उम्मीदों के क्षितिज पर औद्योगिक विकास का सूरज
जागरण संवाददाता, कानपुर : समय की मार के बीच करीब-करीब दम तोड़ चुके पूरब के मैनचेस्टर का नसीब फिर बदलन
जागरण संवाददाता, कानपुर : समय की मार के बीच करीब-करीब दम तोड़ चुके पूरब के मैनचेस्टर का नसीब फिर बदलने की उम्मीदें मजबूत हो गई हैं। तीन दशक से जिस औद्योगिक विकास विभाग का कोई मंत्री नहीं बनाया गया था, अब जब उस विभाग का मंत्री बना है और वह भी कानपुर के ही सतीश महाना हैं। उन्हें शहर के औद्योगिक स्वरूप और उसकी समस्याओं की बेहतर जानकारी है। उनके साथ ही एमएसएमई और वस्त्रोद्योग मंत्री कानपुर के ही सत्यदेव पचौरी हैं। इन दोनों मंत्रियों के विभाग संकेत कर रहे हैं कि इस शहर के लिए कुछ तो अच्छा होने वाला है।
बात टेक्सटाइल सेक्टर की हो तो कानपुर कभी पूरे देश में सबसे आगे था और एमएसएमई सेक्टर की बात हो तो यह क्षेत्र आज भी कानपुर का औद्योगिक स्वरूप बचाए रखने का प्रयास कर रहा है। खुद उद्यमियों का मानना है कि कानपुर को पहली बार उसकी जरूरत के हिसाब से मंत्री मिले हैं, जो अगर अपने ही शहर को सही कर लेंगे तो शायद सरकार का बड़ा लक्ष्य पूरा हो जाएगा।
जिस शहर में एनटीसी की पांच, बीआइसी की चार और निजी क्षेत्र की मिलों को मिलाकर करीब डेढ़ दर्जन बड़ी कपड़ा मिलें रही हों, वहां कभी केंद्र और प्रदेश सरकार ने मिलकर इन्हें चलाने के बारे में नहीं सोचा। प्रदेश में अंतिम बार नारायण दत्त तिवारी के मुख्यमंत्रित्व काल में औद्योगिक विकास मंत्री हुए थे। देखा जाए तो उस समय तक एनटीसी और बीआइसी की मिलें भी चलती रहीं, लेकिन उसके बाद न प्रदेश को औद्योगिक विकास मंत्री मिला, न ही एक-एक कर बंद होती कपड़ा मिलों की ओर किसी ने ध्यान दिया। केंद्र में मोदी सरकार बनने के बाद औद्योगिक विकास और मेक इन इंडिया की जो बातें की गईं, वे अब प्रदेश में भाजपा की सरकार आने का बाद कानपुर में भी साकार होती नजर आ रही हैं। उद्यमियों का मानना है कि एनसीआर के निकट होने से पश्चिमी उप्र में तो तुलनात्मक रूप से कुछ औद्योगिक विकास हुआ भी, लेकिन पूरब और मध्य पूर्वी क्षेत्र उपेक्षित रहा। अब प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री की मंशा के मुताबिक, यहां भी औद्योगिक विकास होने की पूरी उम्मीद है।
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शहर की जीडीपी 1.48 लाख करोड़
अपने स्वर्णिम इतिहास की तुलना में वर्तमान में अंतिम सांसें गिन रहा औद्योगिक शहर कानपुर अब भी पूरे प्रदेश का सबसे ज्यादा राजस्व देने वाला शहर है। यहां की जीडीपी 1.48 लाख करोड़ रुपये है। उद्यमियों का मानना है कि अब बुरे दिन खत्म हो रहे हैं और जो भी होगा, अच्छा होगा।
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शहर की जान हो सकतीं एनटीसी, बीआइसी
एक समय था जब मिलों के सायरन से यह शहर चलता था। चाहे सतीश महाना हों या सत्यदेव पचौरी, दोनों अब उन विभागों के मंत्री हैं, जो इनकी मिलों को फिर से चला सकते हैं। इसको लेकर तमाम योजनाएं भी बन चुकी हैं। एनटीसी में तो कई बार अतिरिक्त भूमि बेचने और उससे मिल चलाने की बात हो चुकी है। लाल इमली तो चल ही रही है, बस उसे ठीक करने की बात है। साथ ही एल्गिन व कानपुर टेक्सटाइल पर भी निर्णय लिए जाने चाहिए। ये मिलें फिर शहर की शान हो सकती हैं।
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नगर में एनटीसी मिलें
øø लक्ष्मी रतन काटन मिल
øø अथर्टन वेस्ट काटन मिल
øø स्वदेशी काटन मिल
øø न्यू विक्टोरिया मिल
øø म्योर मिल
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बीआइसी की मिलें
- लाल इमली
- एल्गिन मिल नंबर एक
- एल्गिन मिल नंबर दो
- कानपुर टेक्सटाइल
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आइआइए में बांटी गई मिठाई
उद्यमियों के उत्साह का अंदाजा इससे भी लगाया जा सकता है कि सतीश महाना और सत्यदेव पचौरी के विभागों की जानकारी होने के बाद आइआइए में एक सभा हुई और मिठाई बांटी गई। आइआइए के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष तरुण खेत्रपाल की अध्यक्षता में हुई बैठक में कहा गया कि दोनों मंत्रियों को जो विभाग मिले हैं, उससे कानपुर को अपना औद्योगिक स्वरूप दोबारा हासिल होगा। बैठक में वरिष्ठ उपाध्यक्ष सुनील वैश्य, मंडलाध्यक्ष नवीन खन्ना, चैप्टर अध्यक्ष अनिल पांडेय, महामंत्री आलोक अग्रवाल, कोषाध्यक्ष संजय जैन, मनमोहन राजपाल, अनूप गुप्ता, विकास गुप्ता, दीपक गुप्ता, राकेश कामरा, संजय राजपाल, अश्विनी, विजय आदि मौजूद रहे।
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