नामों से धोखा मत खाना
प्रमोद सिंह, हाथरस :
शहर में तमाम बाजार ऐसे हैं जिनके नाम सुनते ही आप चौंक जाएंगे। गोला वाली गली में गोला नहीं मिलता, चूड़ी गली में कन्फेक्शरी की दुकानें हैं तो वहीं बर्फखाने में ट्रांसपोर्टर व पीतल का काम होता है। अलीगढ़ रोड पर लेबर कालोनी है, लगेगा कि यहां श्रमिक रहते होंगे, लेकिन ऐसा नहीं है। वहां तमाम कपड़ा व्यवसायी और व्यापारी रहते हैं।
अगर आप नाम से इन बाजारों और मोहल्लों की तस्वीर अपने दिमाग में बना रहे हैं तो ठहरिए। यहां नाम के अनुरूप न तो बाजार हैं और न ही मोहल्ले। अलीगढ़ रोड पर पेट्रोल पंप के सामने बनी है लेबर कालोनी। नाम से लगेगा कि इसमें श्रमिक रहते होंगे। लेकिन ऐसा नहीं है, यहां व्यापारी और रेडीमेड का काम करने वाले लोग रहते हैं। पूर्व ऊर्जामंत्री रामवीर उपाध्याय का आवास भी इसी कालोनी में बना हुआ है। अब चलते हैं जरा शहर की तरफ । बर्फखाना गली है, लेकिन वहां पर आपको ढूंढ़ने से भी बर्फ नहीं मिलेगी। यहां पीतल के बर्तन आदि बनाने का काम होता है। शहर के बीच चूड़ी वाली गली में जनरल स्टोर और अन्य कामकाज की दुकानें हैं। गोला गली में महिलाओं के श्रृंगार का सामान मिलता है। वहीं पत्थर वाला बाजार है, बाहर से आने वाले लोग समझते हैं यहां पत्थर मिलते होंगे, लेकिन ऐसा नहीं है। यहां कपड़े और बर्तनों की दुकानें हैं। घास की मंडी से घास गायब है, जबकि कभी यहां पीपल की पत्ती और घोड़ों के लिए घास आदि मिलती थी। ऐसे ही रूई की मंडी में परचून आदि की दुकानें हैं। चक्की बाजार में रेडीमेड फैक्ट्री और दुकानें हैं। कभी यहां चक्कियां हुआ करती थीं। दिल्ली वाले मोहल्ले का नाम सुनकर लोग सोचते हैं यहां दिल्ली आदि के लोग रहते होंगे पर ऐसा नहीं है। काम कुछ और नाम कुछ और होने से बाहर से आने वाले लोगों के दिमागों में तस्वीर कुछ और बनती है। तमाम परेशानियां बाहर से आने वाले लोगों को होती है।
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