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निगरानी में बन रहीं अवैध बिल्डिंग

मामला 1 : सैंयर गेट से मिनर्वा की ओर जाने वाले मार्ग पर बन रही बिल्डिंग का मानचित्र फुटकर दुकानों के

By Edited By: Published: Sat, 29 Aug 2015 12:34 AM (IST)Updated: Sat, 29 Aug 2015 12:34 AM (IST)
निगरानी में बन रहीं अवैध बिल्डिंग

मामला 1 : सैंयर गेट से मिनर्वा की ओर जाने वाले मार्ग पर बन रही बिल्डिंग का मानचित्र फुटकर दुकानों के लिए स्वीकृत कराया गया है, जिसमें बेसमेण्ट का प्राविधान नहीं है। इसके बावजूद बेसमेण्ट बनाने का कार्य लगभग पूरा हो गया है। झाँसी विकास प्राधिकरण ने इस बिल्डिंग का कई बार काम रुकवाया। नोटिस भी दिया, लेकिन इन कार्यवाहियों के बीच निर्माण चलता रहा। निश्चित ही जब इस बिल्डिंग और बेसमेण्ट में दुकानें संचालित होने लगेंगी, तो इस मार्ग से निकलना मुश्किल हो जाएगा।

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मामला 2 : जीवनशाह तिराहे से ग्वालियर मार्ग पर एक चार मंजिला इमारत पर तेजी से काम चल रहा है। बिल्डिंग का मानचित्र स्वीकृत है, लेकिन निर्माण मानचित्र के विपरीत किया गया है। व्यावसायिक गतिविधियों के लिए बनाई जा रही इस बिल्डिंग में सेटबैक तक नहीं छोड़ा गया है। जेडीए ने फाइल खोली और नोटिस थमाया, लेकिन इसके बाद कोई कार्यवाही नहीं होने से निर्माण कार्य बदस्तूर जारी बना हुआ है।

मामला 3 : जीवनशाह तिराहा से बीकेडी चौराहा की ओर जाने वाले मार्ग पर संचालित हो रहे मॉल की बिल्डिंग की कहानी तो हैरान करने वाली है। शहर के बीचों-बीच बने इस व्यावसायिक भवन का मानचित्र ही स्वीकृत नहीं है। बताया गया है कि मानचित्र स्वीकृति के लिए जेडीए में आवेदन किया गया, लेकिन मालिकाना ह़क से अधिक भूमि पर निर्माण का मानचित्र होने से जेडीए ने आपत्ति लगाकर वापस कर दिया। इसके बाद जेडीए अ़फसरों ने पलट कर नहीं देखा - बिल्डिंग बन गई और किराए पर भी दे दी गई। अब यहाँ आने वाले वाहन सड़क पर खड़े रहते हैं।

मामला 4 : इलाइट चौराहा से कुछ दूरी पर स्थित 48 चेम्बर के सामने आवासीय मानचित्र पर एक बिल्डिंग का निर्माण किया जा रहा है। बिल्डिंग का स्वरूप ही बता रहा है कि उसका उपयोग व्यावसायिक गतिविधियों में होगा। बिल्डिंग के लिए बेसमेण्ट बनाया गया है, जबकि आवासीय भवन में इतना विशाल बेसमेण्ट बनाया नहीं जा सकता है। जेडीए ने नोटिस देकर काम रुकवाने का अल्टिमेटम दिया, लेकिन काम चालू है।

