धीरे-धीरे जहरीली हो रही राप्ती
जागरण संवाददाता, गोरखपुर : दुर्गा प्रतिमाओं के विसर्जन के बाद राप्ती के जल में खतरनाक रसायनों की मात्रा मानक से 75 फीसद ज्यादा बढ़ जाती है। इसका खुलासा विश्वविद्यालय के पर्यावरण विभाग के विद्यार्थियों द्वारा किए गए शोध में हुआ।
चार साल पूर्व प्रो. सीपीएम त्रिपाठी व प्रो. डीके सिंह के नेतृत्व में विद्यार्थियों ने प्रतिमा विसर्जन के पूर्व व बाद में राप्ती नदी के जल में प्रदूषण की मात्रा की जांच की थी। विसर्जन पूर्व जांच में विश्व स्वास्थ्य संगठन के मानक के आसपास पानी में रसायन मिले थे लेकिन विसर्जन के बाद की जांच में इनकी मात्रा मानक से पचहत्तर फीसद ज्यादा पाई गई। प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की जांच में भी राप्ती नदी के जल में लगातार प्रदूषण बढ़ने के संकेत मिल रहे हैं। महानगर का कचरा व प्रतिमाओं के साथ नदी में जा रहे पेंट व सिंथेटिक रंग राप्ती को जहरीला बना रहे हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि यदि यह स्थिति रुकी नहीं तो आने वाले दिनों में जीवन संकट में पड़ जाएगा।
पानी में मूलरूप से आर्सेनिक, कैडमियम, क्रोमियम व लेड की अधिक मात्रा काफी खतरनाक होती है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक आर्सेनिक .01 मिलीग्राम प्रति लीटर तथा कैडमियम, क्रोमियम व लेड की मात्रा .05 मिलीग्राम प्रति लीटर तक होनी चाहिए। विश्वविद्यालय के विद्यार्थियों द्वारा प्रतिमाओं के विसर्जन के पूर्व की गई जांच में यह मात्रा मानक से 15-20 प्रतिशत अधिक थी। जबकि विसर्जन बाद की गई जांच में इन खतरनाक रसायनों की मात्रा पांच गुना बढ़ गई थी। क्षेत्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की जांच में राप्ती जल में 10 अक्टूबर 2013 को पीएच मान 8.02, घुलित आक्सीजन की मात्रा 7.4 मिलीग्राम प्रति लीटर, बायोलाजिकल आक्सीजन डिमांड 3 मिलीग्राम प्रति लीटर, केमिकल आक्सीजन डिमांड 12 मिलीग्राम प्रति लीटर, क्लोराइड 18 मिलीग्राम प्रति लीटर, कठोरता 172 मिलीग्राम प्रति लीटर थी, जो मानक से अधिक है। इन्हीं तत्वों की इस वर्ष गत 4 अगस्त को जांच की गई तो इनकी मात्रा में और वृद्धि पाई गई। पीएच मान व घुलित आक्सीजन घटकर 7.2 हो गया है। इनका कम होना खतरनाक है। बायोलाजिकल आक्सीजन डिमांड बढ़कर 4.4 व केमिकल आक्सीजन डिमांड बढ़कर 22 मिलीग्राम प्रति लीटर हो गई। क्लोराइड की मात्रा भी बढ़कर 18 से 40 हो गई। कठोरता की मात्रा प्रति लीटर 172 से बढ़कर 186 हो गई। ये स्थितियां राप्ती नदी के जल में लगातार बढ़ते प्रदूषण की ओर संकेत कर रही हैं।
प्रतिमाओं में करें हर्बल रंगों का प्रयोग
देवी प्रतिमाओं में हर्बल रंगों का इस्तेमाल किया जाना चाहिए, क्योंकि ये इको फ्रेंडली होते हैं। कृत्रिम रंगों व पेंट में बहुत सारे खतरनाक रसायन होते हैं जो नदियों के इको सिस्टम (पारिस्थितिकी तंत्र) के लिए खतरनाक होते हैं। यह नदी के पारिस्थितिकी तंत्र को नष्ट कर देते हैं। साथ ही मूर्तियों के माध्यम से हम नदी में इतनी मिट्टी डालते हैं कि नदी की गहराई लगातार कम होती जाती है। खतरनाक रसायनों की मात्रा बायोमैगनीफिकेशन के द्वारा लंबे समय तक बनी रहती है जो नदी के जलीय जंतु व पौधों को प्रभावित करती है। हर वर्ष इनकी मात्रा शहर व उद्योगों के अपजल व कूड़ा-कचरा तथा प्रतिमाओं के विसर्जन से बढ़ती जाती है। यदि समय रहते लोग जागरूक नहीं हुए तो सबसे बड़ा खतरा मानव जीवन के लिए होगा।
-प्रो. सीपीएम त्रिपाठी, निदेशक पर्यावरण विभाग दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय