'मां हिंदी के साधकों की धरा रहा खीरी जिला'
लखीमपुर : अपना यह जिला मां हिंदी के साधकों, राष्ट्र धर्म के आराधकों, यहां की सनातन चेतना, सांस्कृतिक जड़ों के उन्नायकों का गढ़ रहा है। माना जाता है गोस्वामी तुलसीदास ने अपनी राम चरित मानस के सुंदर कांड की रचना धौरहरा के रामबटी स्थान पर की थी। यह जिला राष्ट्रकवि पंडित बंशीधर शुक्ला की साहित्य साधना का केंद्र रहा। घोर गुलामी के युग में पूरी निर्भीकता, निष्पक्षता, वैचारिक दृढ़ता से उन्होंने किसानों की समस्याएं उस पर किए जाने वाले जमीदारों के अत्याचार, दमन, शोषण की आवाज पूरी मुखरता से उठाई। उनकी अगली पीढ़ी में सत्यधर शुक्ला एवं तीसरी पीढ़ी में गौरव शुक्ला, पुनीत शुक्ला, विनीत शुक्ल उसी परंपरा के संवाहक रहे। यह जिला ओज के सशक्त राष्ट्रीय हस्ताक्षर डॉ. बृजेंद्र अवस्थी की रचनाओं से अभिसिंचित, अभिमंत्रित रहा। यही भुइफोरवानाथ मंदिर के पास गली में छोटे से घर में रह कर डॉ. बृजेंद्र अवस्थी ने विश्व स्तर पर हिंदी का परचम लहराया। यही के भोलानाथ शेखर ने अपनी रचनाओं के माध्यम से हिंदी तथा इस जिले को एक विशिष्ट पहचान दी। जिस पर यह जिला गर्व कर सकता है। इस गौरव की अनुभूति को आगे बढ़ाया शाहाबाद जिला हरदोई से गोलागोकर्णनाथ आये केन ग्रोवर्स नेहरू डिग्री कॉलेज हिंदी विभाग के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. अनंत राम मिश्र ने, जिन्होंने भारतीय नदियों पर आत्म कथात्मक शोध काव्य लिख पूरे देश को एकता के सूत्र में बांधने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उत्तर दक्षिण के सांस्कृतिक साम्य को पूरी कुशलता से प्रस्तुत किया। गोला के ही सियाराम मिश्रा, वेदप्रकाश अग्निहोत्री, उसी यशस्वी परंपरा के संवाहक बने हुए। आधुनिक कवियों में अतुल मिश्रा मधुकर, विजय शुक्ला बादल, विशेष शर्मा, संजीव मिश्रा, व्योम जैसे युवा चेतना का प्रतिनिधित्व करने वाले पूरी तन्मयता, समर्पण एवं मानसिक एकाग्रता से हिंदी की सेवा कर रहे हैं।