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सब पर भारी-साइकिल की सवारी

झाँसी : कर्नल गुलजार सिंह राणा - संघर्ष के साथ ही सफलता की तमाम किस्सों को दिल में समेटे 70 बसन्त दे

By Edited By: Published: Sat, 21 Nov 2015 12:14 AM (IST)Updated: Sat, 21 Nov 2015 12:14 AM (IST)

झाँसी : कर्नल गुलजार सिंह राणा - संघर्ष के साथ ही सफलता की तमाम किस्सों को दिल में समेटे 70 बसन्त देख चुके कर्नल कर्नल राणा के लक्ष्य में उम्र बाधा नहीं। आज भी वो साइकिल की सवारी करते दिख जाएंगे। आलीशान बंगला और महँगी कार भले ही इनकी पहचान का हिस्सा हो, लेकिन स्वास्थ्य को दुरुस्त रखने के लिये वे आज भी छोटी-मोटी दूरी तय करने के लिए साइकिल को प्रमुखता देते हैं। आइये, कर्नल राणा से जानते हैं उनकी साइकिल से यारी के बारे में।

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साइकिल को बना ली अपने व्यक्तित्व की पहचान

कर्नल राणा को आज भी वो दिन याद है, जब पिताजी ने उनके जन्मदिन पर साइकिल का तोहफा दिया था। तब साइकिल का अलग शान थी। उस समय जो उन्होंने साइकिल का हैण्डिल पकड़ा, आज तक नहीं छूटा। उन्होंने 1956 में नौकरी के दौरान एक साइकिल ख़्ारीदी, जो आज भी उनके पास है - घर के हल्के-फुल्के काम वे इसी साइकिल से निपटाते हैं।

इस सवारी का अलग है रुतबा

बात एक बार फिर वर्ष 1956 की - कॉलिज के दिनों में उनको इंग्लैण्ड की बीएसए कम्पनि की फोल्डिंग पैराशूट साइकिल के बारे में पता चला। द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान इस साइकिल का इस्तेमाल सेना द्वारा किया गया था। इसकी खास बात है इसका फोल्ड हो जाना। जी हाँ, इस साइकिल को मात्र 30 सेकेण्ड में कोई भी फोल्ड कर सकता है। ब्रिटिश आर्मी द्वारा प्रयोग में लायी जाने वाली यह साइकिल 1939 मॉडल की थी। सैनिक अपनी साइकिल फोल्ड करके पैराशूट द्वारा अपने साथ एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाते थे। द्वितीय विश्व युद्ध की समाप्ति के बाद आर्मी स्टोर्स से इन साइकिलों को बेचा गया। 1956 में राणा को इसी साइकिल का तोहफा अपने पापा से मिला। 75 साल से भी अधिक पुरानी यह साइकिल आज भी दुरुस्त है। कर्नल राणा की इच्छा है कि यह साइकिल वो अपने नाती को गिफ्ट करें और पूरे 100 साल पुरानी यह साइकिल इतिहास में अपना नाम दर्ज कराए। सम्भवत: झाँसी ़िजले में यह अपने तरह की एक मात्र साइकिल है।

कर्नल राणा बताते हैं कि बचपन में वो 15 किलोमीटर दूर स्थित स्कूल साइकिल से ही जाते थे। यही नहीं, हर सप्ताह जालन्धर से अपने चाचा के घर गढ़शंकर, जिसकी दूरी लगभग 105 किलोमीटर है, भी साइकिल से ही जाते थे। वे कहते हैं- 'आज समय बदल चुका है - कम उम्र के बच्चे मोटरसाइकिल से रेस लगाते ऩजर आते हैं। ऐसा करने वाले अपनी जान का जोख़्िाम तो उठाते ही हैं, पर्यावरण को भी नु़कसान पहुँचाते हैं।'

स्कूल में मोटरसाइकिल को नहीं मिलता था प्रवेश

सेवानिवृत्ति के बाद कर्नल राणा 14 साल आर्मी स्कूल में कई पदों पर रहे। इनमें 12 साल का लम्बा दौर बबीना कैण्ट स्थित आर्मी स्कूल में प्रधानाचार्य के रूप में बिताया। कर्नल राणा बताते हैं- 'इन 12 सालों में उनकी पहचान बेहद सख़्त और अनुशासन पसन्द प्रधानाचार्य के रूप में रही। स्कूल में बच्चों द्वारा मोटरसाइकिल लाने की मनाही थी। यही नहीं, विद्यालय सीमा के आसपास तैनात जवानों को भी आदेश थे कि कोई बच्चा मोटरसाइकिल या अन्य वाहन पर दिखे, तो उसकी पूरी जानकारी स्कूल तक पहुँचायी जाए। इस सख़्ती का ही परिणाम था कि उन 12 सालों में विद्यालय के आसपास यातायात व्यवस्था भी दुरुस्त थी और एक भी ऐक्सिडेण्ट की सूचना दर्ज नहीं हुई।' कर्नल कहते हैं- 'यह व्यवस्था नगर के सभी स्कूलों में कर दी जाए, तो यातायात व दुर्घटना सम्बन्धी कई समस्यायों से अपने-आप मुक्ति मिल जाएगी।'

