मजहब-ए-इस्लाम में हंगामे की कोई जगह नहीं
जागरण संवाददाता, गोरखपुर : इस्लामी कैलेंडर का पहला महीना मोहर्रम शुरू हुए छह दिन हो गए हैं। शोहदा-ए-
जागरण संवाददाता, गोरखपुर : इस्लामी कैलेंडर का पहला महीना मोहर्रम शुरू हुए छह दिन हो गए हैं। शोहदा-ए-कर्बला की याद में जुलूस निकाले जा रहे हैं। जुलूसों में पारंपरिक ढोल-ताशों के अलावा अब लाउड स्पीकर व डीजे भी जुड़ गए हैं। इससे होने वाले शोर को कैसे कम किया जाए इसके लिए मुस्लिम समाज के बुद्धिजीवी आगे आए हैं। जागरण ने जब इस मुद्दे पर मुस्लिम समाज के प्रबुद्ध लोगों से बातचीत शुरू की तो उन्होंने मोहर्रम जुलूसों में बढ़ते शोर पर अपनी चिंता जाहिर की और अपील की कि लोग इसे परंपरा और शांति-सद्भाव के साथ मनाएं। उन्होंने कहा कि मजहब-ए-इस्लाम में हंगामे की कोई जगह नहीं है। जुलूस में शामिल लोग इससे बचें और सबका ख्याल रखते हुए शांति व सद्भाव से जुलूस निकालें।
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शांति पूर्वक निकालें जुलूस:
शहर-ए-काजी मुफ्ती मौलाना वलीउल्लाह ने कहा कि मजहब-ए-इस्लाम में शोर शराबे वाले ऐसे जुलूस और ऐसे हंगामे की कोई जगह नहीं है। यहां के रीति-रिवाजों को देखते हुए बहुत से लोगों ने शोरशराबा जैसी चीजों को अपना लिया है। मजहब-ए-इस्लाम के लिहाज से जोर-जोर आवाज में बाजा बजाना और ऐसे हालात पैदा करने की मनाही जो मरीजों व खासतौर से दिल के मरीजों को तकलीफ पहुंचाए। अगर इमामबाड़े के लोग और मुतवल्लियान कमेटी आपस में बैठकर इस चीज पर गौर करें तो बहुत अच्छा अंदाज इनके जुलूस का और लोगों के आराम का भी निकल सकता है।
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सबकी सुविधा का रखें ख्याल:
इमामबाड़ा इस्टेट मियां बाजार के सज्जादानशीन अदनान फर्रूख शाह (मियां साहब) ने कहा कि जुलूसों के दौरान सबकी सुविधा का ख्याल रखा जाना चाहिए। पहले जिस तरह जुलूस निकाले जाते थे, उसी तरह परंपरागत तरीके से सादगी के साथ जुलूस निकाले जाएं। अकीदत में प्रदर्शन की कोई जगह नहीं है, इसे सबको समझना चाहिए। अपने पास-पड़ोस का ख्याल रखना भी हमारा नैतिक कर्तव्य है। करीब एक दशक पूर्व इस शहर में सभी जुलूस शांति पूर्वक निकलते थे। इस बार भी उसी तरह जुलूस निकालें, लाउडस्पीकर व डीजे से बचें, क्योंकि शोर व हंगामा किसी मजहब का अंग नहीं हो सकता। इससे हमारे पर्यावरण को भी नुकसान पहुंचता है। भाईचारे को कायम रखकर शांतिपूर्वक अपना जुलूस निकालना होगा।
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अवाम के आराम में खलल न डालें:
शाही जामा मस्जिद कमेटी उर्दू बाजार के सचिव अब्दुल्लाह ने कहा कि हमारी तो सभी से अपील है कि शांति पूर्वक अकीदत के साथ मोहर्रम का जुलूस निकालें, शोर-शराबा से बचें। इससे बीमार, विद्यार्थी, मुसाफिरों व आम अवाम को परेशानी होती है। पहले जैसे इस शहर में जुलूस निकलते थे, वैसे ही परंपरागत तरीके से सद्भाव व सौहार्द के साथ जुलूस निकालने की जरूरत है। बाद में धीरे-धीरे इनमें लाउडस्पीकर व डीजे आदि का समावेश हुआ, अब तो इनका प्रयोग इतना ज्यादा होने लगा है कि जिधर से जुलूस गुजरते हैं वहां के आसपास के मरीज, विद्यार्थी व आम अवाम असुविधा महसूस करती है। अपनी अकीदत के साथ रहे और इससे बचें।
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शोर बंद होना चाहिए:
प्रख्यात चिकित्सक डा. अजीज अहमद ने कहा कि धार्मिक मामलों की प्रतिस्पर्धा ने धीरे-धीरे इस शहर को शोर के आगोश में कर दिया है। पहले जैसे अन्य धर्मो के त्योहार शांति पूर्वक सादगी के साथ मनाए जाते थे, वैसे ही शांति पूर्वक मोहर्रम का जुलूस भी निकलता था। जैसे-जैसे अन्य धर्मो के त्योहारों में लाउडस्पीकर, डीजे आदि का चलन बढ़ा, वैसे ही मोहर्रम के जुलूसों में भी बढ़ता गया, लेकिन यह प्रतिस्पर्धा शहर की सेहत के लिए ठीक नहीं है। इसे रोकना होगा। प्रशासन को भी चाहिए सभी लोगों से बातचीत करके इस पर रोक लगाए। यह बंद होना चाहिए। इसके लिए आम अवाम को भी जागरूक होने की जरूरत है। शांति व सद्भाव के साथ जुलूस निकालें, हंगामे से बचें।