सावधान! बाजार में मौजूद हैं सूरत बिगाड़ने वाले रंग
जागरण संवाददाता, गोरखपुर : होली पर्व पर बाजार में सूरत बिगाड़ने की मुकम्मल तैयारी की गई है। नकली र
जागरण संवाददाता, गोरखपुर : होली पर्व पर बाजार में सूरत बिगाड़ने की मुकम्मल तैयारी की गई है। नकली रंगों का बाजार गर्म है। असली के नाम पर नकली बेचे जा रहे हैं। थोक की दुकानों पर असली-नकली रंग व अबीर-गुलाल के दामों में भारी अंतर है। लेकिन फुटकर दुकानों पर दोनों लगभग एक ही दाम में बेचे जा रहे हैं। ब्रांडेड रंगों व हर्बल के नाम से नकली रंगों की बड़े पैमाने पर खेप बाजार में उतारी गई।
जानकारों के अनुसार अभ्रक महंगा होने से बालू, चाक, खड़िया व चूना में रंग मिलाकर अबीर-गुलाल तैयार किए जा रहे हैं। इसी प्रकार रंगों में बड़े पैमाने पर मिलावट की गई है। इसका अवैध कारोबार राजेंद्र नगर, मिर्जापुर गोड़ियान व मिर्जापुर हल्दी गोदाम रोड पर धड़ल्ले से चल रहा है। थोक की दुकानों पर असली अबीर-गुलाल की कीमत थोक में 55-60 रुपये व फुटकर में 100-120 रुपये किलो तथा नकली अबीर-गुलाल की कीमत थोक में 25-30 रुपये किलो है। कुछ जगहों पर 55-60 रुपये किलो भी अबीर-गुलाल मिल रहे हैं। असली ब्रांडेड रंग थोक में ढाई-तीन सौ रुपये व नकली 80-120 किलो बिक रहे हैं लेकिन फुटकर दुकानों पर दोनों के दाम में कोई अंतर नहीं है, लिहाजा यह पहचान पाना मुश्किल है कि कौन सा रंग असली है और कौन नकली। सूत्र बताते हैं कि पैकिंग पर कुछ लिखा है और अंदर कुछ और है। गोरखपुर में ही तीन स्थानों पर धड़ल्ले से रंग बनाए जा रहे हैं और पैकिंग की जा रही है।
इस संबंध में सिटी मजिस्ट्रेट सतीश पाल ने कहा कि ऐसे स्थानों पर छापा मारकर कार्रवाई की जाएगी। फूड इंसपेक्टर के साथ पूरी टीम जाएगी और नमूने भी लिए जाएंगे। मिलावट करने वाले बख्शे नहीं जाएंगे।
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कैसे बनते हैं नकली रंग
दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय के रसायन शास्त्र विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर डा. उमेश नाथ त्रिपाठी के अनुसार कृत्रिम रंग बनाने में मेटल आक्साइड का प्रयोग किया जाता है। इसमें पड़ने वाली बहुत सारी भारी धातुएं कैंसर को जन्म देतीं हैं। कृत्रिम रंगों के उपयोग से त्वचा के रोग मुख्य रूप से होली के बाद उभरते हैं। हरे रंग में क्रोमियम आक्साइड, गुलाबी में कोबाल्ट आक्साइड, बैगनी में मालीविडनम आक्साइड, नारंगी में मरकरी आक्साइड, पीला में कैडमियम आक्साइड व सिल्वर में सिल्वर आक्साइड का उपयोग होता है। त्वचा पर इसका तत्काल प्रभाव एलर्जी, एरिटेशन, चकत्ते के रूप में होता है। बाद में घाव हो जाता है और वह कैंसर का रूप ले सकता है। उन्होंने कहा कि कृत्रिम रंगों से बेहतर है कि हम कीचड़ से होली खेल लें।
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किन रंगों का करें प्रयोग
दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय के रसायन शास्त्र विभाग के प्रो. निजामुद्दीन खान ने कहा कि फूलों से बनाए गए प्राकृतिक रंगों से होली खेलनी चाहिए। गुलाबी रंग गुलाब की पंखुड़ियों से, नारंगी रंग टेसू के फूलों से, हरा रंग पालक आदि से बनता है। इन्हीं रंगों से होली खेलना चाहिए। यदि यह संभव न हो तो सूखे रंग का प्रयोग करें। हरा को छोड़कर खाने वाले रंगों का भी प्रयोग किया जा सकता है। गेरू व हल्दी-दही से भी रंग तैयार किए जा सकते हैं।
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कैसे करें बचाव
-रंग खेलने से पहले नारियल या सरसो का तेल शरीर में लगा लें।
-बीच-बीच में चेहरे पर लगे रंगों को साफ करते रहें।
-रंग लगने के बाद सूर्य की रोशनी में न जाएं क्योंकि फोटो केमिकल रिएक्शन हो सकता है।
-छायादार स्थान पर होली खेलें।
-नहाते समय एक ही बार में बहुत रगड़कर रंग छुड़ाने की कोशिश न करें।