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सिर्फ नाम का है मेडिकल कालेज

जागरण संवाददाता, गोरखपुर अगर कहा जाए कि गोरखपुर मेडिकल कालेज सिर्फ नाम का है तो गलत नहीं होगा। गंभ

By Edited By: Published: Tue, 01 Sep 2015 01:22 AM (IST)Updated: Tue, 01 Sep 2015 01:22 AM (IST)

जागरण संवाददाता, गोरखपुर

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अगर कहा जाए कि गोरखपुर मेडिकल कालेज सिर्फ नाम का है तो गलत नहीं होगा। गंभीर रूप से बीमार पूर्वी उत्तर प्रदेश, पश्चिमी बिहार व नेपाल के सैकड़ो मरीज यहां बेहतर इलाज की आस लिए हर रोज पहुंचते हैं, पर यहां आते ही उनकी उम्मीद टूट जाती है। वजह सुविधाओं के साथ ही सुपर स्पेशलिस्ट डाक्टरों का टोटा। पहले जो किडनी, हार्ट, न्यूरो आदि के सुपर स्पेशलिस्ट डाक्टर थे, वह भी एक-एक कर कालेज छोड़कर चले गए, पर न तो उनको रोकने की कोशिश की गई और न ही नई तैनाती। पूर्वाचल में भारी संख्या में किडनी, हृदय, लीवर आदि संबंधित रोगों से पीड़ित गरीब इलाज बिना दम तोड़ते हैं। यह सबकुछ सरकार की जानकारी में हैं। इसके बावजूद कार्यवाही नहीं होती।

किडनी के रोगों की बात करें मेडिकल कालेज में एकमात्र गुर्दा रोग विशेषज्ञ डा. अरविंद त्रिवेदी का तबादला साल 2006 में मेरठ मेडिकल कालेज के लिए कर दिया गया। तब से यह जगह खाली पड़ी है। ऐसे में किडनी के गंभीर रोगियों का इलाज यहां संभव नहीं है। ऐसे लोगों को निजी चिकित्सकों व अस्पतालों का सहारा लेना पड़ता है। जो साधन संपन्न हैं वह तो किसी तरह इलाज करा ले रहे हैं पर गरीबों के लिए यह बीमारी अभिशाप से कम नहीं। सही इलाज के अभाव में किडनी फेल्योर में तब्दील हो कर मौत का कारण बनते हैं। मूत्र मार्ग, किडनी में पथरी, प्रोस्टेट आदि के मरीज भी बड़ी तादाद में पहुंचते हैं पर कोई यूरोलॉजिस्ट या यूरोसर्जन नहीं है।

हृदय रोगों की बात करें तो इसके लिए भी मेडिकल कालेज में कोई विशेषज्ञ डाक्टर नहीं हैं। यहां लंबे समय से कार्यरत एकमात्र हृदय रोग विशेषज्ञ डा. मुकुल मिश्र साल 2012 के अंत में लखनऊ स्थित डा. राममनोहर लोहिया इंस्टीच्यूट आफ मेडिकल साइंसेज चले गए। इसके बाद से यहां किसी हृदय रोग विशेषज्ञ की तैनाती नहीं हुई। ऐसे मरीज भी यहां निजी चिकित्सकों के पास इलाज के लिए मजबूर हैं। वरिष्ठ न्यूरोलॉजिस्ट डा. एके ठक्कर भी साल 2012 में ही मेडिकल कालेज छोड़कर डा. राममनोहर लोहिया इंस्टीच्यूट आफ मेडिकल कालेज साइंसेज चले गए। तब से न्यूरोलॉजी विभाग बंद हो गया। एक न्यूरोलॉजिस्ट डा. पवन सिंह हैं पर उनकी ओपीडी हफ्ते में एक दिन होती है और वह मेडिसिन विभाग में तैनात हैं। वैसे तो प्लास्टिक सर्जन डा. नीरज नथानी भी कालेज में हैं पर आधुनिक उपकरणों व उच्च स्तरीय आपरेशन थिएटर के अभाव में इस विधा से संबंधित बड़ी सर्जरी मेडिकल कालेज में नहीं होती। पेट व लीवर के रोगी बड़ी तादाद में हर रोज मेडिकल कालेज पहुंचते हैं, पर यहां आज तक इसके लिए विशेषज्ञ डाक्टर की तैनाती नहीं हुई।

न्यूरोसर्जरी अलग विभाग है, जिसके विभागाध्यक्ष डा. विजय शंकर मौर्या हैं। इसके अलावा सर्जरी विभाग में भी न्यूरोसर्जरी के पूर्व विभागाध्यक्ष व वरिष्ठ न्यूरोसर्जन डा. राकेश सक्सेना व डा. अविजित सरकारी मौजूद हैं। यहां सर्जरी भी होती है पर जब जटिल मामलों में एडवांस सर्जरी का मामला आता है तो यह सुविधाओं के अभाव में संभव नहीं हो पाती।

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तब है यह हाल

यह हाल तब है कि गोरखपुर मेडिकल कालेज में हर साल करीब पचास हजार मरीज भर्ती होते हैं। इसमें किडनी, हार्ट, पेट, संक्रमण, दुर्घटनाओं में गंभीर रूप से घायल आदि के रोगी होते हैं। इनके इलाज के लिए सुपर स्पेशलिस्ट डाक्टरों की जरूरत होती है। ऐसे मरीज को सुविधाओं के अभाव में रेफर कर दिया जाता है।

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