यह सरकारी व्यवस्था का मामला है!
जागरण संवाददाता, गोरखपुर: सदर तहसील के बोक्टा के रहने वाले विंध्याचल की दाहिनी कलाई काम नहीं करती। घुटने भी टेढ़े हैं। बायें हाथ में लाठी के सहारे कुछ कदम किसी तरह चल ले लेते हैं अर्थात अशक्त हैं। बोक्टा से शहर तक आना-जाना उनके लिए बहुत ही कठिन और जोखिम भरा है। किसी की मदद के भरोसे ही उनकी राह आसान हो पाती है। अशक्त वह बचपन से हैं, इसलिए विकलांग पेंशन के वास्तविक पात्र हैं। शासन- प्रशासन ने उनकी पेंशन मंजूर भी कर दी है लेकिन सरकारी व्यवस्था का हाल ऐसा कि समय से पेंशन की गारंटी ही नहीं है। लगभग दस माह से पेंशन के लिए वह विकलांग कल्याण विभाग का चक्कर लगा रहे हैं। सोमवार को भी वह वहां पहुंचे थे, विभाग का एक बार फिर उन्हें रटा-रटाया जवाब मिला जल्दी पहुंच जाएगी पेंशन, बैंक पर पता करते रहिए। निराश होकर विकास भवन के पोर्टिको की फर्श पर बैठे विन्ध्याचल ने बताया कि सेंट्रल बैंक में उनका खाता है, वहां जाता हूं तो विभाग में देखने को कहा जाता है और यहां बैंक में जाने को। देखिए कब मिलती है पेंशन।
दरअसल विंध्याचल तो एक नजीर हैं, उनको देखकर जनकल्याण की सरकारी पेंशन की योजनाओं का लाभ वास्तविक पात्र लाभार्थियों तक पहुंचने की हकीकत का अंदाजा लगाना कठिन नहीं है।