रोपाई के समय धान तैयार कर चौकाया
कौशांबी : कुछ नया करने का हौसला व जज्बा ही था कि चिलचिलाती धूप व गर्मी में रामपुर धमांवा के मजरा सरै
कौशांबी : कुछ नया करने का हौसला व जज्बा ही था कि चिलचिलाती धूप व गर्मी में रामपुर धमांवा के मजरा सरैंया के एक किसान ने धान की फसल तैयार कर ली। दूसरे किसान आज तक धान की बेहन तैयार करने में जुटे हैं तो वह धान की फसल काटने की तैयारी कर रहा है। बेमौसम तैयार हुई धान की फसल को देखकर किसान प्रभावित हुए हैं। परंपरागत खेती का मिथक तोड़ने वाला यह अन्नदाता क्षेत्र में चर्चा का विषय बना हुआ है।
सिराथू तहसील क्षेत्र के रामपुर धमांवा के मजरा सरैंया निवासी संतराम यादव तकनीकी खेती पर पूरा विश्वास रखते हैं। परंपरागत खेती को वह विश्वास पीछे छोड़ चुके हैं। इसकी सबसे बड़ी वजह है मौसम में हो रहा लगातार बदलाव। संतराम यादव महाराष्ट्र में रहकर एक निजी कंपनी में काम करते थे। अप्रैल में वह गांव आए। महाराष्ट्र से वह धान का बीज लेकर आए थे। भीषण गर्मी में उन्होंने धान की खेती करने का फैसला लिया। उनके इस फैसले को लेकर परिवार के ही लोग हास्यास्पद बता रहे थे, लेकिन संतराम अपनी जिद पर अड़े रहे। एक बीघा खेत में संताराम एवन नाम के धान की बीज की बेहन तैयार की। इसके बाद 30 मई को रोपाई की। मौजूदा समय धान तैयार हो गया है। संताराम यादव का मानना है कि 20 से 25 जुलाई तक उनका धान कट जाएगा। संताराम के खेत में जब धान तैयार हो गया तो लोगों ने खेती की बाबत पूछताछ शुरू कर दी। संतराम ने धान की खेती कर लोगों को प्रभावित किया है। संतराम खुद लोगों को इस खेती के लिए अब जागरूक कर रहे हैं।
संतराम दोहरी खेती के नाम पर फिलहाल सफल होते दिख रहे हैं। अगवन खेती के नाम पर धान तैयार कर लिया है। 20 से 25 जुलाई के बीच में वह धान काटने का दावा कर रहे हैं। साथ ही उनका कहना है कि धान काटने के बाद तुरंत बाद वह दोबारा धान की रोपाई करेंगे और समय पर पैदावार हासिल कर लेंगे। संतराम का कहना है कि परंपरागत खेती एक दशक पहले तक होती थी। इधर बीच मौसम में लगातार परिवर्तन हो रहे हैं। ऐसे में हम सभी को तकनीकी खेती ही करनी पड़ेगी, तभी हम फसल का लाभ ले सकेंगे।
भीषण गर्मी में धान की खेती करने का फैसला लेने वाले संतराम के सामने ¨सचाई का संकट था। गर्मी में किसी तरह वह अपनी फसल को सुरक्षित रखने में कामयाब रहे, इसकी सबसे बड़ी वजह रही कि नलकूप। नलकूप के बदौलत धान तैयार कर लिया। बताया कि अमूमन सात से आठ पानी लगाकर लोग धान कर लेते हैं। बरसात की खेती होने के कारण बारिश का लाभ मिल जाता है और लोगों की ¨सचाई बच जाती है, उनको यही नुकसान उठाना पड़ा और खेत में सात से आठ बार पानी लगाना पड़ा। अपनी कामयाबी पर वह इतराने के बजाय लोगों को जागरूक कर रहे हैं और इस तरह की खेती के लिए लगातार प्रेरित कर रहे हैं।