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एक एकड़ में होगा 900 क्विंटल गन्ना

गोरखपुर: पूर्वाचल के किसान भी एक एकड़ में करीब 900 क्विंटल गन्ना पैदा कर सकते हैं। सेवरही स्थित गन

By Edited By: Published: Mon, 26 Sep 2016 01:36 AM (IST)Updated: Mon, 26 Sep 2016 01:36 AM (IST)

गोरखपुर:

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पूर्वाचल के किसान भी एक एकड़ में करीब 900 क्विंटल गन्ना पैदा कर सकते हैं। सेवरही स्थित गन्ना शोध केंद्र ने ऐसी चार प्रजातिया विकसित की हैं।

इसमें कोसे-01421 पूर्वाचल के लिए सबसे मुफीद है। यह कोशा-8119 और को-82196 के क्रास से विकसित की गई है। इसमें चीनी का परता करीब 13 फीसद है। कम समय में पैदा होने के नाते खाली खेत में दूसरी फसल भी समय से ली जा सकेगी। सहफसली खेती के लिए उपयुक्त होना, इसकी अतिरिक्त खूबी है। केंद्र द्वारा विकसित को.05009 और कोपीके 05191 की भी कमोवेश यही खूबी है। चौथी प्रजाति कोएच 121 मध्यम देर से पकने वाली प्रजाति है।

सेवरही स्थित गन्ना शोध केंद्र के संयुक्त निदेशक डा.आइएस सिंह ने बताया कि इन प्रजातियों की बोआई कर किसान उपज और चीनी का परता बढ़ा सकते हैं।

लाल बहादुर किसान संस्थान के निदेशक विपिन कुमार द्विवेदी ने बताया कि पूर्वी उत्तर प्रदेश के गन्ने में चीनी का परता सर्वाधिक 10.83 फीसद है। मध्य और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में यह परता क्रमश: 10.79 और 10.16 फीसद है। ऐसे में किसान उपज बढ़ा लें, तो उनके लिए लाभ की खेती होगी। सूबे की सरकार की मंशा भी यही है। इसी के मद्देनजर नई प्रजातियों का विकास जारी है। साथ ही अन्य योजनाएं भी चलाई जा रहीं हैं। प्रयास है कि प्रदेश के करीब 60 हजार किसान आधुनिक विधा से गन्ने की बोआई करें। आय बढ़ाने के लिए सहफसली खेती को भी बढ़ावा दिया जा रहा है। किसान देखकर सीखें, इसके लिए अधिक उत्पादन लेने वाले हरियाणा और महाराष्ट्र के विभिन्न क्षेत्रों की यात्रा भी कराई जा रही है।

उप गन्ना आयुक्त डा.आरवी राम ने बताया कि शरदकालीन गन्ने की बोआई के लिए भरपूर मात्रा में बीज का आवंटन किया जा चुका है। किसानों को ये बीज अनुदान पर मिलेगा। इसके लिए किसान अपने क्षेत्र के गन्ना विकास परिषद के कार्यालय से संपर्क कर सकते हैं।

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जलजमाव क्षेत्र में न बोएं को.238

गोरखपुर : को.238 पूर्वी उत्तर प्रदेश के किसानों की सर्वाधिक पसंदीदा प्रजाति है। सर्वाधिक रकबे में इसकी ही बोआई होती है। गन्ना किसान संस्थान गोरखपुर के सहायक निदेश ओमप्रकाश गुप्ता ने बताया कि किसान जलजमाव वाले क्षेत्र में इसकी बोआई न करें। इन इलाकों में ये प्रजाति रोगों के प्रति संवेदनशील है।


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