बिजली के लिए छटपटाते रहे मरीज
लखीमपुर : जिला अस्पताल में मरीजों की छटपटाहट का मंजर देखना हो तो रात में आइए जब बिजली चली जाए। गर्मी में 35 डिग्री तक पहुंचता पारा और अंधेरे वार्डो में पंखों की हवा के लिए छटपटाते मरीज रात-रात जागकर पंखा झलते तीमारदार जिला अस्पताल की हालत बयान करने भर को काफी है। जिला अस्पताल में जनरेटर तो है पर चलता नहीं। यदा-कदा दिन में चिकित्सकों के राउंड के वक्त भले घंटे दो घंटे चलाया जाए, लेकिन रात भर अंधेरे में डूबे इस अस्पताल में मरीज व तीमारदारों को रात भी जागकर काटनी पड़नी पड़ती है।
जिला अस्पताल में मरीजों का भर्ती होना आसान काम नहीं है। क्योंकि गर्मी के दिनों में उन्हें फंखे की हवा नसीब हो यह जरूरी नहीं। यहां एक साल पहले नया जनरेटर तो लगाया, लेकिन इसका लाभ आज तक यहां भर्ती मरीजों को नहीं मिला। मालूम हो कि करीब 150 के आस-पास शैय्या वाले इस अस्पातल में कई बार जमीनों पर भी मरीजों को भर्ती कराना पड़ता है। ऐसे में मरीजों को ठंडी हवा तथा रात में आवागमन में लिए बिजली की आवश्यकता भी पड़ती है, लेकिन अंधाधुंध कटौती के दौरान जिला अस्पताल का जनरेटर किसी काम नहीं आता। यह जनरेटर या तो तब चलता है जब डॉक्टर मरीजों को देखने के लिए राउंड पर होते हैं या फिर अस्पताल में कोई वीआईपी भर्ती या उसका दौरा हो। अन्यथा एक छोर से दूसरे छोर तक अंधेरे में डूबे अस्पतल में मरीजों और तीमारदारों की सारी रात गर्मी से उलझते हुए बीतती हैं। सारी-सारी रात अपने बीमार परिवारीजनों को पंखा झलते तीमारदार बताते हैं कि जनरेटर के वे कई रात में ओपीडी में बैठे डॉक्टरों के पास चक्कर काटते हैं, लेकिन कोई परिणाम नहीं निकलता। अखिल पूरी रात खुद ही पंखा लेकर किसी तरह मरीजों को आराम तो देना ही है। अंधेरे में डूबे अस्पातल में कुत्तों के झुंड, आवारा घूम रे गौवंश भी कई बार मरीजों के लिए दिक्कत पैदा करते हैं इससे कई उन्हें चोट भी लग जाती है। अमित कुमार बताते हैं कि अस्पताल में उनके पिता तीन दिन से भर्ती हैं। कभी वह खुद कभी उनके बड़े भाई रात भर जाकर पंखा झलते हैं तब कहीं जाकर वह अपने पिता को आराम दे पाते हैं। हाथीपुर के गुड्डू बताते हैं कि उनकी पत्नी के पैर में चोट लगी है वह यहां भर्ती हैं। चारों तरफ से बंद कमरे हैं। हवा का भी इंतजाम नहीं है। रात में बिजली जाने पर पूरी रात जागना पड़ता है। अनुराग व अभिनव बताते हैं कि बीती रात बिजली जाने पर वह अपनी दादी को पंखा झलकर किसी तरह आराम देते रहे। पूरे अस्पताल में बिजली का कोई इंतजार नहीं है। रात में सो रहे कुत्तों पर अगर पैर पड़ जाए तो काट सकते हैं। बरामदों में घूम रहे छुट्टा गौवंश कई बार तीमारदारों को हुड़ेस देते हैं।
जिला अस्पताल की सीएमएस डॉक्टर नीलम श्रीवास्तव बताती हैं कि अस्पताल में जनरेटर जरूर है पर डीजल के लिए पूरा बजट नहीं मिल पाता। ऐसे में ईधन है वह डॉक्टर के राउंड के समय चलाना जरूरी होता है। कई बार एक्सरे व अल्ट्रासाउंड के काम भी प्रभावित होता है इसलिए रात में जनरेटर चलाए तो भी कैसे।