इस मुहिम में आप भी सहयोग दें

वर्षो से साइकिल की सवारी करने वाले कर्नल राणा ने साइकिल को अपनी पहचान बना ली है। पर्यावरण संरक्षण की दिशा में उनका यह प्रयास सराहनीय ़कदम के रूप में समाज के सामने उदाहरण पेश करता है। अपने साथ ही बच्चों का भविष्य सुरक्षित करने के लिये हमें अपना ऩजरिया बदलने की ़जरूरत है। आसपास ऐसा माहौल बनाना होगा, ताकि साइकिल को शान की सवारी का दर्जा मिल सके।

फोटो हाफ कॉलम

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साइकिल से नाप दी 1517 किलोमीटर की दूरी

0 लगातार 60 दिनों तक हीरोपुक चलाकर बनाया था रिकॉर्ड

झाँसी : आज जब हम घर के आसपास जाने के लिये भी साइकिल का प्रयोग नहीं करते, संजय तिवारी 'राष्ट्रवादी' ने झाँसी से खरदोंग ला दर्रा (लद्दाख) तक की दूरी नाप दी। लगभग 22 वर्ष पहले जब पर्यावरण को लेकर इतना हो-हल्ला नहीं होता था, तब भविष्य में इसको लेकर होने वाली परेशानी को भाँपते हुए संजय ने साइकिल के प्रति जागरूकता फैलानी शुरू कर दी थी।

नशामुक्ति अभियान से मिली दिशा

संजय तिवारी ने लगभग 25 वर्ष पहले प्रदेश भर में नशे के कारण होने वाली मौतों का अध्ययन कर इस समस्या को खत्म करने की योजना बनाई और कुछ सहयोगियों के साथ मिलकर 'राष्ट्रीय नशा विरोधी युवा संगठन' बनाया। संगठन को स्थापित करने के लिये कुछ ऐसा करने की आवश्यकता थी, ताकि लोगों का ध्यान इस ओर जाए। इसकी शुरूआत 1992 में 60 दिनों तक लगातार हीरो पुक मोपेड चलाने के साथ हुई। इसमें संजय ने पूरे 60 दिनों तक महानगर के प्रदर्शनी मैदान में मोपेड चलाई। ़जरा सोचिये कितनी चुनौती पेश आती होगी चलती गाड़ी में पेट्रोल डालने, ऑयल बदलने जैसा काम करने में। इन चुनौतियों का सामना करते हुए संजय ने 41 दिन का पुराना रिकॉर्ड तोड़कर सफलता को अपने नाम दर्ज किया।

लम्बे स़फर की दास्ताँ दर्ज हुई 'लिम्का बुक ऑफ व‌र्ल्ड रिकॉर्ड' में

नशा विरोधी अभियान के तहत शुरू किया रिकॉर्ड बनाने का स़फर बाद में पर्यावरण सुरक्षा और साइकिल प्रयोग के सन्देश से जुड़ गया। संजय ने 1993 में साइकिल से भारत भ्रमण किया, उन्होंने साइकिल से इण्डिया गेट से खरदुंगा ला दर्रा तक (1517 किलोमीटर) की दूरी तय की। 20 मार्च 1993 से शुरू यह यात्रा 24 अप्रैल 1993 को खत्म हुई। इस यात्रा में इनका साथ रोहित कश्यप ने दिया। संजय और रोहित का यह कारनामा लिम्का बुक ऑफ व‌र्ल्ड रिकॉर्ड में दर्ज है।

आज भी हमराही है साइकिल

संजय बताते हैं कि वर्षो पुराने साइकिल चलाने के शौ़क को उन्होंने आज भी बरकरार रखा है। साइकिल चलाना उनकी दिनचर्या में शामिल है। बढ़ती व्यस्तता के चलते वाहनों का प्रयोग जरूरी हो गया है, लेकिन कम दूरी तय करने के लिये वे साइकिल का ही प्रयोग करते हैं। उन्होंने झाँसी की जनता से अपील की- 'शान की इस सवारी से मुँह न मोड़ें। भविष्य को सुरक्षित और स्वस्थ बनाने के प्रयास सभी की ओर से होने चाहिये।'

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हिचक तोड़ो-साइकिल से नाता जोड़ो

साइकिल से जुड़ी रोचक बातें

0 दुनिया भर में प्रति सेकेण्ड लगभग 4 साइकिल की बिक्री होती है।

0 हर साल दुनिया भर में लगभग 13 करोड़ साइकिलें बिकती हैं।

0 70 के दशक में इस समय से लगभग एक चौथाई बिक्री होती थी।

लोगों से अधिक साइकिलें

नीदरलैण्ड के एम्सटर्डम शहर में साइकिलों की संख्या कुल आबादी से अधिक है। यहाँ लगभग 70 लाख लोग रहते हैं, जबकि साइकिलों की संख्या 1 करोड़ है।

