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अस्थि मात्र होइ रहै सरीरा..

हरदोई, जागरण संवाददाता : नगर के नुमाइश मैदान में चल रही रामलीला में गोविंद गोपाल लीला संस्थान वृंदाव

By Edited By: Published: Sun, 25 Jan 2015 01:09 AM (IST)Updated: Sun, 25 Jan 2015 01:09 AM (IST)
अस्थि मात्र होइ रहै सरीरा..

हरदोई, जागरण संवाददाता : नगर के नुमाइश मैदान में चल रही रामलीला में गोविंद गोपाल लीला संस्थान वृंदावन के स्वामी कन्हैया लाल दत्तात्रेय के निर्देशन में शनिवार को मनु सतरूपा का तप और प्रतापभानु की कथा का मंचन किया गया।

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इस मौके पर महाराज मनु ने इस संसार में प्राणी मात्र को कैसे जीवनयापन करना चाहिए, इस मानव को किस लक्ष्य की प्राप्ति करनी चाहिए। इसका ज्ञान देते हुए अपने पुत्र उत्तानपाद को राज्य देकर पत्नी सतरूपा के साथ तप करने के लिए वन प्रदेश को प्रस्थान किया। अनेक सिद्ध संतों से मिलना हुआ। दोनों धर्म परायण दंपती ने अपने लक्ष्य को ध्यान रखते हुए तप प्रारंभ किया। कई हजार वर्ष तप करते हुए हो गए तो ब्रम्हाजी वरदान देने आए, लेकिन उनसे कुछ नहीं मांगा। फिर भगवान विष्णु वरदान देने आए फिर भी उन्होंने तप नहीं छोड़ा। बाद में शंकर आए और फिर तीनों देवी देवता एक साथ वरदान देने के लिए आए, परंतु उन्होंने अपना ध्यान नहीं छोड़ा, क्योंकि उनका लक्ष्य कुछ और था। अस्थि मात्र होइ रहै सरीरा। तदपि मनाग मनहिं नहिं पीरा।। तब सर्वज्ञ प्रभु ने राजारानी को अपना निजदास जाना। तब परम गंभीर कृपा रूपी अमृत से सनी हुई आकाशवाणी हुई कि वरदान मांगो। राजा ने उनका दर्शन मांगा तो भगवान प्रगट हो गए और कहा कि मुझे महादानी मान कर वरदान मांगो तो राजा ने कहा कि आप जैसा पुत्र चाहते हैं। प्रभु ने कहा कि एवमस्तु में ही आपका पुत्र बन कर आऊंगा।

उधर प्रतापभानु नामक कैकय देश का राजा हुआ। उसका भाई था अरिमर्दन दोनों ही धर्म में रुचि रखने वाले थे। एक बार राजा प्रतापभानु शिकार करने निकला। समय विपरीत था कपटमुनि के द्वारा छला गया और उस राजा से ब्राम्हणों का अपराध बन गया और ब्राम्हणों ने दोनों भाइयों को श्राप दे दिया कि तुम राक्षस हो जाओ बाद में यही दोनों भाई रावण और कुंभकर्ण हुए।


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