प्रकाश से नहाई अमावस की रात
जागरण संवाददाता, गोरखपुर : दीपावली पर्व पर जनपद ने गुरुवार को त्रेता युग की उस खुशी को दोहराने में क
जागरण संवाददाता, गोरखपुर : दीपावली पर्व पर जनपद ने गुरुवार को त्रेता युग की उस खुशी को दोहराने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी, जब भगवान राम लंका विजय के बाद वापस अयोध्या लौटे थे। अमावस की रात समूचा महानगर सतरंगी रोशनी में नहाया हुआ था। चारो तरफ उल्लास व उत्सव का माहौल था। बच्चों व बड़ों ने पटाखे व फुलझड़ियां छोड़ कर खुशी मनाई। घरों में विविध पकवान बने। लक्ष्मी-गणेश का पूजन किया गया। घरों, कुआं, तालाब, बावली, नदी व देव स्थानों पर दीये जलाए गए। घर से लेकर सड़क तक जगमग-जगमग जल रहे दीपों की पंक्तियां, सतरंगी विद्युत झालरें व बल्ब स्वर्णिम आभा बिखेर रहे थे। लोगों ने एक-दूसरे को दीपावली की शुभकामनाएं दी। लोगों ने एसएमएस व ई-मेल, ह्वाटसएप से भी शुभकामना संदेश एक दूसरे को दिए। एक-दूसरे के घर उपहार भी भेजे गए।
खुशियों का पर्व दीपावली परंपरागत रूप से आस्था, श्रद्धा व उल्लास के साथ मनाया गया। घरों में सुबह पकवान बनाए गए। दिन भर सजावट की गयी और शाम को आंगन में जगमग- जगमग दीपों के साथ गणेश-लक्ष्मी की विधि-विधान से पूजा की गयी। नैवेद्य चढ़ाए गए। इस दौरान छोटे बच्चे कमर में घंटियां बांधकर खूब नाचे। पटाखा फोड़ने का सिलसिला तो दोपहर बाद ही शुरू हो गया था लेकिन शाम होते ही दीप जलने के बाद पटाखों की आवाज तीव्र हुई और अनवरत इसकी गूंज रात 12 बजे तक सुनाई पड़ती रही। कहीं आकाश में राकेट दग रहे थे तो कहीं फुलझड़ियां सतरंगी रोशनी बिखेर रही थीं। ऐसी भी फुलझड़ियां थीं जो छूटने के बाद ऊपर जाकर राम लिख देती थीं। पूरा शहर मस्ती के आलम में था।
कार्तिक कृष्ण पक्ष की अमावस्या को साधक कैसे चूक जाते। साधना के लिए उत्तम इस पर्व पर राप्ती नदी के किनारे महानिशा काल में कुछ लोग हवन करते तो कुछ ध्यान में बैठे देखे गए। बच्चों ने पढ़ाई कर अमावस्या जगाई। दुकानों में खाते-बही व कम्प्यूटर की पूजा की गयी। कहा जाता है कि समृद्धि के इस पर्व पर लक्ष्मी का आगमन होता है।