बदलना होगा माइंड सेट और काम करने का तरीका
जागरण संवाददाता, कानपुर : जीएसटी में लोगों को अपना माइंड सेट और काम करने का तरीका बदलना
जागरण संवाददाता, कानपुर : जीएसटी में लोगों को अपना माइंड सेट और काम करने का तरीका बदलना होगा। कोई ऐसा सेल बनाया जाए जिसमें व्यापारी और उद्यमी सीधे समस्याओं को कह सकें और उन्हें सुनकर हल भी किया जाए। ये विचार सोमवार को कानपुर इनकम टैक्स बार एसोसिएशन के अध्यक्ष चार्टर्ड एकाउंटेंट डॉ. अतुल मेहरोत्रा ने 'जीएसटी की उलझनें कैसे सुलझें' विषय पर आयोजित जागरण विमर्श में व्यक्त किए।
डॉ. मेहरोत्रा ने कहा कि जीएसटी के नियम, कानून तो हैं पर उन्हें लागू करने की व्यवस्था पूरी नहीं है। उनके मुताबिक अगले छह माह में स्थितियां सुधरेंगी। अब भी बहुत बदलाव की जरूरत है। जिन्होंने कभी रिटर्न नहीं भरा, उनके लिए तिमाही रिटर्न भरना भी बहुत आसान नहीं है। वैसे भी 3बी रिटर्न तो हर माह ही भरना है और टैक्स भी जमा करना है। जीएसटीआर 1 में भी सरलीकरण किए जाने की जरूरत है क्योंकि सबकुछ ऑनलाइन होने की वजह से रिटर्न को पेंडिंग नहीं रख सकते। कारोबारियों को रिटर्न भरना ही होगा। उनके अनुसार जीएसटी काउंसिल को हर शहर से एक चार्टर्ड एकाउंटेंट या किसी ऐसे व्यक्ति को जोड़ना चाहिए जो रिटर्न फाइल करने की व्यवस्था से जुड़ा हो। उससे पूछा जाना चाहिए कि रिटर्न भरने तथा अन्य क्या दिक्कतें आ रही हैं। उन्हें क्या-क्या सहूलियतें चाहिए। डॉ. मेहरोत्रा के मुताबिक मलेशिया में जब जीएसटी को लागू किया गया था तो वहां दो वर्ष पहले उसकी घोषणा कर दी गई थी, जिससे लोग धीरे-धीरे उसके बारे में सबकुछ समझ गए थे। वहां जनसंख्या कम है और शिक्षा का स्तर भी ऊंचा है।
जागरण विमर्श में मौजूद चार्टर्ड एकाउंटेंट संजय अग्रवाल ने जीएसटी की समस्याओं पर कहा कि एफएमसीजी और फार्मा जैसे कई क्षेत्र में स्टाक बताना मुश्किल होता है। इसलिए वहां के रिटर्न में लिख दिया जाता था कि करदाता के कार्य की प्रकृति को देखते हुए स्टाक रजिस्टर व्यवस्थित रखना संभव नहीं है। सूरत के कपड़ा व्यापारी टैक्स की वजह से विरोध नहीं कर रहे थे, वे काटन और रेशम को मिलाकर बनाए जा रहे कपड़े पर लगाए जा रहे टैक्स को लेकर परेशान थे। उन्होंने कहा कि छोटे और अपंजीकृत व्यापारी के बारे में भी सोचना होगा।