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शक्ति का साक्षात स्वरूप हैं माँ भवतारिणी

By Edited By: Published: Mon, 07 Apr 2014 01:08 AM (IST)Updated: Mon, 07 Apr 2014 01:08 AM (IST)
शक्ति का साक्षात स्वरूप हैं माँ भवतारिणी

नगर में खटकयाना मोहल्ले की सँकरी गलियों में स्थापित है महाकाली मन्दिर। यह स्थान तन्त्रपीठ के साथ साधना स्थल भी है। मन्दिर में माँ भवतारिणी महाकाली की प्रतिमा 3 फीट ऊँची है। झाँसी क्षेत्र में महाकाली की यह एकमात्र मूर्ति है, जो पूर्वाभिमुख है। महाकाली के चरणों में काल अर्थात महादेव दक्षिणाभिमुख स्थापित हैं। माँ का स्वरूप चतुर्भुज है और अपने कर (हाथ) में अभय, खड्ग एवं नरमुण्ड की माला लिये हुए हैं। माँ काली का रूप पूरे श्रृंगार कंगन, बाजूबन्द, हार, नथ, पायल, बिछिया व कुण्डल से सुशोभित है। भवतारिणी माँ केवल बनारसी साड़ियों को ही धारण करती हैं।

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काले पत्थर से बनी है माँ की मूर्ति

माँ भवतारिणी के दर्शन एक छोटे से कमरे में होते हैं। साधारण से कमरे में माई का अवतार देखने के लिये दूर-दूर से लोग आते हैं। महाकाली के पूर्वाभिमुख प्रतिमा के सिद्ध पीठ पूरे देश में मात्र 3 मन्दिर ही हैं। झाँसी के अलावा एक कोलकाता और दूसरा दिल्ली में स्थापित हैं। महाकाली की इस मूर्ति की विशेषता है कि यह काले पत्थर से बनी हुई है और माँ के पैरों में काल की मूर्ति सफेद संगमरमर से बनी हुई है। माँ भवतारिणी की इस प्रतिमा में माँ के चरणों के दर्शन होते हैं, जो आगे की ओर चलने की स्थिति में हैं। देवी प्रतिमा के दाई ओर हनुमान व बाई ओर काल भैरव व दो योगिनी जया और विजया भी विद्यमान हैं। यहाँ आने वाले श्रद्धालुओं के अनुसार माँ भवतारिणी दिन में तीन रूपों में दर्शन देती हैं।

निषेध है पशु बलि

भक्त आस्था के वशीभूत होकर कुछ लोग देवी को पशु बलि देकर माँ को प्रसन्न करने का प्रयास करते हैं, लेकिन भवतारिणी मन्दिर में महाकाली सात्विक रूप में विराजित हैं। दया, करुणा, ममता व प्रेम की प्रतीक माँ काली पर पशु बलि निषेध है। माँ के चरणों में मात्र नींबू की बलि दी जाती है। बलि प्रथा को समाप्त करने के लिये और स़फाई को ध्यान में रखते हुए मन्दिर परिसर में नारियल की बलि भी निषेध की गई है। मान्यतानुसार माँ काली को गुड़हल के फूल अत्यधिक पसन्द है। इस मान्यता के चलते भक्त अपनी साम‌र्थ्य के अनुसार चढ़ावा चढ़ाते हैं, लेकिन साथ ही जवा कुसुम (गुड़हल) भी अवश्य चढ़ाते हैं।

अन्धविश्वास के लिए जगह नहीं

मन्दिर की देख-रेख करने वाले मन्दिर के पुजारी विशाल तैलंग (भैया महाराज) बताते हैं कि माँ का दरबार भक्तों की आस्था के लिये है, न कि अन्धविश्वास को बढ़ावा देने के लिये। मन्दिर में किसी भी प्रकार का अन्धविश्वास नहीं माना जाता है। दान में आये चढ़ावे की पूरी धनराशि ़गरीब कन्याओं के विवाह और ़गरीब बच्चों की पढ़ाई में लगा दिया जाता है।

मन्दिर की ख़्ास बातें

0 21 कन्याएं करती हैं दिन-रात माँ की सेवा

0 माँ महाकाली की आरती बंगाली पद्धति से की जाती है।

0 माँ के दरबार में सालों से जल रही है अखण्ड ज्योति।

0 बंगाली, मराठी, गुजराती व अन्य तरीकों से किया जाता है माँ का भव्य श्रृंगार।

0 मन्दिर में कभी नहीं लगाये जाते हैं ताले।

0 सप्तमी की रात 12 बजे होता है महामाई का हवन।

फाइल : शिखा पोरवाल

समय : 5:30

6 अप्रैल 2014


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