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जन भागीदारी से रुक सकती बजट की बर्बादी

स्मार्ट सिटी का सफर सिर्फ शासन और अफसर ही नहीं तय करते हैं, इस काम में स्थानीय सरकार और जनता की भी ब

By Edited By: Published: Sun, 05 Jul 2015 01:00 AM (IST)Updated: Sun, 05 Jul 2015 01:00 AM (IST)
जन भागीदारी से रुक सकती बजट की बर्बादी

स्मार्ट सिटी का सफर सिर्फ शासन और अफसर ही नहीं तय करते हैं, इस काम में स्थानीय सरकार और जनता की भी बड़ी भूमिका रहती है। स्थानीय सरकार यानी नगर निगम का बजट वह महत्वपूर्ण घटक है, जो एक नजर में शहर के विकास की झलक प्रस्तुत कर देता है। यह आबादी की जरूरत और सुविधाओं के परिप्रेक्ष्य में अगर भविष्य का दस्तावेज, तो नगर निगम की आय का आईना भी होता है। जाहिर है इस हाल में नगर निगम के नुमाइंदों और जनता की व्यापक भागीदारी इस काम में सुनिश्चित की जानी चाहिए, इस लिहाज से देखें तो नगर निगम अभी काफी पीछे नजर आता है। उसका बजट तो हर साल बढ़ता जा रहा है, लेकिन परियोजनाएं तय बजट में पूरी नहीं हो पा रही हैं। परियोजनाओं की समय सीमा बढ़ने से उनकी लागत बढ़ती चली जाती है, जिससे दूसरे विकास कार्य प्रभावित होते हैं। इसे देखते हुए बजट प्रावधानों की निगरानी और जवाबदेही का समन्वित तंत्र विकसित करने की बड़ी जरूरत है। नगर निगम की वेबसाइट इस काम को आसान कर सकती है। लेकिन उसमें अगले बजट का कोई ब्योरा उपलब्ध नहीं होने से अगर जनता कोई पेशकश नहीं कर पाती है, तो पार्षद भी बजट प्रक्रिया में अधिकतर सिर्फ उपस्थिति दर्ज कराने तक ही सीमित रह जाते हैं।

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कानपुर, जागरण संवाददाता : नगर निगम का दस साल में बजट दो अरब रुपये से बढ़कर साढ़े 18 अरब रुपये तक पहुंच गया है। कई गुना बजट बढ़ने के बाद भी जनता को न तो पूरी तरह नागरिक सुविधाएं सुलभ हो पायी हैं और न ही बुनियादी समस्याओं से निजात मिल पायी है। यही नहीं तमाम स्थानों पर समस्या और बढ़ गयी है। नगर निगम के पिछले पांच बजट देखें, तो सबसे ज्यादा धन जवाहर नेहरू नेशनल अरबन रिन्यूवल मिशन (जेएनएनयूआरएम) के विकास कार्यो के लिए रखा जा रहा है, लेकिन काम पूरे होने का नाम ही नहीं ले रहे हैं। वर्ष 2012 में खत्म होने वाली जेएनएनयूआरएम योजना अभी तक नहीं खत्म हो पायी है, उलटे योजना लेट हो जाने के कारण नगर निगम पर विपरीत असर पड़ा है, उसे अपनी निधि से अतिरिक्त धन देना पड़ा है। उधर, जनता को सीवर व पेयजल समस्या से निजात नहीं मिल पायी है। इसी तरह कूड़ा निस्तारण पर खर्च किए गए करोड़ों रुपये भी कूड़ा हो गए हैं। जेएनएनयूआरएम योजना में आयी बसों में भी नगर निगम ने अपने बजट से पैसा दिया लेकिन बसें कबाड़ा हो गयी हैं और पैसा बर्बाद चला गया। यह सही है कि निगम की आय में बढ़ोत्तरी हुई है। बीते चार साल में करों में आय 88 करोड़ रुपये से बढ़कर एक अरब 16 करोड़ रुपये पहुंच गयी है, विज्ञापन शुल्क में चार करोड़ रुपये आय हो रही है, लेकिन माना जा रहा है कि यह आय 22 करोड़ रुपये होनी चाहिए। यह हाल तब है, जब टैक्स पूरी तरह नगर निगम नहीं वसूल पा रहा है। शहर के बढ़ते विस्तार व तेजी से बनती बहुखंडीय इमारतों में सभी को अभी तक टैक्स के दायरे में नहीं लाया गया है। अगर नए बन रहे निर्माणों का नए सिरे से कर निर्धारण कराया जाए तो आय में खासी बढ़ोत्तरी होगी।

