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राजेश का गैंग रजिस्टर्ड, मावी का नहीं

By Edited By: Published: Wed, 17 Sep 2014 11:56 PM (IST)Updated: Wed, 17 Sep 2014 11:56 PM (IST)
राजेश का गैंग रजिस्टर्ड, मावी का नहीं

हाथरस : अपराध जगत में जिस शार्प शूटर ब्रजेश मावी की पश्चिमी उ.प्र. में धाक है, उसकी मथुरा कोतवाली में हिस्ट्रीशीट तो खुली है, मगर उसका गिरोह पुलिस रिकार्ड में कहीं रजिस्टर्ड नहीं है। हां राजेश टोंटा का गिरोह यहां जरूर रजिस्टर्ड है, मगर इसकी पुलिस अधिकारियों को ही खबर नहीं। देखा जाए तो अपराधियों के रिकार्ड मेंटेन में हाथरस की हालत मथुरा से भी बुरी है। यहां डीसीआरबी (जिला अपराध अभिलेख शाखा) निठल्ले पुलिस कर्मियों की मौज-मस्ती का केंद्र बनकर रह गई है। एसपी को खुद नहीं पता कि जनपद में कितने आपराधिक गैंग रजिस्टर्ड हैं। कोतवाल राजेश की क्राइम हिस्ट्री बताने में बचते नजर आए। उन्होंने गिरोह रिजस्टर्ड होने की बात से भी इन्कार किया। साफ है कि यहां भी कुछ गड़बड़ है।

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कुख्यात ब्रजेश मावी का आपराधिक कार्यक्षेत्र भले ही दिल्ली, मेरठ, गाजियाबाद आदि रहे हों, मगर उसका केंद्र शुरू से ही मथुरा रहा। मथुरा कोतवाली में उसकी हिस्ट्रीशीट खुली हुई है। उस पर करीब पांच हत्या सहित, लूट, अपहरण आदि के 19 मुकदमे हैं। पुलिस सूत्रों की मानें तो बीस साल से अपराध की दुनिया में सक्रिय है मावी गिरोह। चूंकि कई वारदातों को उसने जेल के अंदर रहते हुए भी अंजाम दिलवाया था। इस सब के बावजूद मथुरा जिले के पुलिस रिकार्ड में उसका गिरोह रजिस्टर्ड नहीं है। मथुरा के एसपी क्राइम अशोक कुमार ने बताया कि जनपद में बीस गिरोह रजिस्टर्ड हैं। इनमें एक अंतरराज्यीय गिरोह सलीम मेव का है। यह गिरोह भरतपुर से संचालित होता है और उसका आपराधिक कार्यक्षेत्र यूपी के अलावा हरियाणा, राजस्थान आदि प्रांत हैं। पांच गिरोह ऐसे भी हैं जिनका संचालन आसपास के जिलों से होता है। चौदह गिरोह मथुरा से ही संचालित हैं। इनमें मावी का कोई गिरोह नहीं है। साफ है कि मावी को लेकर मथुरा पुलिस निष्क्रिय बनी रही है।

हाथरस में पुलिस के दो ही उच्च अफसर हैं एसपी व एएसपी। दोनों ही यह नहीं बता पाए कि जनपद में कितने आपराधिक गिरोह रजिस्टर्ड हैं। यह भी नहीं बता सके कि राजेश का गिरोह रजिस्टर्ड है या नहीं। जिस कोतवाली सदर क्षेत्र में राजेश की हिस्ट्रीशीट खुली है, वहां के कोतवाल ने यह तो कहा कि राजेश माफिया के रूप में चिह्नित है, मगर उसका गिरोह रजिस्टर्ड होने से इन्कार किया।

वैसे पुलिस सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार राजेश का गिरोह वर्ष 2008 में रजिस्टर्ड हुआ था। पुलिस रिकार्ड में इसका नंबर डी-7 है और इसमें पांच प्रमुख सदस्य हैं।

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कैसे रुकेगी गैंगवार!

अगर ब्रजेश मावी के दोनों साथियों की बातों पर यकीन कर लिया जाए कि राजेश ने ही ब्रजेश मावी को मौत के घाट उतारा है तो यह साफ है कि मावी के गुर्गे भी शांत नहीं बैठेंगे। ऐसे में गैंगवार के आसार साफ बनेंगे। इसे रोकना पुलिस के सामने कड़ी चुनौती होगी। चूंकि राजेश का गैंग तो रजिस्टर्ड है। उससे गुर्गो को तो पुलिस चिह्नित कर कब्जे में ले भी सकती है, मगर मावी के गुर्गो तक कैसे पहुंचेगी। उसका तो गैंग रजिस्टर्ड ही नहीं है। पुलिस को अपनी इस चूक की बड़ी कीमत चुकानी पड़ सकती है।


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