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मंत्री जी को चाहिए घर का खाना

शहरनामा पूर्वाचल में अपनी पार्टी का प्रचार कर रहे एक मंत्री जी ने घर का खाना खाने की जिद ठान ली।

By JagranEdited By: Published: Mon, 27 Feb 2017 02:06 AM (IST)Updated: Mon, 27 Feb 2017 02:06 AM (IST)
मंत्री जी को चाहिए घर का खाना
मंत्री जी को चाहिए घर का खाना

शहरनामा

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पूर्वाचल में अपनी पार्टी का प्रचार कर रहे एक मंत्री जी ने घर का खाना खाने की जिद ठान ली। होटल पहुंचने के बाद उन्होंने अपने भोजन का मेन्यू होटल मैनेजर के पास भेज दिया। रात में जब भोजन आया तो उसे देख मंत्री जी का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंच गया। कांच के गिलास पर गुस्सा उतारने के बाद उन्होंने मैनेजर को बुलाकर फटकार लगाई। पार्टी के कार्यकर्ताओं को जब जानकारी हुई तो उन्होंने किसी तरह स्थिति संभाली।

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इनका इलाज तो नेताओं के पास नेताओं के भाषण में गधों की चर्चा से शहर के तमाम कुत्ते उदास हैं। कइयों ने तो खाना-पीना छोड़ दिया है। कुछ ने खुदकुशी की भी कोशिश की। अब सड़क के कुत्तों का तो कोई पुरसाहाल होता नहीं, पर पालने वालों ने इसे नोटिस लिया और परेशान हो गए। कुछ-दिन पहले अच्छे-खासे डागी को अचानकक्या हो गया? पशुचिकित्सकों के यहां भीड़ बढ़ गई। कुछ ने फोन पर भी संपर्क किया। कुछ ने तो डाक्टर भी बदल दिए। मर्ज क्या है, डाक्टरों को भी नहीं सूझ रहा था। आपात बैठक में गहन विचार-विमर्श के दौरान एक बुजुर्ग और तजुर्बेकार चिकित्सक ने सलाह दी। इनको कुछ नहीं हुआ है। इनके मर्ज का इलाज नेताओं के पास है। दोनों ने अपनी चुनावी रैलियों में इनकी उपेक्षा की है। अब वफादारी में कुत्ते का गधे से क्या मुकाबला।

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जब बैरंग लौट गए नेताजी

एक विभाग में सक्रिय नेताजी अपने अफसरों पर खूब धौंस जमाते फिरते थे। कई अफसर नेताजी के धरना-प्रदर्शन के प्रभाव के कारण बातचीत करने से भी कतराते थे। बिना कामकाज के ही दफ्तर में अपनी हनक कायम रखने वाले नेताजी का सामना एक दिन नवागत अफसर से हो गया। नेताजी ने नमस्कार करना भी मुनासिब नहीं समझा। नेताजी से खार खाए कुछ कर्मचारियों ने यह बात बड़े साहब को बता दी। खैर बात आई और चली गई। कुछ दिनों बाद नेताजी बडे़ साहब के दफ्तर बगैर अनुमति के पहुंच गए। नेताजी ने अपना परिचय दिया और आगे कुछ कहते कि साहब का पारा चढ़ गया। साहब ने नेताजी को बिना किसी काम के चेंबर में आने पर डांट पिलाई। साहब का रुख देखकर नेताजी ने बैरंग वापस लौटने में ही भलाई समझी। उधर नेताजी वापस क्या हुए इसकी चर्चा विभाग में आग की तरह फैल गई।

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छुटभइया नेताओं की चांदी

मोहल्ले-मोहल्ले घूमने वाले छुटभइया नेताओं की चांदी हो गई है। वोट दिलवाने के नाम पर प्रत्याशी और उनके समर्थकों से खूब वसूली कर रहे हैं। इससे प्रत्याशी को फायदा हो या न हो कई जगह नुकसान होता दिख रहा है। रुपये और तवज्जो न मिलने कई छोटे नेता विरोधी नेता का समर्थन करने लगे हैं। ताजा मामला सूरजकुंड में दिखाई दिया। छह माह से पार्टी के अधिकृत प्रत्याशी का प्रचार कर रहे एक नेता ने अचानक पाला बदलकर विपक्षी दल के प्रत्याशी का प्रचार करने लगे। कई और भी नेता हैं तो हर हफ्ते पाला बदल रहे हैं।

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