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झाँसी : ये बिल्डिंग्स तो सिर्फ उदाहरण हैं, वरना महानगर में ऐसे भवनों की श्रृंखला काफी लम्बी होती जा रही है, जो जेडीए अधिकारियों की निगरानी में ही अवैध रूप से आकार ले रही हैं। विभाग की इस कमजोर कार्यवाही से महानगर का भविष्य दाँव पर लग गया है। अवैध व्यावसायिक भवनों का वास्तविक स्वरूप जब सामने आएगा, तब लोगों को इसका खामियाजा भुगतना पड़ेगा। निश्चित ही यह भवन राह का रोड़ा बन जाएंगे और जैम से जूझता शहर पूरी तरह से जैम हो जाएगा। महानगर की सूरत को बिगाड़ने का यह खेल मुट्ठीभर बिल्डर खेल रहे हैं। इन बिल्डर्स को न नियमों की परवाह है और न ़कानून का भय। जेडीए अ़फसरों की खामोशी इन्हें और बल दे रही है। विभागीय अ़फसर नोटिस देकर अपना कवच तैयार कर लेते हैं, लेकिन इसके आगे की कार्यवाही नहीं करते। दरअसल, नोटिस देने के बाद भी अगर काम होता है, तो ऐसे भवनों को सील किया जाना चाहिए, परन्तु जेडीए में जानबूझकर इन फाइलों को दबा दिया जाता है। इससे महानगर अव्यवस्थाओं के भँवर जाल में फँसता जा रहा है। अनियमित विकास के कारण सड़क पर लोगों का चलना मुश्किल हो गया है - और भी मुश्किल हो जाएगा आने वाले समय में

नियम से बनें तो विकास..

ऐसा नहीं है कि मल्टिस्टोरी बिल्डिंग बनने से महानगर की व्यवस्थाएं चौपट होती हैं, लेकिन इसके लिए नियम-कायदों का पूरी तरह से पालन करना आवश्यक है। नियमत: व्यावसायिक भवन बनाने से पहले वहाँ संचालित होने वाली गतिविधियों व लोगों के जमावड़े का आकलन करते हुए वाहन पार्किंग की व्यवस्था करना अनिवार्य होता है, लेकिन ़जमीन का अधिक से अधिक व्यावसायिक उपयोग करने के लालच में बिल्डर पार्किंग के स्थान का भी उपयोग करने लगते हैं (या दिखाने के लिए अपर्याप्त पार्किंग बना देते हैं) और यहीं से समस्या शुरू हो जाती है। वैसे झाँसी विकास प्राधिकरण को ऐसे भवनों की निगरानी रखनी चाहिए और विभागीय अधिकारी ऐसा करते भी हैं, लेकिन यह निगरानी केवल स्वयं हित साधने तक ही सीमित रहती है। यदि यह सच नहीं है तो कोई कारण नहीं होता कि नोटिस देने के बाद भी भवन बनता रहे और सील किए जाने की कार्यवाही न की जाए।

नोटिस यानी सेटिंग

मानचित्र के विपरीत या पूरी तरह से अवैध निर्माण होने पर झाँसी विकास प्राधिकरण द्वारा नोटिस दिया जाता है, लेकिन अब इसमें भी 'खेल' होने के संकेत मिल रहे हैं। बताया जाता है कि नोटिस देने से पहले रजिस्टर व कम्प्यूटर पर दर्ज करना अनिवार्य होता है। इसके बाद चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी के माध्यम से नोटिस चस्पा कराया जाता है, लेकिन कुछ अवर अभियन्ता अलग ही खेल कर रहे हैं। अन्दरखाने के सूत्र बताते हैं कि कुछ अवर अभियन्ता अपने सिपहसालारों के माध्यम से नोटिस भिजवाकर दबाव बनाते हैं, यह नोटिस न रजिस्टर में चढ़ा होता है और न कम्प्यूटर में दर्ज किया जाता है। इसके बाद शुरू होता है सेटिंग का खेल। मामला सेट होने के बाद नोटिस को गायब कर दिया जाता है।

नहीं होती ध्वस्तीकरण की कार्यवाही

अगर कोई मानचित्र के विपरीत निर्माण कराता है, तो जेडीए द्वारा शमन शुल्क वसूल कर कार्यवाही से इतिश्री कर लेता है। कुछ छोटी कमियों में तो शमन शुल्क जमा कराने का प्राविधान समझ में आता है, लेकिन जब निर्माण इतना विपरीत किया गया हो कि जनता के लिए परेशानी खड़ी हो जाए, तो ऐसी स्थिति में शमन से भरपाई करना समझ से परे है। इसका प्राविधान भी नहीं है। ऐसे निर्माण को ध्वस्त करना ही एकमात्र विकल्प रहता है, लेकिन शायद ही जेडीए ने ध्वस्तीकरण की कभी कार्यवाही की हो। इससे अवैध निर्माण करने वालों के हौसले बुलन्द क्यों न हों?


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