तो मजाक बनकर रह गई जेल की सलाखें !
लखीमपुर : अस्सी के दशक की चर्चित हिंदी फिल्म शोले के गब्बर सिंह ने कहा था कि दुनिया में ऐसी जेल नहीं बनी जो गब्बर को रोक ले। उसी अंदाज में बुधवार की सुबह दो खतरनाक अपराधी चेारी छिपे नहीं बल्कि सीना तानकर दनदनाते हुए जिला कारागार के मुख्यद्वार से बाकायदा भाग निकले। अब सवाल ये कि जिस जेल में आम मुलाकाती को अपने घर से लहसुन नमक तक ले जाने की आजादी नहीं उस जेल में नाजायज असलहों की खेप कैसे पहुंची। सवाल और भी है जो किसी एक दो बंदी रक्षक पर ही खत्म नहीं होते बल्कि पूरा का पूरा जिला कारागार का कुनुबा ही इस सनसनीखेज वारदात के बाद सवालों के चक्रव्यूह में है। अफसर चुप्पी साधे हैं और चुप्पी टूटती है तो वे ये कहने से बाज नहीं आते कि उनके जवानों ने कैदियों से दो दो हाथ भी किए हैं। पर उनके तर्क गले से उतरने के काबिल नहीं है कैसे? ये इन सवालों से ही साफ हो जाएगा।
- जेल की जिस बैरिक नंबर पांच में खतरनाक लुटेरा अजय तिवारी बंद था उसे बैरक से बाहर आने की अनुमति कैसे मिली?
- पांचवी बैरिक से तो अजय अकेला ही पानी लेने निकला तो उसे रविंदर लोध कहां और कैसे मिला?
- बैरिक से आगे जेल का पहला, दूसरा, तीसरा और फिर मुख्य द्वार कैसे खुला? अगर कूड़े की ठेलिया के लिए तो उसके साथ बाहर जा रहे दो हटठे कटठे कैदी बंदी रक्षकों को क्यों नहीं दिखे?
- जेल के बाहर संगीनों से लैस जेल का वह बंदी रक्षक जिस पर पलक तक न झपकाने की जिम्मेदारी है उसने दोनो कैदियों का कोई प्रतिकार क्यों नहीं किया?
- जेल प्रशासन को इस सनसनीखेज वारदात के प्रकाश में आने के घंटे भर तक का वक्त पुलिस को सूचना देने में क्यों लगा?
- अगर पहले से अजय तिवारी के भागने का खतरा था तो उसे तनहाई या खास सुरक्षा के घेरे में क्यों नहीं रखा गया?
- कैदियों के भागने के बाद जेल का सायरन क्यों नहीं बजा? क्यों उसे बजाने वाले ये अहम रोल निभाना भूल गए?
इन तमाम सवालों पर अफसरों की चुप्पी और गलतबयानी से ये पूरा मामला ही उलझा है और अब तो सवाल पूरी की पूरी कानून व्यवस्था पर ही उठ खड़ा हुआ है।
इनसाइड स्टोरी :::तराई की तलहटी में लगी जरायम की बेल
- डालू, बग्गा और सुनील की फेहरिस्त में शामिल हुए दो और नाम
जागरण संवाददाता, लखीमपुर : कभी खैर के जंगलों के लिए जाना जाने वाला खीरी जिला और उसकी तराई अब अपना परिवेश ही बदल चुकी है। अब शारदा, घाघरा और कई नदियों की तलहटी वाले इस जिले में जरायम की बेल लहलहा रही है। ये हम नहीं कह रहे बल्कि पुलिस को मिल रहे वो सुराग बता रहे हैं जो जिले के कई खतरनाक अपराधियों की पनाहगार बने हुए हैं।
पुलिस सूत्रों के मुताबिक जिले की जेल से अदालत जाते वक्त फरार हुए ये खतरनाक अपराधी डालू, बग्गा और सुनील गुप्ता जैसे कई बदमाश भारत-नेपाल सीमा से सटे इलाके में न केवल शरण लिए हुए हैं बल्कि वहीं से अपना पूरा नेटवर्क ही आपरेट कर रहे हैं। गाहे-बगाहे इन शातिरों के खास गुर्गे तो पुलिस के हाथ आते रहे हैं लेकिन इनकी सटीक मुखबिरी को पुलिस की झोली आज भी खाली ही है। इन शातिरों के गैंग में दो नाम बुधवार को और जुड़ गए जिससे जरायम पेशा लोगों का तो मनोबल बढ़ गया लेकिन पुलिस को यहां पर भी करारी मात मिली है। ये बात अब किसी से छिपी नहीं कि लगातार खूंखार होता जा रहा बग्गा और मजबूत होता जा रहा उसका नेटवर्क अब जिले के लिए बड़ा खतरा बनता जा रहा है।