर महामारी दूर हो गयी। उसके बाद गांव का नाम झोलहूपुरवा पड़ गया। धीरे-धीरे संत बाबा झोलहू बाबा अंतरध्यान हो गये, जिससे संत बाबा का वही मजार बना दी गयी, जो झोलहू बाबा के नाम से धीरे-धीरे प्रसिद्ध हो गया और मजार के प्रति लोगों की आस्था इतनी बढ़ी कि वह मेले के रूप में बदल गयी और उसी समय से इस स्थान पर बाबा की याद में मान्यता के ताजिया का मेला लगने लगा। यह मेला करीब दो सौ साल पूराना लगता है, जहां पर गाव के ताजिया चौक पर रखे जाते हैं। वहीं बनी बाबा झोलहू दास की बनी मजार पर लोग चादर व ताजिया चढ़ाते हैं।

प्रतिदिन होता है लाखों का जुआ: मेले में जुआ खेलने का चलन काफी प्रचलित है। जहां प्रतिदिन लाखों का खेल भी होता है और दूर से लोग मेले में जुआ खेलने आते हैं। बाबा के दरबार में जुआ खेलकर अपनी किस्मत की आजमाइश भी करते हैं।


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