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रेलवे करा रही 'अच्छे दिन' का एहसास

- आरक्षित टिकटों पर लिख रही 'यात्रा में खर्च हो रहा आपका सिर्फ 57 फीसद' - अपना 43 फीसद खर्च कर घा

By Edited By: Published: Mon, 04 Jul 2016 12:22 AM (IST)Updated: Mon, 04 Jul 2016 12:22 AM (IST)

- आरक्षित टिकटों पर लिख रही 'यात्रा में खर्च हो रहा आपका सिर्फ 57 फीसद'

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- अपना 43 फीसद खर्च कर घाटा सहते हुए आपकी यात्रा पूरी करा रही रेलवे

जागरण संवाददाता, गोरखपुर : क्या जानते हैं, रेल यात्रा में आए खर्च का 57 फीसद ही आप चुकता करते हैं। शेष 43 फीसद खर्च खुद रेलवे उठाती है। घाटा सहते हुए भी रेलवे आपकी यात्रा को मंगलमय बना रही है। यह हम नहीं कह रहे, बल्कि रेलवे स्वयं कह रही है। इसके लिए उसने नायाब तरीका खोज लिया है। सभी श्रेणी की आरक्षित टिकटों पर संदेश के जरिए वह यात्रियों के अच्छे दिन का अहसास करा रही है।

अगर आपके हाथ में रेलवे का आरक्षित टिकट है तो स्वयं देख सकते। पीएनआर नंबर के ऊपर अंग्रेजी में स्पष्ट लिखकर आ रहा है, यात्रा मूल्य में आपका सिर्फ 57 फीसद ही खर्च हो रहा है। रेलवे यह बता रही है कि वह यात्री को कितना सहूलियत दे रही। अगर किसी यात्री ने दिल्ली के लिए एसी थर्ड में 1100 रुपये का टिकट लिया है तो उसने अपने मार्ग पर व्यय होने वाले खर्च का सिर्फ 57 फीसद ही मूल्य चुकाया है। शेष मूल्य रेलवे ने वहन किया है। यानी, रेलवे 43 फीसद का घाटा सहकर यात्रा पूरी करा रही है। ऐसे में अगर यात्री को 100 फीसद (पूरा किराया) खर्च उठाना पड़े तो उसे 1100 रुपये का 43 फीसद और चुकता करना पड़ सकता है। रेलवे लोगों को यह बता रही है कि वह जितना खर्च कर रही उतना भी नहीं कमा पा रही। हालांकि, इसे जानने में यात्रियों को परेशानी उठानी पड़ रही है। टिकट पर पीएनआर नंबर भी पढ़ने में नहीं आ रहा। तारीख और ट्रेन नंबर भी समझ में नही आ रहा। उनके ऊपर रेलवे अपना संदेश लिख रही है।

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किराया बढ़ने के पहले का

आहट तो नहीं यह संदेश!

आरक्षित टिकटों पर रेलवे का यह संदेश चर्चा का विषय बना है। रेलकर्मी भी इसको लेकर तरह-तरह के कयास लगा रहे हैं। जानकारों का कहना है कि शायद रेलवे यह बता रही है कि वह लगातार घाटा उठा रही है। आम जनता को इसका अहसास कराकर रेल बजट से पहले किराया बढ़ा सकती है। या, वह अपने संदेश के माध्यम से यह बताना चाहती है कि रेलवे घाटा के बाद भी आपको बेहतर सुविधा मुहैया करा रही है। मामला जो भी हो लेकिन रेलवे के इस संदेश में कुछ न कुछ अवश्य छिपा है। आखिर वह टिकट के जरिए क्या संदेश देना चाहती है। यह एक बड़ा सवाल है। लोग जान रहे हैं कि रेलवे की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं है। इसके बाद भी नहीं चाहते हैं किराया बढ़े। रेलवे भी चाहते हुए आम जनता और राजनीतिक दबाव में किराया नहीं बढ़ा पाती। हां, टिकट निरस्तीकरण के नियमों में बदलाव कर लोगों की जेब जरूर ढीली कर रही है।


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