चुनावी दंगल में राजनीतिक दलों में द्वंद
कन्नौज, जागरण संवाददाता : इस बार का पंचायत चुनाव राजनीतिक दलों की प्रतिष्ठा का प्रश्न बन गया है। यही
कन्नौज, जागरण संवाददाता : इस बार का पंचायत चुनाव राजनीतिक दलों की प्रतिष्ठा का प्रश्न बन गया है। यही कारण है कि सत्ता पक्ष से दो-दो हाथ करने के लिए भाजपा, बसपा के अलावा कांग्रेस ने भी अपने ऐलानियां प्रत्याशी जिला पंचायत चुनाव में उतारे हैं। उधर सत्ताधारी समाजवादी पार्टी अपने ही कार्यकर्ताओं की महत्वाकांक्षा के आगे किसी भी प्रत्याशी को 'अपना' कहने का साहस नहीं जुटा पाई है। पार्टी प्रबंधन अभी दूर से ही पंचायत चुनाव को देख रहा है। यही कारण है कि इस बार कन्नौज का पंचायत चुनाव कई मामलों में दिलचस्प होगा।
यूं तो पंचायत चुनावों से राजनीतिक दलों का सीधा सरोकार नहीं होता था, लेकिन इस बार केवल सत्तापक्ष को छोड़ दिया जाए तो सभी महत्वपूर्ण राजनीतिक दल जिला पंचायत चुनाव में पूरी तैयारी के साथ उतरे हैं। भाजपा ने जिले की 28 में से 27 सीटों पर अपने घोषित प्रत्याशी उतारे हैं। इन घोषित प्रत्याशियों को जिताने के लिए पार्टी के नेता एड़ी-चोटी का जोर लगाए हैं। यहां तक की भाजपा के जिलाध्यक्ष नरेंद्र राजपूत स्वयं जिला पंचायत की एक सीट पर अपनी किस्मत आजमा रहे हैं। यही हाल बसपा का है। बसपा ने भी 22 से अधिक सीटों पर अपने प्रत्याशियों को घोषित किया है। जिले में चुनावों के दौर में सन्नाटे में रहने वाली कांग्रेस ने भी एक दर्जन से ज्यादा सीटों पर अपने प्रत्याशी घोषित कर पार्टी नेतृत्व उन्हें जीत दिलाने के लिए ताबड़तोड़ जनसभाएं कर रहा है। ऐसी चुनावी सरगर्मी के बीच समाजवादी पार्टी ने अभी तक कोई भी प्रत्याशी घोषित नहीं किया है। कारण अधिकांश वार्डों में सपा के ही तीन से चार कार्यकर्ता एक-दूसरे खिलाफ ताल ठोंक रहे हैं। इनकी ताल की आवाज में कहीं पार्टी का नुकसान न हो जाए, इसलिए सपा ने जिला पंचायत और क्षेत्र पंचायत सदस्य पद के चुनाव से अपनी दूरी बना रखी है। अंदरखाने बात चल रही है कि चुनावों में जो सदस्य जीत जाएगा, वही पार्टी का होगा। उसके बाद अध्यक्ष पद पर पार्टी की जोर लगाएगी।
......
चुनाव से दूर सपा के मंत्री और विधायक
पंचायत चुनाव में बुराई-भलाई से बचने के लिए सपा के मंत्री और विधायकों ने दूरी बनाए रखी है। हालांकि माध्यमिक शिक्षा राज्यमंत्री विजय बहादुर पाल की पुत्रवधू चुनावी मैदान में है। इसके अलावा अन्य विधायकों के करीबी रिश्तेदार भी चुनाव में है। इसके बावजूद कहीं भी यह लोग खुलकर वोट नहीं मांग रहे हैं। इससे साफ जाहिर है कि पार्टी नेतृत्व ने पंचायत चुनाव से फिलहाल नेताओं को दूर रहने की ताकीद दी है।
.....
चुनावी घमासान से गायब प्रधान प्रत्याशी
गांव में चुनावी सरगर्मी जरूर हैं, लेकिन इस घमासान के बीच प्रधान पद के उम्मीदवार गायब हैं। कारण क्षेत्र पंचायत और जिला पंचायत के चुनाव में पैदा हो रही गुटबाजी का असर उनके चुनाव में न पड़ जाए। उन्हे डर है कि बीडीसी का समर्थन किया गया तो दूसरा गुट उनसे नाराज हो जाएगा। इसका सीधा असर आने वाले प्रधान के चुनाव में पड़ेगा। इस कारण अधिकांश प्रधान पद के प्रत्याशी गांव से ही गायब हो गए हैं। इस बात की काफी चर्चा है।