गंभीर 'हेड इंजरी' पर कानपुर सहारा
कन्नौज, जागरण संवाददाता : मुख्यमंत्री ने अपने सपनों का मेडिकल कालेज तो यहां की धरती पर उतार दिया, लेकिन मुकम्मल इलाज की व्यवस्था की आज भी सरकार से दरकार है। दुर्घटना के मामलों में हेड इंजरी होने पर एक अदद न्यूरोलाजिस्ट नहीं है। गंभीर मामलों में मेडिकल कालेज भी हाथ खड़े कर कानपुर रेफर कर देता है।
वर्ष 2009 में करीब 500 करोड़ से तैयार मेडिकल कालेज अभी मुकम्मल इलाज देने में नाकाम है। हालांकि अब मेडिकल कालेज प्रशासन मरीजों को रेफर करने से बचने लगा है पर मरीज का जीवन खतरे में देख कानपुर का रास्ता तीमारदारों को दिखा देने की मजबूरी जस की तस बनी है। आश्चर्य है कि मेडिकल कालेज के विशालकाय भवन में न तो न्यूरो विभाग है और न ही न्यूरोलाजिस्ट। हालत यह है कि हेड इंजरी के मामले में मेडिकल कालेज तक में मुकम्मल इलाज की उम्मीद करना बेमानी है।
जनपद में जीटी रोड के अलावा कई ऐसे मार्ग हैं जो अन्य जनपदों से यहां को जोड़ते हैं। यहां छोटे से लेकर भारी वाहनों की आवाजाही रात-दिन लगी रहती है। आए दिन दुर्घटनाएं भी होती रहती हैं, लेकिन हेड इंजरी होने पर मेडिकल कालेज में कोई विशेषज्ञ इलाज के लिए नहीं है। हल्के-फुल्के मामले फिजीशियन अपने स्तर से निपटाते रहते हैं। जब मामला बिगड़ने लगता है तो उसे कानपुर का रास्ता दिखा दिया जाता है।
मेडिकल कालेज में सीटी स्कैन की मशीन तक किराये पर लगी है और वह भी बंद पड़ी है। इससे ज्यादा दुभार्गयपूर्ण यह है कि उसकी रिपोर्ट की गंभीरता को समझने वाला कोई न्यूरोलाजिस्ट नहीं है। यह काम भी फिजीशियन कर रहे हैं। विषय विशेषज्ञ की कमी यहां मरीजों को जब तकलीफ की ओर धकेलती है तो वह खुद कानपुर रेफर के लिए कहने लगते हैं। उन्हें मेडिकल कालेज के खूबसूरत भवन की नहीं इलाज की दरकार होती है।
यहां हाईवे बनने जा रहा है। ऐसे में ट्रामा सेंटर की बहुत जरूरत पड़ेगी। वह शासन को ट्रामा सेंटर का प्रस्ताव शीघ्र भेजेंगे। उसी प्रस्ताव के साथ न्यूरोलाजिस्ट की भी मांग की जाएगी। ज्यादातर हेड इंजरी के मामले साधारण होते हैं। उसके लिए फिजीशियन पर्याप्त हैं। गंभीर मामलों को कानपुर भेजना पड़ता है। मेडिकल कालेज में न्यूरोलाजिस्ट का पद सृजित नहीं है।
डा. बीएन त्रिपाठी, प्राचार्य मेडिकल कालेज