विश्वस्तरीय नहीं हैं आईआईटी
कानपुर, जागरण संवाददाता : देश की कोई भी आईआईटी विश्व स्तरीय नहीं है। नामी गिरामी विदेशी विश्वविद्याल
कानपुर, जागरण संवाददाता : देश की कोई भी आईआईटी विश्व स्तरीय नहीं है। नामी गिरामी विदेशी विश्वविद्यालयों व इंस्टीट्यूट की तुलना में अभी यह पीछे हैं। जहां तक कानपुर आईआईटी का सवाल है तो यहां की फैकल्टी व छात्र दोनों बहुत बेहतर हैं। इंफ्रास्ट्रक्चर से लेकर शिक्षण कार्य पर अगर कड़ी मेहनत की जाए तो इस संस्थान को एमआईटी (यूएस) की तरह बनाया जा सकता है। यह बातें आईआईटी के दीक्षा समारोह के दौरान प्रसिद्ध वैज्ञानिक व भारत रत्न से सम्मानित प्रो. सीएनआर राव ने कहीं।
प्रो. राव ने कहा कि केंद्र सरकार की ओर से दी जाने वाली फंडिंग अब इंप्रूव हुई है। पहले फंड को लेकर कुछ दिक्कतें थीं लेकिन अब ऐसा नहीं है। वर्ल्ड क्लास इंस्टीट्यूट बनाने के लिए सरकार को उच्च शिक्षा के फंड में इजाफा करने की जरूरत है। हमारे देश में जीडीपी का महज ढाई फीसद पूरी शिक्षा पर खर्च किया जाता है जिसमें उच्च शिक्षा का फंड भी शामिल होता है। इसे बढ़ाया जाना चाहिए जिससे बेहतर इंफ्रास्ट्रक्चर खड़ा करने के साथ जरूरत के अनुसार सुविधाएं बढ़ाई जा सकें।
पैसे की ओर दौड़ रहे हैं छात्र :
आईआईटियंस का ब्रेन उतना ही शार्प है जितना पहले हुआ करता था। देश के विकास में यह अभी भी उतना ही योगदान दे सकते हैं जितना उनके सीनियर्स ने दिया है लेकिन समय के साथ कई मेधावी पैसे की दौड़ में शामिल हो गए हैं जिससे देश को प्रतिभा का पूरा लाभ नहीं मिल रहा है।
न्यूक्लियर एनर्जी के क्षेत्र बढ़ रहा देश :
देश के न्यूक्लियर सप्लायर ग्रुप (एनएसजी) का सदस्य न बन पाने के प्रश्न के जवाब में प्रो. राव ने कहा कि इससे भारत को कोई फर्क नहीं पड़ता है। हमारे देश को यूरेनियम मिलने में कोई परेशानी नहीं होती है जबकि रिएक्टर बनाए जाने की दिशा में भी काम चल रहा है।
तब आईआईटी में नहीं थीं सुविधाएं :
प्रो. राव ने बताया कि जब वे 29 साल की उम्र में आईआईटी कानपुर में बतौर लेक्चरर पढ़ाने आए थे तब यहां पर सुविधाएं नहीं थीं। वे यहां आने के बाद अपने परिवार के साथ टाइप थ्री में रुके थे। छोटी-छोटी चीजों के लिए दूर जाना पड़ता था। पहले की तुलना में आज यह कैंपस बहुत समृद्ध हो गया है।
यूथ खुद सोचें उन्हें क्या करना है :
समारोह के दौरान आयोजित केलकर एल्युमिनाई लेक्चर में प्रो. राव ने कहा कि यूथ खुद सोचें कि उन्हें क्या करना है। तकनीकी शिक्षा का क्षेत्र बहुत व्यापक है अगर वह दूसरे छात्र को देखकर अपनी दिशा तय करता है तो उसे दिक्कतें आएंगी। लिहाजा उसे यह स्वयं तय करना होगा कि वह क्या करना चाहता है।