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बीते दो वित्तीय वर्ष का बजट

वर्ष : 2013-14

बजट - 18 अरब 77 करोड़ रुपये

करों से आय- 1 अरब 11 करोड़

सिविल कार्य - 2 अरब 35 करोड़

जेएनएनयूआरएम - 9 अरब 50 करोड़

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वर्ष : 2014-15

बजट - 18 अरब 49 करोड़ रुपये

करों से आय - 1 अरब 16 करोड़ रुपये

सिविल कार्य - 2 अरब 50 करोड़

जेएनएनयूआरएम- 9 अरब 6 करोड़

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चालू वित्तीय वर्ष की खास बात

गृहकर में 80 से 85 करोड़ रुपये बढ़ोत्तरी की गयी। विकास के लिए 2 अरब 50 करोड़ रुपये रखे गए हैं। पार्को के रखरखाव के लिए 8 करोड़ रुपये रखे गए हैं। नाली व नाली के लिए 13 करोड़ तथा तरणताल के लिए 50 लाख रुपये रखे हैं। सड़क निर्माण में पिछले वित्तीय वर्ष में एक अरब 45 करोड़ रुपये रखे गए थे अबकी बार एक अरब 65 करोड़ रुपये रखे गए हैं।

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स्थानीय सरकार के प्रतिनिधि बोले,

सदन में बजट पास कराने के लिए कम समय दिया जाता है। समय बढ़ाया जाना चाहिए। समय के अभाव व कुछ घंटे पहले ही बजट की कापी मिलने के चलते पार्षदों की इस काम में भागीदारी काफी हो जाती है। अफसरों को बजट सदन में लाने से पहले पार्षदों से बातचीत कर लेनी चाहिए, ताकि पार्षद अपने सुझाव दे सकें।

- सत्येन्द्र मिश्र, भाजपा पार्षद दल उपनेता

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सदन में बजट के दौरान शोर-शराबा होने के पीछे मुख्य कारण यह होता है कि पार्षदों को कुछ मालूम ही नहीं होता है। बजट की कापी कुछ घंटे पहले मिलती है। दो दिन पहले मिले तो साथी पार्षदों के साथ बैठक हो जाए और कुछ अच्छे सुझाव आ सकें, जिनका पालन कराया जा सके। पार्षद जनता के बीच में रहता है इसके चलते उनके सुझाव जनता से जुड़े होंगे। लेकिन अफसर तो बजट जल्द पास कराना चाहते हैं ताकि पार्षदों का विरोध न झेलना पड़े।

- सुहैल अहमद, सपा पार्षद दल नेता

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जब कार्यकारिणी में बजट पास हो जाता है तो ओपेन हो जाता है। ऐसे में सभी पार्षदों को तभी बजट की एक प्रति दे देनी चाहिए ताकि उसके बारे में संबंधित पार्टी के पार्षद आपस में बैठक कर लें कि आखिरकार बजट में क्या होना चाहिए। बजट की अधिकतर पार्षदों को जानकारी ही नहीं होती है, इससे उनको जानकारी भी हो सकेगी और वह सदन में बोल भी सकेंगे।

- अशोक तिवारी, कांग्रेस पार्षद दल नेता

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जनता का सुझाव

बजट शहर के विकास से जुड़ा होता है। ऐसे में विकास से संबंधित विभागों का जोड़कर बजट बनाया जाए। शहर में पीडब्ल्यूडी, नगर निगम, केडीए व आवास विकास सड़क बनाता है, अगर इसे जोड़कर बजट बनाया जाए तो विकास भी तेजी से होगा और संबंधित विभाग को पता रहेगा कि कौन सी सड़क उसको बनानी है। इसी तरह जलकल विभाग भी नगर निगम से जुड़ा है। लेकिन अभी भी शहर में हजारों लोगों पेयजल व सीवर के अवैध कनेक्शन लिए हुए हैं। इनको नियमित कर दिया जाए तो आय बढ़ेगी।

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रिपोर्ट कार्ड

बजट

पूर्णाक प्राप्तांक

5 2.5

(आधार : शहरी नियोजन से जुड़े लोगों की राय)

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बाक्स......

नागरिक सेवाओं में चार्टर का कितना पालन हो रहा है। क्या नगर निगम चार्टर के मुताबिक सेवा दे रहे हैं। नागरकि सेवाएं उपलब्ध कराने में देरी पर जवाबदेही और जुर्माने की क्या व्यवस्था है। इसकी कोई वसूली होती भी है या नहीं। क्या नगर निकाय अपनी योजनाएं तैयार करते समय वार्डवार कोई विचार-विमर्श करते हैं। इस विषय पर आप अपनी राय हमें पासपोर्ट साइज फोटो के साथ भेज सकते हैं।


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