मैस्कर घाट से रूठ गई गंगा
कानपुर, जागरण संवाददाता: जिस गंगा के तट पर क्रांतिकारियों ने अंग्रेजों को लोहे के चने चबवा दिए थे, आ
कानपुर, जागरण संवाददाता: जिस गंगा के तट पर क्रांतिकारियों ने अंग्रेजों को लोहे के चने चबवा दिए थे, आज उस मैस्कर घाट को मां गंगा छोड़ चुकी हैं। जहां नानाराव पेशवा अपने साथियों के साथ बैठकर अंग्रेजों को भगाने की रणनीति बनाते थे वहां सिर्फ बालू ही दिखती है। सफाई न होने से सीढि़यां भी गंदगी से पटी हैं।
मैस्कर घाट वाले रास्ते पर आपका स्वागत करने के लिए कुत्त बैठे हुए मिलेंगे। घाट में बने मंदिरों के दर्शन करने आए कई लोगों को यह कुत्ते काट चुके हैं। वहीं घाट तो सिर्फ कहने के लिए बचा है। यहां से मोक्षदायिनी तो एक किमी दूर जा चुकी हैं।
मोक्षदायिनी बनी नाला
इस घाट में केवल एक धारा बची है उसमें भी घाट से लगी बस्तियों का गंदा पानी मिलता है, जिससे पानी काला मटमैला हो गया है। ऊपर से इसमें आवारा जानवर उछल कूद करते रहते हैं। घाट में आए लालबंगला के राकेश ने बताया कि केवल दूर से ही गंगा को नतमस्तक कर लेते है।
लापता सफाई कर्मी, फैली गंदगी
छावनी परिषद के अंदर यह घाट आता है। सफाई कर्मचारी लगे हैं पर सफाई करने नहीं आते। यहां के लोगों ने बताया कि घाट की रोज सफाई नहीं होती, जिससे गंदगी फैली रहती है।
31 लाख से सीढि़यां व लाइटें
बसपा सरकार के कार्यकाल में केडीए ने 31 लाख रुपये से मैस्कर घाट की सीढि़यां व लाइटें लगवाई थी लेकिन तमाम लाइटें बंद पड़ी हैं। सीढि़यों से पत्थर भी टूटे लगे हैं।