चुनावी रथ के सारथी बने बीएलओ
आनंद मिश्रा, हरदोई : पंचायत चुनावों का ऐलान फिलहाल नहीं हुआ है, लेकिन दावेदारों को भला चैन कहां। छ
आनंद मिश्रा, हरदोई :
पंचायत चुनावों का ऐलान फिलहाल नहीं हुआ है, लेकिन दावेदारों को भला चैन कहां। छोटी संसद की जंग जीतनी है, सो समीकरण अभी से साध रहे हैं। दावेदार पूरे साल भले ही आंगनबाड़ी कार्यकत्रियों, आशा बहुओं को दुत्कारते रहे हों और मास्टर साहब की शिकायत करते रहे हों, लेकिन अब इन पर दुलार बरसाने में कोई कसर नहीं छोड़ी जा रही। कारण यह कि मतदाता सूचियों के पुनरीक्षण का कार्य चल रहा है और इसमें अहम जिम्मेदारी उक्त कर्मचारियों की ही है। लिहाजा चुनावी रथ को विजयश्री तक पहुंचाने के लिए बीएलओ को सारथी बना कर साधने की हर कोशिश हो रही है।
वर्ष 2010 के अक्तूबर में पंचायत चुनाव हुए थे। इस लिहाज से आने वाले अक्तूबर में पंचायत चुनाव होने की संभावना है। चूंकि इस बार पंचायतों का पुनर्गठन और परिसीमन नए सिरे से हुआ है, लिहाजा नए दावेदार भी तैयार हो गए हैं। पंचायत चुनावों को जीतने के लिए दावेदार कोई कसर बाकी नहीं रख रहे। पंचायत चुनाव में एक-एक वोट की अहमियत होती है। शायद यही कारण है कि दावेदार चुनावी हलचल तेज होने से पहले ही हो रहे पुनरीक्षण कार्य से ही निशाना साधने में लग गए। दरअसल इन दिनों पंचायत निर्वाचक नामावलियों के पुनरीक्षण का कार्य चल रहा है। 13 जुलाई तक यह कार्य चलेगा। इस दौरान मतदाता सूचियों में नए नाम दर्ज कराने के साथ ही नाम में संशोधन का कार्य भी किया जा रहा है। इस कार्य की जिम्मेदारी बीएलओ यानि बूथ लेबिल अफसरों को सौंपी गई है। यह कार्य जिन कर्मचारियों के हवाले हैं अब उनमें ही दावेदारों को भाग्य विधाता नजर आ रहे हैं। हर दावेदार की कोशिश है कि पुनरीक्षण कार्य करने वाले कर्मचारी उनके हिसाब से वोटों को बढ़ाने-हटाने का कार्य करें।
बीएलओ बनवाने में भी खूब हुई मशक्कत : चुनाव लड़ने का सपना संजोए दावेदार जीत हासिल करने के लिए किसी भी हद तक जाने को तैयार हैं। हाल यह है कि पुनरीक्षण कार्य में लगाए गए बीएलओ भी बनवाने में खूब उठापटक की गई। उठापटक करने के कारणों का उल्लेख ऊपर हो ही चुका है। मन मुताबिक बीएलओ की तैनाती के लिए न सिर्फ धन खर्च किया गया, बल्कि सिफारिशों का दौर भी बड़े पैमाने पर चला। तहसीलों से जुड़े विश्वस्त सूत्रों की मानें तो बीएलओ अधिकतर जगहों पर मौजूदा प्रधानों के करीबी लोगों को ही बनाया गया है। इससे इतर नवगठित पंचायतों में मजबूत दावेदारों ने सत्ता की आड़ लेकर बीएलओ बनवाए हैं।
यह कर्मचारी बनाए जाते हैं बीएलओ : बूथ लेबिल अफसर के रूप में आंगनबाड़ी कार्यकत्री, आशा बहू, सहायक अध्यापक-अध्यापिकाओं को लगाया जाता है। आंगनबाड़ी कार्यकत्री और आशा बहू आम तौर पर ग्राम प्रधान की सिफारिश से ही नौकरी पाती रही हैं। ऐसे में पांच साल तक उनकी नौकरी चलाने में सहयोग करने वाले प्रधानों को अब उनके साथ की जरूरत है। यही कारण है कि पुनरीक्षण के कार्य से ही चुनावी बिसात के मोहरें भी सजने लगे हैं।
मुरादें पूरी कर दो, सब कुछ बाटूंगा : दावेदार चुनावी रथ को लक्ष्य तक पहुंचाने के लिए बीएलओ को हर संभव प्रलोभन भी दे रहे हैं। कई तो यह कहने में भी नहीं चूक रहे कि मुराद पूरी हुई तो हर कार्य में बराबरी से बंटवारा होगा। यह बात और है कि बीएलओ चुनावी मैदान के संभावित लड़ाकों की दशा देखते हुए बहुत तवज्जो नहीं देना चाहते, लेकिन भविष्य की मजबूरियां उन्हें कहीं न कहीं प्रभावित तो कर ही देती हैं।
लाओ हम कम कर दे काम का बोझ : आम दिनों में आंगनबाड़ी कार्यकत्री से लेकर मास्टर साहब तक का हाल न पूछने वाले दावेदार इन दिनों कोई कसर बाकी नहीं रख रहे। कई तो यह कहने से भी नहीं चूकते कि पुनरीक्षण के कार्य में हाथ बटा दें, ताकि काम का बोझ कुछ हल्का हो जाए।
जिम्मेदार करते हैं इन्कार :
अपर जिलाधिकारी और पुनरीक्षण कार्यों के नोडल अधिकारी लक्ष्मीशंकर ¨सह कहते हैं कि बीएलओ पूरी ईमानदारी से कार्य कर रहे हैं। जो भी आवेदन नाम बढ़वाने के लिए आ रहे हैं, उन्हें फीड कराया जा रहा है। श्री ¨सह ने कहा कि यदि बीएलओ द्वारा किए गए पुनरीक्षण कार्य में कोई शिकायत या पक्षपात किसी को भी महसूस होता है तो निर्वाचक नामावलियों के अंतिम प्रकाशन से पूर्व मांगी जाने वाली आपत्ति में दर्ज करा सकता है।