सिंचाई की नई विधा अपनाएं, बचेगा पानी
गिरीश पांडेय, गोरखपुर : कहा जाता है, खेती हर चीज की प्रतीक्षा कर सकती है, पर पानी की नहीं। उपलब्ध
गिरीश पांडेय, गोरखपुर :
कहा जाता है, खेती हर चीज की प्रतीक्षा कर सकती है, पर पानी की नहीं। उपलब्ध पानी का करीब 70 फीसद सिंचाई में ही खर्च होता है। पानी की सर्वाधिक बर्बादी भी सिंचाई में ही होती है। अगर तकनीक के जरिए हम सिर्फ सिंचाई का बेहतर प्रबंधन कर लें तो जल संरक्षण के क्षेत्र में चमत्कार संभव है।
हिमालय की तराई में स्थित पूर्वाचल के गोरखपुर, बस्ती और देवीपाटन मंडलों में हाल के वर्षो तक भूगर्भ जल का स्तर 45 से 50 फीट है। लिहाजा यहां बोरवेल से पंपिंग सेट के जरिये भूगर्भजल स्रोतों का सिंचाई के लिए अनियोजित दोहन आम है। खेत में अंतिम स्थान तक पानी पहुंचाने में प्लास्टिक की डिलेवरी पाइपों का प्रयोग होता है, जो कुछ समय में ही फटकर रिसने लगती हैं। इससे काफी मात्रा में पानी जाया होता है। यही नहीं बोरवेल से पानी खींचकर अपेक्षित जगह तक पहुंचाने में पंपिंगसेट की जान तो निकलती ही है, सिंचन क्षमता भी घट जाती है।
स्प्रिंकलर, ड्रिप इरीगेशन या प्लास्टिक की मजबूत डिलेवरी पाइप परंपरागत सिंचाई का विकल्प हो सकती हैं। परंपरागत सिंचाई में जहां पानी का महज 35 फीसद हिस्सा उपयोग में आता है, वहीं स्प्रिंकलर और ड्रिप से सिंचाई में 80-90 फीसद पानी का उपयोग होता है। इन पर कृषि और उद्यान विभाग में 50 फीसद या इससे अधिक का अनुदान भी है। दुश्वारी सिर्फ यह है कि इन योजनाओं के बारे में अधिकतर लोगों को जानकारी नहीं है, क्योंकि इसके नफा-नुकसान के बारे में कोई कायदे से बताने वाला नहीं है। उप कृषि निदेशक बीके त्रिपाठी बताते हैं कि स्प्रिंकलर के जरिए पानी बारिश की बौंछारों की तरह फसल पर गिरता है। इससे कम समय में अधिक रकबे की सिंचाई। खेत का समान रूप से संतृप्त होता है। पत्तियों के धुलने से उनके वाष्पोत्सर्जन और प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया बढ़ने से फसलों की बढ़वार और उपज बढ़ती है।
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खेती में पानी बचाने के कुछ और तरीके:
गर्मी की गहरी जोताई, न्यूनतम जोताई, जीरो सीड ड्रिल से फसलों की बोआई, हरी खाद एवं कंपोस्ट के प्रयोग से भूमि की जलधारणा की शक्ति बढ़ती है। बारिश का पानी अगर पोखरों और तालाबों में एकत्र कर पंपिंगसेट से सिंचाई की जाए, तो इसकी सिंचन क्षमता खासी बढ़ जाती है। कम लागत में अधिक उपज होती है।
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स्प्रिंकलर के जरिये सिंचाई के लाभ:
-सिंचाई के लिए नाली और मेड़ नहीं बनाना पड़ता है। लिहाजा जमीन का रकबा और उपज बढ़ जाती है।
-इससे फसल पर कीटनाशकों और जल विलेय उर्वरकों का छिड़काव अपेक्षाकृत अधिक असरदार होता है।
-अमूमन ये ही लाभ ड्रिप विधा के भी हैं। इसमें पाइप लाइन और उनमें बने छेद के जरिए पौधों की जड़ तक बूंद-बूंद पानी पहुंचाया जाता है।
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