सिलाई क्लस्टर मिले तो बढ़े होजरी उद्योग
जागरण संवाददाता, कानपुर : कोलकाता और त्रिपुर (तमिलनाडु) के बाद देश के होजरी उद्योग में तीसरा स्थान र
जागरण संवाददाता, कानपुर : कोलकाता और त्रिपुर (तमिलनाडु) के बाद देश के होजरी उद्योग में तीसरा स्थान रखने वाले कानपुर में सिलाई क्लस्टर बनाने की मांग लंबे समय से हो रही है। टेक्सटाइल हब के रूप में महानगर 'पूरब का मैनचेस्टर' का गौरव हासिल कर चुका है किंतु एनटीसी की पांच और बीआइसी की तीन सूती मिलें बंद होने के साथ ही यहां के औद्योगिक विकास में बाधा आ गई। इसी को ठीक करने के लिए 13 साल पहले लघु उद्योग सेवा संस्थान ने यहां पर 'कॉटन होजरी सेंटर' बनाने का प्रस्ताव केंद्र सरकार को भेजा था। होजरी उद्यमियों ने अब सिलाई क्लस्टर का प्रस्ताव केंद्रीय कपड़ा मंत्री और एमएसएमई मंत्री को दिया है।
होजरी का इतिहास
देश में सबसे पहले 1892 में कोलकाता में होजरी कपड़ा बनाने के लिए निटिंग मशीन आयात की गई थी। इसके बाद त्रिपुर में होजरी सर्कुलर निटिंग मशीनें लगीं। कानपुर में भी होजरी का काम आजादी के पहले कानपुर टेक्सटाइल, कमला होजरी (जेके समूह), पक्का होजरी, मिश्रा होजरी आदि के रूप में शुरू हुआ। कानपुर वूलेन मिल (लाल इमली) में ऊनी होजरी के कपड़े तैयार होते थे।
वर्तमान में होजरी की स्थिति
देश में इस उद्योग के विस्तार का कानपुर तीसरा शहर है। यहां पर यह उद्योग मुख्य रूप से बनियान, अंडरवियर पर आधारित है। इस उद्योग में कानपुर में 60 हजार लोगों का जीवन यापन हो रहा है। बीते 15 सालों में इस उद्योग का उच्चीकरण तो हुआ लेकिन वह कोलकाता और त्रिपुर के मुकाबले काफी कम रहा। एक विचित्र स्थिति है कि निटिंग और प्रोसेसिंग की ज्यादातर इकाइयां तो औद्योगिक क्षेत्र में हैं किंतु कटाई, सिलाई और पैकिंग का काम सूक्ष्म स्तर पर शहर में दर्शनपुरवा, जवाहर नगर, विजय नगर, किदवई नगर, गोविंद नगर, फेथफुलगंज, चमनगंज आदि मोहल्लों में फैला हुआ है। सबसे अच्छी बात है कि पांच-छह लाख की लागत में इस उद्योग में आठ से 10 लोगों को रोजगार मिल जाता है।
सिलाई सेक्टर की समस्या
इस सेक्टर में कुल 1200 इकाइयां जॉब पर काम करती हैं जिनमें 10 हजार श्रमिक कार्यरत हैं। इस सेक्टर के प्रभावित होने से पूरे होजरी उद्योग की वांछित उन्नति नहीं हो पा रही है। इस काम में सिलाई घरों के मालिक भी जॉब पर सिलाई का काम करते हैं। यहां तक कि घर की महिलाएं बच्चे और बुजुर्ग भी काम कर परिवार की जीविका उपार्जन में जुडे रहते हैं। इस सेक्टर को शहर से दूर स्थापित करने पर समस्या और विकट होने की उम्मीद है। एक ही स्थान पर होने से विकास होगा। यहां पर होजरी उत्पादों की वार्षिक बिक्री वर्तमान में करीब 300 करोड़ रुपये है। जबकि प्रदेश में कुल होजरी उत्पादों की खपत का आधे हिस्से की आपूर्ति कोलकाता और त्रिपुर से होती है। इसे देखते हुए यहां उद्योग की उन्नति की काफी संभावना है।
मंत्रियों ने भी रुचि दिखाई
सिलाई क्लस्टर की स्थापना के लिए केंद्रीय मंत्रियों ने भी रुचि दिखाई है। एनटीसी की अथर्टन मिल परिसर में टूल रूम के शिलान्यास के मौके पर सांसद डॉ. मुरली मनोहर जोशी के आग्रह पर केंद्रीय एमएसएमई मंत्री कलराज मिश्र ने वादा किया कि वह अपने स्तर पर केंद्रीय कपड़ा मंत्री स्मृति ईरानी से कहेंगे। उद्यमियों ने जब दो माह पहले कपड़ा मंत्री से भेंट की तो उस समय आचार संहिता लगी हुई थी। उद्यमियों ने उनसे अथर्टन मिल परिसर में ही सिलाई क्लस्टर बनाने की मांग की थी। जिस पर उन्होंने आश्वस्त किया कि चुनाव के बाद वह इस बारे में बात करेंगी। बताते हैं कि उन्होंने एनटीसी चेयरमैन को प्रस्ताव भी भेज दिया है। अब केंद्र के साथ ही प्रदेश में भी भाजपा की सरकार बनने और कानपुर से दो विधायकों के उद्योग से जुड़े विभागों का मंत्री बनने से संभावना काफी बढ़ गई है।
'कानपुर में होजरी क्लस्टर के लिए प्रस्ताव बनाकर तो भेजा गया था किंतु अभी उस दिशा में बात आगे नहीं बढ़ सकी है। हां, प्रदेश में बरेली, उन्नाव और वाराणसी में टेक्सटाइल सेंटर बनाने की दिशा में काम हो रहा है।'
- यूसी शुक्ला, निदेशक, एमएसएमई उद्यम विकास संस्थान।
'सिलाई क्लस्टर की स्थापना से यहां के होजरी उद्योग में नई शक्ति का संचार होगा। सिर्फ सिलाई सेक्टर ही ऐसा है जहां होजरी उत्पादों का उत्पादन आगे नहीं बढ़ पा रहा है। क्लस्टर निर्माण से उत्पादन बढ़ेगा और रोजगार के बेहतर अवसर मिलेंगे।'
- बलराम नरूला, संयुक्त सचिव, फेडरेशन आफ होजरी मैन्यूफैक्चरर्स एसोसिएशन।