न पढ़ने का ढंग न पढ़ाने का
संवाद सहयोगी, हाथरस : अनिवार्य शिक्षा मिशन को पूरा करने के लिए सरकार अरबों रुपये खर्च करती है, मगर प्राइमरी स्कूलों में पढ़ाई पटरी पर ही नहीं है। शिक्षा का स्तर इतना गिर चुका है कि उसके और गिरने की गुंजाइश ही नहीं बची है। हाल यह है कि बच्चे विद्यालयों में पहले पहुंच जाते हैं और गुरुजी बाद में आते हैं।
गांव छौंड़ा में जब दैनिक जागरण की टीम पहुंची तो प्राथमिक विद्यालय छौंड़ा में बच्चे गेट पर खडे़ होकर गुरुजी का इंतजार कर रहे थे। किसी प्रकार गुरुजी विद्यालय आ गए तो बच्चों के हाथ में कलम की जगह क्लास की सफाई करने के लिए झाड़ू थमा दी। बिना मन के बच्चों ने कक्षाओं में झाडू लगाई और शिक्षा पाने के लिए बैठ गए। शायद इन्हीं वजहों से ग्रामीण इलाकों में अभिभावकगण अपने बच्चों को प्राथमिक विद्यालयों में भेजने से कतराते हैं। दूसरी ओर जब गांव हीरापुर का नजारा देखा तो वहां विद्यालय खुलने के समय से काफी देर तक सन्नाटा पसरा हुआ था। समय से विद्यालय न खोलने पर बच्चों को क्या शिक्षा दी जाएगी। यह बात सभी के जेहन में उठ रही है। इसके अलावा गांव दरियापुर में विद्यालय के झाड़ने के बाद बचे कचरे को एमडीएम के चूल्हे में डाल दिया गया और गंदगी के बीच एमडीएम बनाने वाली महिलाएं खाना बनाने की तैयारी करने लगीं। सवाल पैदा होता है कि विद्यालयों में बच्चों के शिक्षा और स्वास्थ्य से हो रहे खिलवाड़ का जिम्मेदार कौन होगा? यह एक सोचने का विषय है।