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आज भी लकड़ी-उपलों से बनता मिडडे मील

उरई, जागरण संवाददाता : परिषदीय स्कूलों में बच्चों को मध्यांह भोजन देने की व्यवस्था है। इस पर सरकार क

By Edited By: Published: Sat, 23 Jul 2016 05:10 PM (IST)Updated: Sat, 23 Jul 2016 05:10 PM (IST)
आज भी लकड़ी-उपलों से बनता मिडडे मील

उरई, जागरण संवाददाता : परिषदीय स्कूलों में बच्चों को मध्यांह भोजन देने की व्यवस्था है। इस पर सरकार का लाखों रुपये खर्च होता है। जिले में औसतन हर माह 70 लाख रुपये कंवर्जन कास्ट के रूप में खर्च होते हैं लेकिन इसका वास्तविक लाभ बच्चों को नहीं मिल पाता है। मिडडे मील बनाये जाने में कोताही की जाती है। इसके साथ ही जिन स्कूलों में मिडडे मील बनता है वहां पर गैस कनेक्शन होने के बावजूद लकड़ी और उपलों से भोजन बनाया जाता है। जिसके चलते बच्चे धुएं के बीच पढ़ने को मजबूर रहते हैं। इतना ही नहीं हाल में ही फल व दूध वितरण की योजना संचालित की गयी है इसमें भी लापरवाही की जाती है। मिडडे मील योजना भी भ्रष्टाचार से अछूती नहीं है।

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परिषदीय स्कूलों के प्रति बच्चों व उनके अभिभावकों का आकर्षण बढ़े इसके लिए सरकार स्कूलों में सुविधाएं बढ़ाये जाने पर जोर दे रही है। निशुल्क पाठ्य पुस्तकों के साथ ही दोपहर का भोजन बच्चों को दिये जाने की व्यवस्था है लेकिन लापरवाही के चलते यह योजना फलीभूत साबित नहीं हो रही है। स्कूलों में भोजन बनाने के लिए गैस कनेक्शन उपलब्ध करवा दिये गये हैं ताकि बच्चों को धुएं के बीच न पढ़ना पड़े, जिले में पांच स्कूलों को छोड़कर सभी में गैस कनेक्शन हैं लेकिन रसोई गैस का प्रयोग किया ही नहीं जाता है। ग्रामीण क्षेत्र के स्कूलों में आज भी लकड़ी और उपलों पर ही भोजन पकाया जाता है नतीजतन धुएं के बीच बच्चों का पढ़ना मजबूरी बन गया है। दोपहर के भोजन में भी खेल चलता है। बहुत से स्कूलों में नियमित भोजन नहीं बनता है बल्कि उसे कागजों पर बना दिखा जाता है। इसका खाद्यान्न व कंवर्जन कास्ट प्रधान व प्रधानाध्यापक मिली भगत से निकाल लेते हैं। अभी हाल में ही दूध और फल वितरित किये जाने की योजना भी संचालित की गयी है लेकिन फल व दूध बांटा ही नहीं जाता है। बच्चों का हक मारने में भी संकोच नहीं किया जाता है। मिडडे मील योजना में भी जमकर भ्रष्टाचार होता है लेकिन देखने की फुर्सत किसी को नहीं है।

स्कूलों में डेढ़ लाख बच्चे हैं नामांकित

जिले मे 1244 प्राथमिक और 545 जूनियर विद्यालय हैं जिनमें 150932 बच्चे नामांकित हैं। इनके लिए महीने में 70 लाख रुपये कंवर्जन कास्ट दी जाती है। खाद्यान्न की व्यवस्था अलग होती है। इनमें से बड़ी संख्या में स्कूलों में नियमित भोजन नहीं बनाया जाता है। हालांकि बेसिक शिक्षा विभाग का कहना है कि प्रतिदिन 15 से 20 स्कूलों में भोजन न बनने की सूचना मिलती है।

पूर्व प्रधानों पर बाकी है 6 करोड़ रिकवरी

मिडडे मील में भी भ्रष्टाचार हावी है। इसका जीता जागता उदाहरण यह है कि वर्ष 2005 से 2010 के बीच के कार्यकाल के 364 प्रधानों पर लगभग 6 करोड़ रुपये कंवर्जन कास्ट की रिकवरी होनी है। हालांकि विभाग को इसमें अब तक सफलता नहीं मिली है।

जिम्मेदार बोले

जिन स्कूलों में मिडडे मील न बनने की सूचना मिलती है तो तुरंत ही खंड शिक्षा अधिकारी को अवगत कराया जाता है। साथ ही यह भी निर्देश हैं कि जानबूझकर अगर भोजन नहीं बनाया गया है तो कार्रवाई की जाये। बच्चों के भोजन में किसी तरह की लापरवाही नहीं होने दी जायेगी।

-गनपत लाल प्रभारी बीएसए


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