..तो क्या आठ ही मरीज हैं इमरजेंसी के लायक
लखीमपुर : जिला अस्पताल में क्या आठ मरीज ही इमरजेंसी सेवाओं के लायक हैं। ये एक ऐसा प्रश्न है जो अस्पताल में आने वाले हर मरीज व तीमारदार के दिमाग में कौंधता है। ब्रिटिश शासन काल से लेकर अब इस अस्पताल में क्या आपात सेवाओं के रोगी बढ़े ही नहीं। चार लाख की आबादी वाले शहर के इकलौते सरकारी अस्पताल में सिर्फ आठ मरीज ही ऐसे हैं जो इमरजेंसी सेवाओं के अधिकारी हैं। इसका जवाब जिला अस्पताल के अधिकारियों के पास भी नहीं है।
जिले के इकलौते सरकारी अस्पताल के इमरजेंसी वार्ड में मरीजों को भर्ती करने के लिए सिर्फ आठ बेड ही हैं। करीब चार लाख की आबादी वाला शहर उस पर इकलौता सरकारी अस्पताल अंग्रेजी शासन काल के इस भवन में आजादी के 68 साल बाद भी इमरजेंसी बेडों की संख्या में कोई इजाफा न होना आश्चर्य तो पैदा ही करता है।
खुदा न खास्ता शहर में ऐसा कोई बड़ा हादसा हो जाए, जिसमें 20 से 30 मरीज आपात सेवाओं के योग्य हों। ऐसे में इस आठ बेड वाले इमरजेंसी कक्ष के अलावा दूसरा इमरजेंसी कक्ष कहां बनाया जाएगा। हालांकि इन परिस्थितियों में कई बार जिला अस्पताल के अधिकारियों द्वारा विभिन्न वार्डो में किसी तरह व्यवस्थाएं कराई जाती हैं, पर विचारणीय बिंदु यह है कि आखिर जुगाड़ के आधार पर इतनी बड़ी जनसंख्या वाले क्षेत्र के सरकारी अस्पताल की गाड़ी कब तक चलेगी। न जगह न संसाधन, चिकित्सकों की कमी के बावजूद किसी तरह सरक रही अस्पताल की गाड़ी के बारे में लोकसभा तथा विधानसभा के चुनाव में कोई मुद्दा उठता नहीं दिखा। 68 साल में एक भी जनप्रतिनिधि ने जिला अस्पताल में न तो वार्ड न ही बेड या सुविधाएं बढ़वाने की कोई जरूरत समझी। इस दौरान कितने ही चिकित्सक व चिकित्साधिकारी सेवा निवृत्त भी हो गए। तीस सितंबर को सेवानिवृत्त होने वाली जिला अस्पताल की सीएमएस डॉ. नीलम श्रीवास्तव बताती हैं कि इमरजेंसी, ओपीडी का एक हिस्सा होती है, जहां तत्काल भर्ती हुए गंभीर रोगियों को प्राथमिक उपचार दिया जाता है। इसके बाद वे अपने संबंधित वार्ड को भेज दिए जाते हैं। वैसे 12 बेड का नया इमरजेंसी वार्ड, हड्डी वार्ड को तोड़ कर बनाया जाना है। शासन से स्वीकृति भी मिल गई है, पर अभी इसमें देर है।