शौहर पूरी जिंदगी उधार रखते मेहर, ये परंपरा खत्म कराएं
जागरण संवाददाता, कानपुर : इस्लामी तरीका तो ये है कि जब निकाह के फौरन बाद ही शौहर अपनी बीवी को मेहर क
जागरण संवाददाता, कानपुर : इस्लामी तरीका तो ये है कि जब निकाह के फौरन बाद ही शौहर अपनी बीवी को मेहर की रकम का भुगतान कर दे, लेकिन 95 फीसद शौहर मेहर की अदायगी नहीं करते और बीवी से ये कह देते हैं कि अब तो जिंदगी भर मेरे साथ हो, दे देंगे। बीवी भी अपने शौहर के झांसे में आकर इसी तरह जिंदगी गुजार देती है। यदि शौहर मर जाता है तो अल्लाह की अदालत में वह पकड़ा न जाए, इसलिए बीवी से परिजन ये कहला देते हैं कि मैंने अपने शौहर की मेहर माफ की।
इसी सिलसिले में आल इंडिया सुन्नी उलमा काउंसिल के महामंत्री हाजी मोहम्मद सलीस ने आल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के राष्ट्रीय अध्यक्ष मौलाना राबे हसनी को पत्र लिखकर इस परंपरा को खत्म कराने की गुजारिश की है। उन्होंने कहा कि निकाह के वक्त ही शौहर को चाहिए कि वह अपनी बीवी को मेहर की रकम अदा कर दे। काउंसिल के महामंत्री ने पत्र में ये भी कहा कि तीन तलाक की शिकार महिलाओं व उनके बच्चों के लिए राहत कोष कायम करें। उन्होंने इसी तरह के कई मसलों को हल कराने पर गौर करने की गुजारिश की है।
25 रुपये से पांच लाख तक मेहर
निकाह के वक्त प्रतिभूति के तौर पर ये मेहर तय होती है। जो लोग चालाक होते हैं, वह पैगंबर मोहम्मद साहब के जमाने का हवाला देकर 25 रुपये ही मेहर बंधा लेते हैं तो कोई पांच लाख रुपये भी मेहर रखवा लेता है। इस मेहर की अदायगी का नियम ये है कि निकाह के वक्त बीवी कह दे कि ठीक है बाद में दे देना तो जब मौका मिले तो इसे अदा कर देना चाहिए और तलाक की हालत में मेहर की अदायगी शौहर को करनी होती है।