स्कलों में बच्चे बन गए 'सफाई कर्मी'
हरदोई, जागरण संवाददाता: स्वच्छ शरीर में ही स्वस्थ मस्तिष्क बास करता है, लेकिन परिषदीय विद्यालयों में
हरदोई, जागरण संवाददाता: स्वच्छ शरीर में ही स्वस्थ मस्तिष्क बास करता है, लेकिन परिषदीय विद्यालयों में यह परिकल्पना साकार नहीं हो पा रही है। अव्यवस्था की जंग व्यवस्था को खाए जा रही है। विद्यालयों में कक्षा शुरू होने से पहले गुरु जी या फिर बच्चों को झाड़ू लगानी पड़ती है। हालत यह हो गई है कि बच्चों और सफाई करनी पड़ती है और जिन्हें सफाई करनी चाहिए वह बाबू जी बने बैठे हैं।
शिक्षा की नींव मजबूत करने के लिए शासन प्रशासन तमाम कार्यक्रम चला रहा है। हरदोई से आदर्श विद्यालय योजना की शुरुआत हुई है, गुणवत्ता पूर्ण शिक्षा के दावे तो किए जा रहे हैं पर जमीनी व्यवस्था ही खराब है। लाख प्रयास के बाद भी विद्यालयों में सफाई पटरी पर नहीं आ पा रही है। कहने को तो गांव गांव सफाई कर्मचारियों की तैनाती है। विद्यालयों से ही उनके नौकरी शुरू करने का आदेश जारी किया गया था पर सब कुछ कागजों तक सीमित होकर रह गया है। हालत यह है कि विद्यालयों में सफाई कर्मचारी नहीं जा रहे हैं। मजबूरी में शिक्षक शिक्षिकाओं को झाड़ू लगानी पड़ती। अब संस्कारों की शिक्षा लेने वाले बच्चे गुरु जी के हाथों में झाड़ू नहीं देख सकते और उन्हें ही सफाई करनी पड़ती। यह एक दिन का नहीं अधिकांश विद्यालयों में रोजना का हाल है। शनिवार को बावन विकास खंड के विद्यालय में यह देखने को मिला। विद्यालय खुला, बच्चों के हाथ में किताब बाद में आई, झाड़ू पहले ही लेनी पड़ी।
गुरु जी की आफत में रहती है जान
शिक्षक शिक्षिकाओं के आगे एक तरफ कुआं दूसरी तरफ खाई होती है। अब विद्यालय गंदा रहे तो उनकी ही आफत होती है। कुछ शिक्षक शिक्षिकाओं का कहना है कि एक बार नहीं न जाने कितनी बार शिकायत और मांग उठाई गई पर कोई ध्यान नहीं देता।
नेता जी भी नहीं दे रहे ध्यान
विद्यालयों में साफ सफाई का मुद्दा आज का नहीं काफी पुराना है। शिक्षक शिक्षिकाएं मांग करते करते परेशान हो गए, शिक्षक नेता भी इस तरफ कोई ध्यान नहीं दे रहे हैं। जानकारों का कहना है कि नेता जी का विद्यालय दुरुस्त रहता है फिर अन्य की तरफ कौन देखे।