यूपीएसआईडीसी को 11.30 करोड़ का झटका
दिग्विजय सिंह, कानपुर
यूपीएसआईडीसी से भूखंड खरीद कर उसकी बिक्री करने वालों की संख्या कोई कम नहीं है। इसमें ऐसे भी आवंटी हैं जो भूखंड खरीद तो लेते हैं लेकिन बाद में निगम के अफसरों और कर्मियों की मिलीभगत से अधिक कीमत पर दूसरे उद्यमियों को बेच (हस्तांतरित) देते हैं। लखनऊ, ट्रोनिका सिटी और सूरजपुर औद्योगिक क्षेत्र में 110 भूखंडों का पांच वर्षो में हस्तांतरण किया गया तो रोक के बाद भी अगस्त 2008 से जनवरी 2010 के बीच 21 भूखंडों का हस्तांतरण कर दिया गया। इस खेल में निगम को 11.30 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ।
उप्र राज्य औद्योगिक विकास निगम (यूपीएसआईडीसी) में भूखंड देने के लिए साक्षात्कार किया जाता है। साक्षात्कार करते समय अफसरों को आवेदनकर्ताओं की हैसियत का आकलन भी करना चाहिए। ताकि यह पता चल सके कि भूखंड लेने के बाद आवंटी उद्योग लगायेगा भी या नहीं, लेकिन इस प्रक्रिया का पालन नहीं किया जाता। नतीजतन उन लोगों को भी भूखंड आंवटित हो जाता है जो लोग इसकी किस्त भी जमा नहीं कर सकते हैं। निगम में अब भी ऐसे करीब ढाई सौ लोग हैं जिनको नोटिस देने की तैयारी है। सीएजी के ऑडिटरों द्वारा की गई जांच के मुताबिक 2007 से 2012 के बीच ट्रोनिका सिटी में 25, सूरजपुर में 31 और लखनऊ में 75 भूखंडों का हस्तांतरण किया गया। इससे निगम को 11.30 करोड़ का नुकसान हुआ। इस 131 भूखंडों में 21 वे भूखंड भी शामिल हैं जो रोक की अवधि में हस्तांतरित किए गये।
भूखंड हस्तांतरण पर थी रोक
यूपीएसआईडीसी बोर्ड की 17 अक्टूबर 2007 को हुई बैठक में एक अप्रैल 2008 से भूखंडों के हस्तांतरण पर रोक लगा दी गई थी। फरवरी 2010 में हस्तांतरण पर रोक हटाई गई। रोक लगाते समय प्रबंधन ने कहा था कि खाली भूखंडों का हस्तांतरण सट्टा व्यापार को बढ़ावा देता है। इसलिए हस्तांतरण नहीं किया जाएगा, लेकिन घोटालेबाज अफसरों ने अगस्त 2008 से 2010 के बीच 21 भूखंड हस्तांतरित किये।
भूखंड आवंटन का नियम
निगम से भूमि लेकर दो साल के अंदर औद्योगिक इकाई की स्थापना करने का नियम है। यदि आवंटी औद्योगिक इकाई की स्थापना नहीं करता है तो फिर आवंटन निरस्त हो जाना चाहिए, लेकिन अफसर निरस्त करने के बजाय हस्तांतरण कराने में ही यकीन रखते हैं और वे आवंटियों से मिलकर ऐसा कराते भी हैं।