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अब उभरा दस साल पुराना जख्म

By Edited By: Published: Fri, 29 Aug 2014 02:17 AM (IST)Updated: Fri, 29 Aug 2014 02:17 AM (IST)
अब उभरा दस साल पुराना जख्म

जागरण संवाददाता, गोरखपुर: बिहार की छपरा निवासी पचास वर्षीय राजकुमारी देवी पीठ, कमर दर्द व दोनों पैरों के सुन्न होने की शिकायत लेकर चिकित्सक के पास पहुंचीं। जब उनकी बीमारी के बारे में विस्तार से पूछा गया तो यह बात सामने आई कि दस साल पहले जब वह चालीस साल की थीं तब अपने घर की छत से गिर गई थीं। इससे उनके रीढ़ की दो हड्डियां टूट गई। लेकिन स्थानीय चिकित्सक इसे समझ नहीं पाए और उनको दो महीने तक आराम की सलाह देने के साथ कैल्शियम व दर्द निवारक दवाएं लिख दीं। इससे मरीज को थोड़ा आराम तो हो गया लेकिन बीमारी बनी रही। बीच-बीच में कुछ परेशानी हुई लेकिन मरीज से इसे गंभीरता से नहीं लिया। इसी तरह दस साल बीत गए। उम्र बढ़ने के साथ हड्डियों में कमजोरी से समस्या बढ़ गई। जब मरीज की पीठ व कमर दर्द की शिकायत बढ़ गई। पैर सुन्न होने लगे, टूटी हुई रीढ़ की हड्डियों के झुकने से कूबड़ की शिकायत होने लगी तो वह आर्थोसर्जन डा. ऋतेश कुमार पास पहुंचीं। उन्होंने जांच के बाद पाया कि यदि समय रहते रीढ़ की हड्डियों की सर्जरी कर ठीक नहीं किया गया तो मरीज को कमर के नीचे लकवा मार सकता है।

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राजकुमारी देवी का मामला सिर्फ एक उदाहरण है। पूर्वाचल के विभिन्न सरकारी अस्पतालों में भारी तादाद में ऐसे मरीज इलाज के लिए पहुंचते हैं जिनकी रीढ़ की हड्डी किसी दुघर्टना में टूट जाती है। ऐसे मरीजों को सर्जरी की जरूरत होती है लेकिन इसकी सुविधा यहां नहीं है। ऐसे मरीजों को लखनऊ या दिल्ली रेफर कर दिया जाता है। जो जागरूक हैं या जिनकी आर्थिक स्थिति ठीक है वह तो किसी तरह दूसरे शहरों के बड़े अस्पतालों में जाकर इलाज करा लेते हैं, लेकिन जिनके पास संसाधन नहीं है उनकी बीमारी बिगड़ जाती है। यदि गोरखपुर में एम्स जैसा अस्पताल खुल जाए तो इस तरह का दर्द झेलने वाले लोगों की मुश्किल आसान हो जाएगी।

यहां इलाज के नही इंतजाम

विशेषज्ञों के मुताबिक इस तरह के मरीजों के इलाज के लिए अत्याधुनिक संसाधनों से लैस आपरेशन थियेटर होना चाहिए। आर्थोसर्जन डा. ऋतेश कुमार के मुताबिक ऐसे मरीज की रीढ़ की हड्डियों के बीच बोन सिमेंट व मेटल की जाली लगाई जाती है जिससे रीढ़ की हड्डी अपने वास्तविक रूप के साथ शरीर का भार संभालने लायक हो सके। ऐसे मरीजों को लखनऊ व दिल्ली के अस्पतालों में रेफर करने पर वह बड़े शहर में जाने से बचते हैं और स्थानीय इलाज कराते रहते हैं। जो मरीज एम्स तक पहुंचते हैं उनको भी वहां आपरेशन के लिए छह महीने से साल भर की डेट मिलती है। सर्जरी में देरी से वह परिणाम नहीं मिलते जो समय से इलाज से मिल सकते हैं। ऐसे में यदि गोरखपुर में एम्स खुल जाए तो ऐसे मरीजों का समय से इलाज संभव हो सकेगा।


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