कीकर जल ही नहीं जीवन के लिए भी बना खतरा
जागरण संवाददाता, हापुड़: बबूल या कीकर आज लोगों के लिए सिरदर्द बन चुका है। हालांकि आयुर्वेद में इ
जागरण संवाददाता, हापुड़:
बबूल या कीकर आज लोगों के लिए सिरदर्द बन चुका है। हालांकि आयुर्वेद में इसे औषधीय गुणों के चलते बेहतर लाभकारी बताया गया है, लेकिन पर्यावरण और प्रकृति के लिए यही बबूल घातक बनता जा रहा है। यह (वानस्पतिक नाम : आकास्या नीलोतिका) अकैसिया प्रजाति का एक वृक्ष है। कभी बबूल हरियाली बढ़ाने के लिए लगाया गया था, लेकिन आज यह नासूर बन गया है। यह जैव विविधिता के लिए बड़ा खतरा है। साथ ही पर्यावरण पर भी बोझ बन गया है। यह देशी पेड़-पौधों की सैकड़ों प्रजातियों को बर्बाद कर चुका है। जिन क्षेत्रों में जल संकट गहरा सकता है वहा वायु प्रदूषण भी बढ़ जाएगा।
यह पेड़ दक्षिण और मध्य अमेरिका तथा कैरीबियाई देशों में पाया जाता था। हरियाली के लिए इसे 1870 में इसे भारत लाया गया था। यह एक ऐसी प्रजाति का पेड़ है, जो परिस्थितियों का हर हालत में फायदा उठाकर अपने आपको जीवित रखता है। पर्यावरण के साथ अर्थव्यवस्था, लोगों और जानवरों के स्वास्थ्य के लिए हानि का कारण बन सकता है। यह वृक्ष सूखा प्रभावित क्षेत्रों में बढ़ता है और इसका इस्तेमाल लकड़ी के रूप में किया जा सकता है। यह पेड़ जमीन से बेहद ज्यादा मात्रा में पानी को अवशोषित करता है। जिसके चलते उस इलाके के पानी के तालाब तक सूख जाते हैं। अगर भूजल का स्तर बिल्कुल समाप्त है तो बबूल हवा से नमी को खींच लेता है। जिसके चलते बरसात होने की संभावनाएं भी समाप्त हो जाती हैं। कीकर की जड़ मिट्टी के पोषक तत्वों को नष्ट कर सकती है, भूजल को भी काफी हद तक जहरीला कर सकती है। यह पर्याप्त ऑक्सीजन नहीं पैदा करता है और केवल कार्बन डाइऑक्साइड का उर्त्सजन करता है। इसकी पत्तियां, बीज या पेड़ का मनुष्य और जानवरों के लिए कोई उपयोग नहीं हैं।
लोगों को इन आक्रामक पेड़ों के खतरों को अभी तक नहीं पता है। लोगों को इस पेड़ के प्रति जागरूक करने की आवश्यकता है। अगर समय रहते इस पेड़ के जंगल को समाप्त नहीं किया गया तो वह दिन दूर नहीं जब ये पेड़ बहुत बड़े पर्यावरणीय संकट का कारण बन जाएंगे।
--जिले में कहां है इनकी ज्यादा तादाद
जिले में बबूल के पेड़ ज्यादा संख्या में गढ़ के खादर क्षेत्र ज्यादा पाए जाते हैं। हालांकि इक्का दुक्का पेड़ सभी गांवों में हैं। शहरी इलाकों में यह पेड़ दिखाई नहीं देता है। खादर क्षेत्र में इस पेड़ के कारण भूमि की उर्वरा शक्ति समाप्त होती जा रही है।
कीकर एक ऐसी प्रजाति का पेड़ हैं जो अपने अलावा किसी अन्य प्रजाति के पेड़ पौधें को नहीं पनपने देता। इसकी लकड़ी अनुपयोगी होती है। इससे फर्नीचर बनाना संभव नहीं है क्योंकि यह बहुत कठोर होती है। इसके अलावा इस पेड़ से भूजल स्तर कम तो होता ही है साथ ही प्रदूषित होने की भी संभावना बनी रहती है। इस पेड़ की वजह से करीब 500 प्रजातियां समाप्त हो चुकी हैं।
प्रोफेसर अब्बास अली, पर्यावरणविद् ।