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आप भी शेयर करें साइकिल से जुड़े किस्से

कुछ दिन पहले कुछ मेहमान घर पर आये। बातों ही बातों में साइकिल का मुद्दा छिड़ गया। आम सवारी की चर्चा इतनी खास हो गयी कि पता ही नहीं चला कि कब शाम से रात हो गयी। भई वाह, साइकिल! आज लोग भले ही तुम्हारा इस्तेमाल कुछ कम करते हों, लेकिन चर्चे आज भी हर जुबान पर हैं।

साइकिल सीखना कोई आसान काम नहीं। इस प्रक्रिया में न जाने कितनी बार गिरना पड़ता है - हाथ-पैर छिलवाने पड़ते हैं। कपड़ों का सत्यानाश होता है, तो कई बार मुँह का भूगोल ही बदल जाता है। और यही चोट यादों की डायरी के हसीन पन्ने बन जाते हैं। आप सभी ने भी साइकिल सीखने में काफी मशक्कत की होगी और आपकी भी कोई कहानी अवश्य होगी। तो चलिये हमसे साझा कीजिये साइकिल सीखने या चलाने से जुड़ी उन खट्टी-मीठी यादों को, जो आज तक आपके दिलों चस्पा हैं। हम आपकी कहानी आपकी फोटो के साथ प्रकाशित करेंगे। अपनी बात सादा का़ग़ज पर लिखें और लिफाफे पर ़कदम दो ़कदम लिखकर जागरण कार्यालय पहुँचाएं।

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साइकिल एक-फायदे अनेक

आज के समय में स्वस्थ रहना अपने आप में बड़ी चुनौती है। ऐसे में आप शरण लेते हैं जिम की। दावे के मुताबिक 21, 31 या 40 दिनों में आपका व़जन घटाने की गारण्टी दी जाती है। इससे प्रभावित होकर आप जिम का रुख भी करते हैं और कड़ी मशक्कत के बाद कुछ किलो व़जन भी घटा लेते हैं, लेकिन उसके बाद व़जन न बढ़ते की गारण्टी कोई नहीं देता। नतीजा, आप अपने पुराने अवतार में वापस आ जाते हैं। एक उपाय है जो आपको स्वस्थ तो रखेगा ही, चुस्त-दुरुस्त भी रखेगा। जी हाँ, कुछ व्यायाम ऐसे होते हैं, जो सम्पूर्ण होते हैं। जैसे साइकिल चलाना, तैरना या दौड़ना। जी हाँ, साइकिल सबसे बड़ा फिटनेस मन्त्र है। आइये जानते हैं साइकिल के महत्व के बारे में।

0 साइकिल को व्यायाम के रूप में अपनाया जा सकता है। समतल जगह पर साइकिल चलाने से थकान भी कम होती है।

0 साइकिल चलाने से घुटनों के दर्द की समस्या से भी मुक्ति मिलती है।

0 यह आसान व्यायाम है, जो किसी भी उम्र के लोग कर सकते हैं।

0 मोटापे से ग्रसित लोग भी साइकिल चला सकते हैं। इससे चर्बी घटने के साथ-साथ रक्त संचार भी तेज होता है।

बीच में बॉक्स

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22 नवम्बर की साइकिल रैली में आपका स्वागत है

झाँसी : 1 नवम्बर को दैनिक जागरण द्वारा छेड़ी गयी मुहिम '़कदम दो ़कदम' में शामिल हुए सहयोगी संगठन और गणमान्य नागरिकों का साधुवाद! इस अभियान को आगे बढ़ाते हुए अगला कार्यक्रम 22 नवम्बर (रविवार) को पूर्वाह्न 11 बजे से आयोजित किया जा रहा है।

यहाँ से गु़जरेगी साइकिल रैली

़कदम दो ़कदम अभियान के तहत साइकिल रैली में स्कूली बच्चे, सामाजिक संगठन और गणमान्य नागरिक भाग लेंगे। साइकिल रैली मुक्ताकाशी मंच से पूर्वाह्न 11 बजे रवाना होगी और जीवनशाह तिराहा, इलाइट चौराहा पहुँच कर वापस जीवनशाह तिराहा, बीकेडी, ध्यानचन्द स्टेडियम होते हुए सतीश नगर (रिफ्यू़जी कॉलनि) स्थित बलिदान पार्क पहुँचेगी, जहाँ स्वास्थ्य शिविर के साथ ही कई अन्य गतिविधियाँ होंगी। आप आ रहे हैं न 22 नवम्बर के पूर्वाह्न 11 बजे मुक्ताकाशी मंच पर - अपने महानगर को स्वच्छ-स्वस्थ-सुरक्षित रहने का सन्देश देने!


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