हमारे लिए तो सभी दिन एक समान
छिबरामऊ, संवाद सहयोगी : 1 मई श्रमिकों के अधिकारों की पैरवी का दिवस है, जो आज एक रस्म अदायगी भर बनकर
छिबरामऊ, संवाद सहयोगी : 1 मई श्रमिकों के अधिकारों की पैरवी का दिवस है, जो आज एक रस्म अदायगी भर बनकर रह गया है। जिन मजदूरों के लिए यह दिवस बना है, उनको इसका मतलब भी नहीं पता है। वह तो रोज की तरह आज भी अपना काम निपटाने में लगे रहे।
रविवार को अंतराष्ट्रीय श्रम दिवस था। कहने को तो इस दिन श्रम विभाग के अधिकारियों की ओर से विशेष कार्यक्रमों का आयोजन किया जाना चाहिए था, लेकिन कोई भी आयोजन तहसील स्तर पर नहीं किया गया। श्रम करने वाले मजदूर, पल्लेदार रोज की भांति अपने घरों से निकले और काम में जुट गए। उनके लिए आज का दिन कोई विशेष नहीं था। इस की जानकारी के लिए जब नगर में पड़ताल की गई, तो गुड़ मंडी में एक गाड़ी पर बोरियां लादते दोपहर के समय पल्लेदार मिल गए। जब उनसे 1 मई के बारे में पूछा गया तो वह एक-दूसरे का मुंह देखने लगे। बाद में बोले उनको जानकारी नहीं और अपने काम में जुट गए। यह केवल इन पल्लेदारों की बात नहंी है, बल्कि काम करने वाले अधिकांश मजदूरों का कुछ ऐसा ही हाल है। अपने अधिकार के दिन से भी वह अनजान हैं।
श्रमिकों की जुबानी
1 मई हो या 15 मई उनके लिए तो सभी दिन एक ही समान हैं। सुबह घर से निकलना है और शाम को मेहनत के चार रुपए कमा कर घर ले जाना है। आज तक किसी ने इस बारे में बताया नहीं।
- शिवम सविता।
वह रोज की भांति आज भी घर से निकले थे। दिनभर मजदूरी करेंगे और शाम को खाने की जुगाड़ करेंगे। श्रमिक दिवस के बारे में उनको कोई जानकारी नहंी है। उनके लिए तो सभी दिन एक समान हैं।
- राजीव कुमार।
दिवस तो अमीर लोगों के लिए होते हैं। प्रतिदिन कमाने खाने वालों के लिए कोई दिवस नहीं होता। वह जितनी मेहनत कर लेंगे, उतना ही अपने परिवार व अपने लिए धन जोड़ लेंगे। इससे ही उनका काम चलेगा। श्रम दिवस के बारे में उनको कुछ भी नहीं पता है।
- उमेश शाक्य।
वह सुबह गाड़ी लेकर घर से निकल जाते हैं। एक जगह से माल उठाकर दूसरी जगह पहुंचाते हैं। दिनभर की मेहनत से जो रुपया मिलता है, उससे परिवार का खर्च चलता है। आज तक किसी ने श्रम दिवस के बारे में कुछ नहंी बताया है और न ही उन्हें कुछ पता है।
- कमलेश कुमार।