बीसैया को भी भगीरथ का इंतजार
मदन मोहन शर्मा, हाथरस 31 अक्टूबर 2014 को लगा कि मिल गया कोई भगीरथ। अहवरनपुर की ओर विकास की गंग
मदन मोहन शर्मा, हाथरस
31 अक्टूबर 2014 को लगा कि मिल गया कोई भगीरथ। अहवरनपुर की ओर विकास की गंगा बहेगी तो धारा नगला बीसैया को भी छुएगी, मगर तब से अब तक यह सिर्फ ख्वाब ही बना हुआ है। नगला बीसैया के हालात देख आप भी दंग रह जाएंगे। गलियों में खड़ंजे हैं और नालियां भी, मगर जल निकासी का कोई बंदोबस्त नहीं। ऐसे में पानी कभी किसी खेत में तो कभी किसी के खेत में छोड़ दिया जाता है। इसे लेकर आए दिन झगड़े-फसाद भी होते रहते हैं। सरकारी सुविधा के नाम पर सिर्फ यहां एक प्राथमिक विद्यालय है। पो¨लग बूथ तक का यहां प्रबंध नहीं है। वोट डालने के लिए लोगों को अहवरनपुर जाना पड़ता है। डेढ़ किमी. सफर तय करने के फेर में आधे ही लोग वोट डालने जा पाते हैं।
सांसद आदर्श ग्राम योजना में चयनित अहवरनपुर के चार मजरे हैं। इनमें नया बास, छोटा ताल, बड़ा ताल व नगला बीसैया हैं।
दैनिक जागरण की टीम ने शुक्रवार को नगला बीसैया पहुंचकर वहां का जायजा लिया। लोगों को जब टटोला गया तो उनके दिल के गुबार बाहर निकले। करीब एक हजार आबादी वाले इस गांव के ज्यादातर लोगों का यही कहना था कि उनका गांव भी अहवरनपुर का मजरा है। वोट की राजनीति के चलते विभिन्न जनप्रतिनिधि अहवरनपुर में तो विकास कार्य कराते रहे हैं, मगर उनके गांव की ओर कभी किसी ने ध्यान नहीं दिया। उनके गांव से अहवरनपुर के लिए जाने वाला डेढ़ किलोमीटर का रास्ता भी कच्चा और ऊबड़-खाबड़ है। इसे पक्का कराने के लिए कई बार प्रयास किए गए, लेकिन किसी जनप्रतिनिधि ने सुध नहीं ली। बच्चों की शिक्षा के लिए गांव में स्कूल के लिए भी लंबा संघर्ष चला। एक बार स्कूल स्वीकृत हुआ तो उसे अन्यत्र भेज दिया गया। बाद में फिर प्रयास हुए तब कहीं जाकर यहां 2012 में प्राइमरी स्कूल बन सका। गांव में गलियां तो बनी हैं, लेकिन उनकी कभी सफाई न होने से गंदगी से अटी पड़ी हैं। गंदा पानी घरों के सामने ही एकत्रित होने से नींव को कमजोर कर रहा है। गांव के खारिज पानी की निकासी का कोई प्रबंध न होने से यह कभी किसी के खेत में तो कभी किसी के खेत में प्रवेश कर जाता है। इसे लेकर आए दिन विवाद होते रहते हैं। लोगों का यहां तक कहना था कि अहवरनपुर में भले ही चार चांद लगे हों, लेकिन इस मजरे पर कभी प्रधान ने भी ध्यान नहीं दिया। गांव में आंगनबाड़ी केंद्र तक की व्यवस्था नहीं है। ग्रामीणों ने खुद सड़क बनाने में श्रमदान किया, तब जाकर शहर की ओर जाने वाली सड़क जरूर मंडी समिति से बन गई। सांसद ने जब साढ़े छह महीने पूर्व अहवरनपुर गांव को गोद लेने की घोषणा की तो इससे नगला बीसैया के लोगों को भी काफी खुशी हुई थी। उनका मानना था कि सांसद जब अहवरनपुर का विकास कराएंगे तो मजरा होने के नाते उनके गांव पर भी मेहरबानी जरूर होगी। अब जब सांसद ने अहवरनपुर की ओर ही रुख नहीं किया है तो इनके सपने भी टूटने लगे हैं।
इनसेट-1
अहवरनपुर का इंफोग्राफिकल चार्ट
गांव की आबादी- 4256
पुरुष-2368
महिला-1888
कुल परिवार- 0724
प्राथमिक विद्यालय- 0003
आंगनबाड़ी केंद्र- 0006
स्वास्थ्य उपकेंद्र- 0001
कुपोषित बच्चे- 0029
शौचालय- 0047
बीपीएल परिवार- 0170
बैंक खाताधारक- 0308
कृषि योग्य भूमि- 467.466 हेक्टेयर
सार्वजनिक भूमि- 005.477 हेक्टेयर
पशुओं की संख्या- 2302
कच्चे मकान- 0005
राशन कार्ड धारक-1025
ग्रामीणों का दर्द
अब गांव में स्कूल बन गया है तो यहां पो¨लग बूथ भी बनना चाहिए। ताकि ज्यादा से ज्यादा मतदाता अपने मताधिकार का प्रयोग कर सकें। मतदान प्रतिशत बढ़ाकर ही हम अच्छा जनप्रतिनिधि चुन सकते हैं। हमने गांव के विकास के लिए सदैव संघर्ष किया है और करते रहेंगे।
-चौ. राधेश्याम, पूर्व जिला पंचायत सदस्य।
गांव को सांसद आदर्श योजना में चुना गया है। इसलिए हमें गांव में जलनिकासी की समस्या के समाधान की बड़ी उम्मीद है। अगर यह प्रबंध हो गया तो गांव के मकान सुरक्षित रह पाएंगे। यहां पर सफाई कर्मी को सप्ताह में एक बार सफाई कार्य करने आना चाहिए।
-राजकुमार शर्मा, ग्रामीण नगला बीसैया।
अहवरनपुर हमारी पंचायत है। ऐसे में किसी भी काम से जाने पर कच्चे धूलभरे रास्ते से गुजरना पड़ता है। यह कच्चा भाग सुधर जाए तो एक बड़ी समस्या का समाधान हो जाएगा।
-राजेंद्र कुमार, ग्रामीण नगला बीसैया
क्षेत्र की जनता ने सांसद को चुना है तो उन्हें जनता के हर दुखदर्द में शामिल होना चाहिए। पिछले एक साल में एक बार भी आकर कभी सुध नहीं ली।
-गुलवीर ¨सह, ग्रामीण नगला बीसैया।