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यहा बसता है दृष्टिहीनों का परिवार

गोरखपुर : मोहन लाल सिंह दृष्टिहीन हैं। बेसिक शिक्षा विभाग में चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारी हैं। बताते

By Edited By: Published: Sun, 25 Jan 2015 12:30 AM (IST)Updated: Sun, 25 Jan 2015 12:30 AM (IST)

गोरखपुर : मोहन लाल सिंह दृष्टिहीन हैं। बेसिक शिक्षा विभाग में चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारी हैं। बताते हैं कि यात्रा के दौरान जब कभी किसी दृष्टिहीन को भीख मागते सुनता था तो मन में बड़ी तकलीफ होती थी। सोचता था कि क्या ये हमारे जैसे आत्म निर्भर नहीं हो सकते। यही सोचकर मा सरजू देवी के नाम से राजेंद्र नगर पश्चिमी के चौहान नगर तुराबारी टोले में अपने मकान में दृष्टिहीन बच्चों को जगह दी। अधिकाश बच्चे वे हैं जिनको यहा के राजकीय अंध विद्यालय में छात्रावास नहीं मिला। सुशील मऊ के हैं तो मनोज साहनी महराजगंज, रामदुलारे और धर्मेद्र कुमार गोस्वामी गोंडा के।

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इन बच्चों के रहने, भोजन, कपड़े और विस्तर की व्यवस्था वे खुद निश्शुल्क करते हैं। बच्चों को विद्यालय ले जाने और लाने का काम स्कूल की बस कर देती है। इस समय वहा 25 बच्चे रह रहें हैं। इनमें से अगर किसी बच्चे के पास कोई खास हुनर है तो वह साथियों को सिखाता भी है। मसलन रामभवन संगीत तो सुशील ब्रेल लिपि की जानकारी साथियों को देते हैं।

रामसिंह की पत्‍‌नी कमला देवी के लिए इन और अपने बच्चों में कोई फर्क नहीं है। बच्चे भी उसी हक से उनसे लड़ लेते हैं। फिर लाड़ भी जताते हैं। यह काम इतना आसान नहीं है। सभी बच्चे विकसित उम्र के हैं। खुराक अच्छी है। हक के साथ फरमाइश करते हैं। खाना बनाने के लिए दो भंडारी हैं। कपड़ा, बिस्तर के साथ भोजन सामग्री सबसे बड़ी समस्या है।

सब कुछ की व्यवस्था करने में रामसिंह का वेतन, पत्नी के सौंदर्य प्रसाधन की दुकान से होने वाली आय खत्म हो जाती है। छात्रावास के लिए भवन बनाने और अन्य संसाधनों को जुटाने के लिए उनका कुछ खेत भी बिक गया। बावजूद इसके वे हिम्मत नहीं हारने वाले। कहते हैं कि यह मेरे अपने बच्चे जैसे हैं। फिलहाल कुछ लोग नियमित दानदाता हैं तो कुछ कभी-कभार वाले।

मोहनलाल संस्थान को जूनियर हाई स्कूल में तब्दील करना चाहते हैं। इच्छुक बच्चों को हुनरमंद बनाने और कंप्यूटर प्रशिक्षण के लिए भी वे समाज की मदद से आधारभूत संरचना विकसित करना चहते हैं। संसाधनों का टोटा है, भवन के लिए बनाए गए सीमेंट के पाए उम्मीद बनकर खड़े हैं।


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