कैसे हासिल करें उच्च शिक्षा, पढ़ने वाले 90 हजार और कालेज मात्र 15
जागरण संवाददाता, हापुड़ : वर्ष 2011 के अनुसार जिले में साक्षरता दर 72.1 प्रतिशत थी। इसमें पुरुषो
जागरण संवाददाता, हापुड़ :
वर्ष 2011 के अनुसार जिले में साक्षरता दर 72.1 प्रतिशत थी। इसमें पुरुषों की साक्षरता दर 81.7 और महिलाओं की साक्षरता दर 61.4 प्रतिशत थी। इसके बाद से जिले में साक्षरता दर में लगातार सुधार हुआ है। अब यह साक्षरता दर 82 प्रतिशत पर पहुंच चुकी है। जिले में लोग शिक्षा के प्रति जागरूक हो रहे हैं तो समाजसेवी संस्थाओं की मेहनत भी इस ओर रंग ला रही है। महिलाओं की साक्षरता दर पुरुषों के मुकाबले अभी भी कम बनी हुई है। करीब पांच प्रतिशत साक्षरता दर महिलाओं की आज भी पुरुषों से कम है। वहीं, उच्च शिक्षा संस्थानों की कमी पढ़ाई में सबसे अधिक रोड़ा बन रही है। जिले में इनकी कमी के कारण छात्रों को दूसरे जिलों का रुख करना पड़ रहा है।
एक प्रतिशत छात्र बीच में छोड़ देते हैं पढ़ाई -
जिले में दो प्रतिशत छात्र व छात्राएं ही ऐसे है, जो कि प्राथमिक से उच्च शिक्षा तक पहुंचते-पहुंचते ही बीच में पढ़ाई छोड़ देते हैं। गरीबी की मार और परिवार के पालन पोषण का बोझ मुख्य है तो देहात क्षेत्र में छात्राओं की शादी का जल्दी हो जाना भी इसका एक कारण है। युवकों का प्रतिशत इस मामले में कुछ ज्यादा जरूर है। जिले में युवतियां शादी के बाद भी पढ़ाई ना छोड़ने के मामले में बेहद अच्छे प्रतिशत में है। कक्षा में फेल होकर पढ़ाई छोड़ने वालों की संख्या ना के बराबर है। इसके पीछे कहीं न कहीं जिले में पढ़ाई के प्रति लोगों में जागरूकता भी एक अहम हिस्सा है।
एक शिक्षा संस्थान पर तीन हजार अतिरिक्त छात्र-छात्राओं का है बोझ
जनपद में 15 उच्च शिक्षा संस्थान है। जबकि जिले में करीब 90 हजार युवा उच्च शिक्षा हासिल करना चाहते हैं, लेकिन कालेजों की कमी इसमें बाधा बनी हुई है। जिले के उच्च शिक्षण संस्थानों में दस हजार पांच सौ पंद्रह छात्र व छात्राएं शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं। हापुड़ में 6 उच्च शिक्षा संस्थान शामिल है। युवाओं की आबादी के अनुपात में इनकी संख्या आधी से भी कम है। हापुड़ के ही एसएसवी डिग्री कालेज की बात की जाए तो 4500 छात्र-छात्राएं संस्थागत रूप से यहां पढ़ाई कर रहे हैं। जबकि अन्य 9 कालेजों में तो इससे भी कम संख्या में छात्र व छात्राएं संस्थागत रूप से पढ़ाई कर रहे हैं, क्योंकि सीटों का अभाव बना हुआ है। युवाओं की आबादी के हिसाब से 6000 युवाओं पर एक कालेज हैं जबकि जिले के बड़े तीन कालेजों की बात छोड़ दी जाए तो अन्य किसी भी कालेज में एक हजार सीट भी नहीं है। ऐसे में एक कालेज पर 5 हजार छात्रों का अतिरिक्त बोझ है। सीटें न होने के कारण छात्र दूसरे जिलों के कालेज या फिर प्राइवेट शिक्षा की ओर जाने के लिए मजबूर हैं। इसका एक कारण प्रत्येक वर्ष बारहवीं के परिणाम में बढ़ोतरी है तो कालेजों में सीटों का हाल जस का तस है। कालेजों की कमी के चलते ही पत्राचार से उच्च शिक्षा हासिल करने की तरफ भी युवाओं का रूझान बढ़ा है।
शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए स्वतंत्र रुप से काम कर रहे हैं कई लोग :जिले में शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए कई लोग ऐसे हैं, जो स्वतंत्र और निश्शुल्क रूप से काम कर रहे हैं। इन लोगों के कारण ही जिले में पहले के मुकाबले शिक्षा व्यवस्था बेहतर हुई है तो समाजसेवी संस्थाओं के लगातार जागरूकता अभियान ने बच्चों को स्कूलों तक पहुंचाया है। हर साल इस सूची में नाम बढ़ते जा रहे हैं। जिससे गरीबों को लाभ मिल रहा है।
निश्शुल्क रूप से काम कर रहे समाजसेवी -
स्वाति गर्ग नगर के ब्रह्मादेवी स्कूल की संचालिका है। हर वर्ष पचास से ज्यादा आदिवासी छात्राओं को यह स्कूल में निश्शुल्क शिक्षा ग्रहण कराती हैं। इसके अलावा स्कूल में छात्राओं के लिए रहने से लेकर उनके खानपान का खर्च भी यह स्वयं उठाती हैं। पिछले पंद्रह वर्षों से अधिक समय से यह इस क्षेत्र में काम कर रही हैं।
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डा. पूनम ग्रोवर मेरठ रोड के एक स्कूल में पढ़ने वाले गरीब बच्चों की पढ़ाई का खर्च उठाती हैं। पिछले तीन साल से यह इस क्षेत्र में कार्य कर रही हैं। इसके बाद उन्होंने अपने इस कार्य को ओर अधिक फैलाया है और आज यह दूसरे कई स्कूलों में बच्चों को किताबें और स्कूल ड्रेस से आदि उपलब्ध करातीं है।
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मेरिनो इंडस्ट्रीज के चेयरमैन प्रकाश लोहिया नगर के सूर्य विहार में एक स्कूल चलाते हैं। इस स्कूल में एक प्राइवेट शिक्षा संस्थान जैसी सभी सुविधाएं बच्चों को दी जाती हैं। इसके अलावा बच्चों को अच्छा खाना, स्कूल ड्रेस से लेकर किताबें और परिवहन की सुविधा स्वयं स्कूल द्वारा दी जाती है। प्रत्येक वर्ष 20 गरीब बच्चों का दाखिला इसमें होता है और फिर इन बच्चों को लगातार पढ़ाई स्कूल में ही कराई जाती है। इस स्कूल की खासियत यह है कि यह बेहद गरीब बच्चे निश्शुल्क रुप से एक बड़े प्राइवेट स्कूल की सुविधाओं के बीच बढ़ते हैं।
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नगर के मोहल्ला आर्य नगर में रहने वाली पूजा महेश और ऊषा गर्ग घर के पास ही एक छोटा सा स्कूल चलाती हैं। जिसमें चालीस से पचास बच्चे हर साल पढ़ते हैं। इस स्कूल में बच्चों को निशुल्क पढ़ाया जाता है। जबकि ड्रेस और किताबें भी निशुल्क दी जाती हैं। समाजसेवी लोगों से सहायता भी बच्चों को दिलाई जाती है।