जान बचाकर भागे मरीज, डाक्टर व नर्स
जागरण संवाददाता, गोरखपुर : मेडिकल कालेज में इलाज के लिए पहुंचे मरीजों के लिए शनिवार की दोपहर बे
जागरण संवाददाता, गोरखपुर :
मेडिकल कालेज में इलाज के लिए पहुंचे मरीजों के लिए शनिवार की दोपहर बेहद भारी पड़ी। भूकंप आने के बाद अफरा-तफरी व दहशत के बीच जो कुछ हुआ उसकी किसी ने कल्पना तक नहीं की थी। भूकंप की जानकारी होते मरीज, डाक्टर व नर्स सभी बदहवास इधर-उधर भागने लगे। अस्पताल से बाहर आकर ही राहत की सांस ली। बाहर मरीजों का हुजूम जमा हो गया। डाक्टरों के लाख समझाने के बावजूद लोग जब वार्डो में जाने को तैयार नहीं हुए तो बाहर ही उनका इलाज किया गया। यह सिलसिला करीब चार घंटे तक चला।
जब भूकंप आया तब रोजाना की तरह मेडिकल कालेज में मरीजों की भीड़ थी। वार्डो में डाक्टर राउंड पर रहे थे। यह सब कुछ सामान्य तरीके से चल रहा था कि अचानक भूकंप के झटके महसूस हुए। तेज कंपन से बेड, खिड़कियां, पंखे आदि हिलने लगे। लोगों को समझने में देर न लगी यह भूकंप के झटके हैं। इसके बाद तो अफरा-तफरी मच गए। चारों तरफ चीख-पुकार मच गई। नेहरू अस्पताल के ऊपरी मंजिलों पर स्थित वार्डो में मौजूद यह सोचकर दहशत में आ गए कि यहां से तत्काल बाहर जाना आसान नहीं है। इसके अलावा कोई रास्ता न देख लोग इधर-उधर भागने लगे। मरीज, परिजन से लेकर डाक्टर व नर्स सभी जल्द से जल्द बाहर आना चाहते थे। नतीजा भगदड़ मच गई। इस दौरान कई लोगों को चोटें भी आई। देखते-देखते नेहरू अस्पताल में सन्नाटा पसर गया।
बेड सहित मरीज लेकर भागे
सबसे मुश्किल उन परिजनों के लिए थी जिनके मरीज गंभीर थे और बेड से उठने के काबिल नहीं थे। कुछ लोग तो मरीजों को लेकर भागे जबकि कुछ पहिया लगे बेड के साथ बाहर निकल आए। नेहरू अस्पताल के दूसरी व तीसरी मंजिल पर स्थित वार्डो में भर्ती मरीजों के परिजन रैंप के सहारे बेड को नीचे उतार कर बाहर आ गए।
बोले लोग, खौफनाक था नजारा
अपने परिजनों को किसी तरह अस्पताल से बाहर लेकर आए लोगों के चेहरे पर दहशत व परेशानी साफ दिख रही थी। मजहर अपने 50 वर्षीय पिता सदरे आलम को अस्पताल की दूसरी मंजिल पर स्थिति नौ नंबर वार्ड से बेड के साथ नीचे लेकर आए थे। पुरानी इमरजेंसी के सामने खुले आसमान के नीचे बैठे थे। बताया कि ऐसा नजारा अपने जिंदगी में पहली बार देखा था। झटके जितने तेज थे उससे लग रहा था कि शायद ही अस्पताल से बाहर आ पाएंगे। चारों तरफ भगदड़ थी। लोग बदहवास भाग रहे थे। अकेले निकलना भी मुश्किल थे, लेकिन पिता को कैसे छोड़ते लिहाजा किसी तरह नीचे ले आए।
वार्ड संख्या पांच में भर्ती अपनी बहन को नीचे लेकर आए विनोद ने बताया कि जैसे ही भूकंप के झटके आए लोगों में दहशत फैल गई। सभी जान बचाने के लिए भागने लगे। किसी तरह बहन को नीचे ला पाए। इसी तरह टीबी वार्ड में भर्ती विरेंद्र को भी परिजन बेड सहित बाहर लाए थे। उसके परिजन नवमीनाथ ने कहा कि दशहत व भगदड़ में कुछ भी सूझ नहीं रहा था। किसी तरह बेड सहित बाहर आ पाए।
नेहरू अस्पताल के भर्ती अपनी मां गलरा खातून को बेड सहित बाहर लाकर उनकी बेटी नूरजहां नेहरू अस्पताल के मुख्य द्वार से दूर एक पेड़ के नीचे मौजूद थीं। करीब चार बजे तक वहीं थीं। पूछने पर बोली कि अंदर जाने में डर लगता है।
समझाते रहे डाक्टर पर अंदर नहीं गए मरीज
अस्पताल की जो छत कभी सुरक्षित होने का अहसास कराती थी वह आज दिलों में खौफ की वजह बनी हुई थी। नतीजा वार्डो से बाहर आए मरीज व परिजन वार्डाे में जाने को तैयार नहीं थे। यहां तक कि करीब तीन बजे खुद बीआरडी मेडिकल कालेज के प्राचार्य डा. केपी कुशवाहा, एसआइसी डा. रामयश यादव व अन्य अधिकारी अस्पताल के बाहर बैठे मरीजों से बार-बार अस्पताल वार्डो में जाने की अपील कर रहे थे। डाक्टर व नर्स समझा रहे थे लेकिन मरीजों पर उनकी बातों का कोई असर नहीं हुआ। यह स्थिति करीब चार से पाच घंटे तक रही। अस्पताल छोड़कर बाहर आए मरीजों का करीब चार घंटे तक बाहर की इलाज किया गया।