बौद्धिक संपदा पर जताएं अधिकार : प्रो. चौधरी
गोरखपुर : दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय के वनस्पति विज्ञान विभाग में बुधवार को 'बौद्धिक
गोरखपुर :
दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय के वनस्पति विज्ञान विभाग में बुधवार को 'बौद्धिक संपदा, भौगोलिक सूचक एवं अन्वेषण प्रबंधन' विषय पर राष्ट्रीय कार्यशाला का आयोजन किया गया। शोध भवन में आयोजित इस कार्यशाला को बतौर मुख्य अतिथि संबोधित करते हुए वनस्पतिशास्त्री प्रो. आरसी चौधरी ने बौद्धिक संपदा को लेकर पूर्व और पश्चिम की जागरूकता का अंतर बताया।
प्रो. चौधरी ने बताया कि पश्चिम के लोग बौद्धिक संपदा को पेटेंट कराने के लिए हमेशा प्रयासरत देखे गए हैं। इसी का नतीजा है कि उन्होंने न केवल तकनीकी रूप से अपना विकास किया है बल्कि धन भी कमाया है। जबकि पूर्व के लोग अपनी बौद्धिक संपदा को श्रुति के आधार पर आगे बढ़ाते रहे, जिसका खामियाजा उन्हें इस रूप में भुगतना पड़ा कि वैज्ञानिक रूप से विकसित होने के बाद भी उन्हें विश्व में वह अधिकार हासिल नहीं हुआ, जो चाहिए था। उन्होंने नसीहत दी कि बौद्धिक संपदा, भौगोलिक सूचक और अन्वेषण प्रबंधन की उपयोगी जानकारी प्राप्त कर हम दुनिया में अपनी अहमियत बता सकते हैं और अधिकार प्राप्त कर सकते हैं।
अध्यक्षीय संबोधन में कुलपति प्रो. पी नाग ने वैज्ञानिक एवं औद्योगिक शोध परिषद द्वारा प्रकाशित उस पुस्तक की चर्चा की, जिसमें देश के विभिन्न भौगोलिक क्षेत्रों में विशिष्ट प्रकार के पौधों का उनके गुण के साथ वर्णन है। विभागाध्यक्ष प्रो. आरपी शुक्ल ने अपने स्वागत संबोधन में विषय के औचित्य पर प्रकाश डाला। आयोजन सचिव प्रो. वीएन पांडेय ने बौद्धिक संपदा, भौगोलिक संकेत, पेटेंट, कापी राइट, प्लांड वेरायटी आदि का संक्षिप्त परिचय प्रस्तुत किया। उत्तर प्रदेश कृषि शोध परिषद लखनऊ के वरिष्ठ वैज्ञानिक डा. सुमित कुमार ने बताया कि प्राकृतिक रूप से उपलब्ध वस्तुओं पर बौद्धिक संपदा का अधिकार लागू नहीं होता। इसमें खोजी गई तकनीक पर यह अधिकार हासिल होता है। इस अवसर पर प्रो. उमेश नाथ त्रिपाठी, प्रो. दिनेश यादव, प्रो. शरद मिश्रा, प्रो. मालविका श्रीवास्तव, प्रो. पूजा सिंह, डा. यशवंत सिंह, डा. नीरज श्रीवास्तव, डा. सुनील श्रीवास्तव, डा. आलोक रंजन, डा. एके श्रीवास्तव, डा. निधि, डा. अनूप द्विवेदी आदि मौजूद रहे। संचालन डा. एके द्विवेदी ने किया।