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जन्मे श्रीराम, अयोध्या में छाईं खुशियां

By Edited By: Published: Sun, 21 Sep 2014 09:41 PM (IST)Updated: Sun, 21 Sep 2014 09:41 PM (IST)

कानपुर,जागरण संवाददाता: भगवान राम की लीलाओं का मंचन शुरू हुआ श्रद्धालु भी प्रभु की लीलाओं के दर्शन कर खुद के जीवन को धन्य बनाना चाहते हैं। चंद्रिका देवी रोड रामलीला में श्रीराम जन्म की लीला देख भक्त निहाल हुए।

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चंद्रिका देवी रोड रामलीला में पुत्र न होने के वियोग से महाराज दशरथ दुखी हैं। महर्षि वशिष्ठ के कहने पर उन्होंने यज्ञ कराया तो पुत्र राम, भरत, लक्ष्मण और शत्रुघ्न का जन्म हुआ। प्रभु का जन्म होते ही अयोध्या में खुशियां छा गई। समय बीतने के साथ राक्षसों का आतंक बढ़ गया और उन्होंने ऋषि मुनियों को यज्ञ करने से रोक दिया, तब महर्षि विश्वामित्र अयोध्या पहुंचे और उन्होंने महाराज दशरथ को पूरा वृतांत बताया। यज्ञ रक्षा के लिए भगवान राम, लक्ष्मण को साथ ले जाने की आज्ञा मांगी। महर्षि वशिष्ठ के समझाने पर उन्होंने दोनों कुमारों को उन्हें सौंप दिया।

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इंसेट))) देवर्षि का तप नहीं भंग कर सके कामदेव

गोपालेश्वर धाम नवाबगंज में नारद मोह की लीला का मंचन देख श्रद्धालु रोमांचित हो गये। देवर्षि नारद ने तपस्या शुरू की तो देवराज इंद्र का सिंहासन डोल गया। इससे देवराज डर गए और उन्होंने कामदेव से देवर्षि का तप भंग करने के लिए कहा। अप्सराओं के साथ पहुंचे कामदेव ने तपस्या भंग करने की कोशिश की, लेकिन वह सफल नहीं हुए। विवश होकर कामदेव वहां से लौट गए।

कामदेव को जीतने के बाद देवर्षि नारद ब्रह्मा जी और शिव जी के पास गए। दोनों ने ही उन्हें श्रीहरि विष्णु के पास न जाने की सलाह दी, पर देवर्षि नहीं माने और वहां पहुंच गए। देवर्षि ने प्रभु को कामदेव विजय का वृतांत सुनाया। प्रभु ने मान लिया कि देवर्षि को अहंकार हो गया। अहंकार नष्ट करने को ही प्रभु ने माया का नगर और माया की विश्वमोहिनी बनाई। विश्वमोहिनी पर मोहित देवर्षि ने विवाह को आतुर हुए। उन्होंने भगवान विष्णु से इच्छा जाहिर की तो प्रभु ने उन्हें बंदर का रूप दे दिया और स्वयंवर में खुद ही पहुंच गए। विश्वमोहिनी ने नारद जी के बजाय विष्णु जी के गले में वरमाला डाल दी। इससे देवर्षि का अहंकार टूट गया।


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