यहां भगवान भरोसे हैं किडनी के मरीज
जागरण संवाददाता, गोरखपुर पूर्वाचल के एकमात्र मेडिकल कालेज में किडनी प्रत्यारोपण की सुविधा तो दूर,
जागरण संवाददाता, गोरखपुर पूर्वाचल के एकमात्र मेडिकल कालेज में किडनी प्रत्यारोपण की सुविधा तो दूर, बीमारी के सही इलाज के लिए सुपर स्पेशलिस्ट डाक्टर तक नहीं हैं। किडनी की बीमारी जड़ें जमाती जा रही है। मधुमेह, उच्च रक्तचाप, दर्द निवारक दवाओं व गुर्दे की पथरी के चलते इसके मरीजों की तादाद तेजी से बढ़ रही है। देर से बीमारी का पता चलने से अधिकांश मामले किडनी फेल्योर में तब्दील हो कर मौत का कारण बनते हैं। बीमारी से बिना इलाज मरने वालों में ज्यादातर गरीब हैं जिनके लिए इलाज, डायलिसिस व प्रत्यारोपण कराना संभव नहीं है।
नौ साल पहले तक यहां एक सुपर स्पेशलिस्ट डाक्टर डा. अरविंद त्रिवेदी उपलब्ध थे लेकिन 2006 में उनके तबादले के बाद सरकार ने नई तैनाती तक नहीं की। नतीजा यहां गरीब मरीज पूरी तरह भगवान भरोसे हैं। आंकड़े बताते हैं कि सिर्फ गोरखपुर महानगर में हर महीने पांच सौ से अधिक मरीजों की डायलिसिस होती है। हर महीने इसमें पचास से साठ नए मरीज जुड़ जाते हैं। गंभीर यह है कि किडनी के जितने मरीज डायलिसिस कराते हैं उससे अधिक मरीज ऐसे हैं जिनको डायलिसिस की जरूरत तो होती है पर पैसा नहीं होने के कारण निजी अस्पतालों में डायलिसिस नहीं करा पाते।
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डायलिसिस शुरू, पर संसाधन नाकाफी
लंबे अर्से बाद बीआरडी मेडिकल कालेज में इस साल अप्रैल महीने में डायलिसिस शुरू होने से गरीबों को कुछ हद तक राहत तो मिली है, पर यहां संसाधन नाकाफी हैं। इस समय ट्रामा सेंटर के ऊपरी तल पर बने डायलिसिस यूनिट में नौ बेड पर डायलिसिस होती है। महीने में कुल मिलाकर सवा सौ डायलिसिस होती है। कई को आठ से नौ बार डायलिसिस करना पड़ता है। ऐसे में डायलिसिस का लाभ पचीस से तीस मरीजों को ही मिल पाता है। यह संख्या पूर्वाचल में किडनी के कुल रोगियों की तादाद के सामने कहीं नहीं ठहरती। गौरतलब है कि मेडिकल कालेज में भी इलाज सिर्फ डायलिसिस तक ही सीमित हैं। डायलिसिस के पहले मरीज को हाथ में फिस्च्युला बनवाना पड़ता है, इसके लिए सर्जरी निजी अस्पताल से करवानी पड़ती है। यदि बीमारी गंभीर हुई तो भी सुपर स्पेशलिस्ट का सहारा लेने बाहर ही जाना पड़ता है। प्रत्यारोपण के लिए लखनऊ, दिल्ली का रुख करना पड़ता है।
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बेहद महंगा इलाज
बीआरडी मेडिकल कालेज किडनी के इलाज के नाम पर सिर्फ डायलिसिस की सुविधा है। यहां भी पूरी तरह मुफ्त डायलिसिस सिर्फ उन्हीं गिने-चुने लोगों को मिलती है तो बीपीएल कार्ड धारक है। इसके अलावा मध्यम वर्गीय या सामान्य परिवारों को यह सुविधा भी नसीब नहीं होती।
निजी अस्पताल में एक बार डायलिसिस का खर्च डेढ़ से दो हजार रुपये आता है। गंभीर मरीज को महीने में दस बात तक डायलिसिस करानी पड़ती है। साफ है हर महीने इस पर पंद्रह से बीस हजार रुपये लगते हैं। हर महीने दवा पर आने वाला चार से पांच हजार रुपये का खर्च अलग है। इससे साफ है कि गरीबों के अलावा भी अन्य सामान्य लोग इसके इसका खर्च वहन नहंी कर पाते और सही इलाज के अभाव में बीमारी बिगड़ जाती है।
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