बेटियों के लिए छेड़ा अभियान
आठवीं पास राममूर्ति समाज में फैला रही उजियारा राजीव अवस्थी, उरई : बेटियों के बिना सृष्टि की कल्पन
आठवीं पास राममूर्ति समाज में फैला रही उजियारा
राजीव अवस्थी, उरई : बेटियों के बिना सृष्टि की कल्पना ही अधूरी है। अगर बेटियां नहीं होंगी तो बेटे कहां से आएंगे, बस इतनी सी बात लोगों की समझ में क्यों नहींआती ? ऐसे विचार ने ही सिर्फ आठवीं तक पढ़ी राममूर्ति का जीवन बदल दिया।
बीहड़ क्षेत्र के हैदलपुरा (माधौगढ़) की निवासी राममूर्ति भी अन्य गृहणियों की तरह ही जीवन व्यतीत कर रही थी। परन्तु कोख तक में मारी जा रहीं बेटियां की पीड़ा उन्हें बार बार उद्वेलित कर रही थी। इसी विचार को लेकिन उन्होंने महिलाओं को जागरूक करने की ठानी। अब वह माधौगढ़, रामपुरा के दुर्गम बीहड़ में बसे गांवों में लगभग रोज जाती हैं और न सिर्फ महिलाओं बल्कि पुरुषों को भी यह बात समझाती हैं कि एक बेटी परिवार के लिए कितना अहम है। उनके इस अभियान में धीरे धीरे लोग भी जुड़ने लगे हैं। कई महिलाओं को बंधन बांधकर संकल्प दिलाती हैं कि चाहे बेटा हो या बेटी, उसमें भेदभाव नहीं होगा।
राममूर्ति कहती हैं कि बेटी तो वैसे भी दो परिवारों की उजियारी होती है। इसलिए बढ़ावा तो बेटियों को मिलना चाहिए परंतु पता नहीं किस रूढि़वादी सोच के चलते लोग बेटों की चाहत में बेटियों को अनदेखा कर देते हैं। शर्म की बात यह है कि जन्म लेने से पहले ही कोख में ही उन्हें मार डाला जाता है। इसमें पढ़े लिखे लोग भी शामिल हैं। दो बेटों अभिनेन्द्र सिंह व रविकांत सिंह की मां राममूर्ति कहती हैं कि बेटी नहीं होने से आज उन्हें कई तीज-त्योहारों पर बेटी की कमी महसूस होती है। इसलिए बेटी के बिना परिवार अधूरा है।
राममूर्ति ने बताया कि उनकी शुरुआत छोटे स्तर से हुई थी परंतु बाद में परमार्थ संस्था के इसी तरह के अभियान को देखकर उनके साथ मिलकर उन्होंने गांव-गांव अभियान छेड़ दिया। उन्हें खुशी होती है अब बेटी का जन्म होने पर भी कई लोग उनके पास मिठाई लेकर पहुंचते हैं।