तिजोरी में पैसा, सांसत में मरीज
जागरण संवाददाता, गोरखपुर जिला अस्पताल के पास एक तरफ रोगी कल्याण के मद में लाखों रुपये डंप पड़े हैं
जागरण संवाददाता, गोरखपुर
जिला अस्पताल के पास एक तरफ रोगी कल्याण के मद में लाखों रुपये डंप पड़े हैं वहीं दूसरी तरफ छोटी-छोटी सुविधाओं के अभाव में मरीजों की सांसत हो रही है। यह पैसा रोगी कल्याण मसलन जरूरी दवाओं, इंप्लांट छोटे उपकरणों, ओटी, वार्ड दीवारों, उपकरणों की मरम्मत, बिजली फिटिंग आदि पर व्यय हो सकते हैं, लेकिन एक फूटी कौड़ी भी खर्च नहीं हुई है।
मार्च में धन लैप्स कर जाएगा। यही नहीं बल्कि पैसा खर्च न होने की स्थिति में नया बजट भी रूक जाएगा। यह हाल तब है कि जब न केवल मरीज दवाओं व सुविधाओं के अभाव बल्कि हाल में निरीक्षण के लिए आई टीम भी अव्यवस्था पर आपत्ति दर्ज करा चुकी है। इस समय जिला अस्पताल में जरूरी दवाओं का अभाव है। ओपीडी में आने वाले मरीजों को जहां बाहर से दवा खरीदनी पड़ रही है वहीं वार्डो में भर्ती मरीज भी सांसत हैं। सबसे अधिक दुर्दशा गरीब मरीजों की होती है। उनके लिए बाजार से महंगी दवाएं खरीदना संभव नहीं होता। हड्डी वार्ड में भर्ती कई गरीब मरीज ऐसे में होते हैं जिनकी अस्पताल में भर्ती व आपरेशन तो मुफ्त हो जाते हैं पर इंप्लांट व दवाओं के लिए पैसे का इंतजाम करना आसान नहीं होता। अस्पताल प्रशासन यदि चाहे तो रोगी कल्याण समिति के पड़े दस लाख से ऐसे कई मरीजों की मदद कर सकता है पर ऐसा नहीं किया गया।
हाल ही में जिला अस्पताल का निरीक्षण करने पहुंची टीम को जगह-जगह अस्पतालों की दीवारों के प्लास्टर टूटे मिले, बिजली फिटिंग आदि में गड़बड़ी मिली। अस्पताल के रखरखाव से जुड़ी तमाम खामियां पाई गई। शासन को भेजी गई अपनी रिपोर्ट में टीम ने साठ फीसद से भी कम अंक दिए।
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डूब जाएंगे मरीजों के हक के 20 लाख
जिला अस्पताल प्रशासन की मनमानी से इस साल मार्च के अंत में वह बीस लाख रुपये डूब जाएंगे जिनको मरीजों की दवाओं, सुविधाओं व दूसरे कल्याण कार्यो पर खर्च किया जा सकता था। लापरवाही किस तरह बरती गई वह इसी से साफ है कि रोगी कल्याण समिति के मद मार्च 2014 में दस लाख रुपये मिले थे। पूरे साल यह धन खर्च नहीं हुआ। इसलिए अस्पताल के 2015 के लिए दस लाख का नया फंड नहंी मिला। यदि अधिकारियों ने खर्च किया होता तो दो साल में मरीजों इस साल मार्च के अंत तक मरीजों पर बीस लाख खर्च हो सकते थे। लेकिन बीस लाख के उपयोग की छोड़िये, जब तब पुराना बजट खर्च नहीं होगा, साल 2016 का दस लाख भी नहीं मिलेगा।
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एसआइसी के पास है पूरा अधिकार
नियमों के मुताबिक यह धन खर्च करने का पूरा अधिकार जिला अस्पताल प्रशासन के पास है। एसआइसी अस्पताल की रोगी कल्याण समिति के अध्यक्ष हैं। सिर्फ उनको अस्पताल के रखरखाव मरीजों की जरूरत व खर्च का प्रस्ताव बनाकर समिति के सामने रखकर पास कराना होता है। बाद वह जिला स्तरीय समिति से पास हो जाता है। यदि मरीज को अचानक कोई दवा या सुविधा देनी पड़ी उस मद में धन खर्च करने का अधिकार भी है।
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जिला अस्पताल में रोगी कल्याण समिति के बजट में एक भी पैसा खर्च नहीं हुआ है। साल 2014 में मिला बजट खर्च नहीं होने से 2015 का बजट भी अस्पताल को आवंटित नहीं किया जा सका। अब मार्च तक यदि पैसा खर्च नहीं हुआ तो साल 2016 का पैसा भी नहीं दिया जा सकेगा। प्रमुख चिकित्सा अधीक्षक ने कई बार इस धन को खर्च कर विवरण देने को कहा गया है, लेकिन अबतक धन उसी तरह पड़ा हुआ है।
डा. नंद कुमार, प्रभारी सीएमओ
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