शैक्षिक क्रांति के अग्रदूत थे महंत दिग्विजयनाथ
जागरण संवाददाता, गोरखपुर : 'दिग्विजयनाथ महाराज ने अपने कृतित्व -व्यक्तित्व से तत्कालीन युग की शैक्षिक, सामाजिक, राजनैतिक धार्मिक, आध्यात्मिक व सांस्कृतिक धारा को उत्कृष्टता के नये शिखर तक पहुंचाया ब्रह्यलीन मंहत ने मंहत परम्परा की वैचारिक चिंतनधारा के प्रवाह को परिवर्तित करते हुए उसे लोकोपकारी व राष्ट्रनिष्ठ बनाया। मंहत देश की दुर्दशा का प्रमुख कारण दूषित शिक्षा नीति को मानते थे। उनकी मान्यता थी कि शिक्षा सामाजिक आर्थिक व सास्कृतिक उत्थान का सबसे सबल साधन है। मैकाले की शिक्षा नीति उस समय देश के नौजवानों के अंदर हीनता का भाव भरने का कार्य कर रही थी।' उक्त विचार राष्ट्र-संत दिग्विजयनाथ स्मृति व्याख्यानमाला के उद्घाटन समारोह में मुख्य अतिथि के रूप में प्रो. अशोक कुमार, कुलपति गोरखपुर विश्वविद्यालय ने व्यक्त किए। उन्होंने विद्यार्थियों का आह्वान करते हुए कहा कि संघर्ष व चुनौतिया जीवन को निखारती हैं, उनसे पार पाते हुए आगे बढ़ने व राष्ट्र सेवा के लिए तत्पर रहने की जरूरत है। शिक्षा के माध्यम से संस्कृतनिष्ठ राष्ट्रभक्त नागरिक तैयार करना ब्रह्मलीन संत के प्रति सच्ची श्रद्धाजलि होगी। कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे पूर्वाचल विश्वविद्यालय जौनपुर के पूर्व कुलपति प्रो. उदय प्रताप सिंह ने कहा कि गोरखपुर विश्वविद्यालय भी मंहत के शैक्षिक प्रयासों के एक स्मारक के रूप में आज हमारे सामने विद्यमान है। मंहत दिग्विजयनाथ का अन्त:करण समस्त प्रकार के मानवीय मूल्यों यथा - सदाशयता, सहिष्णुता, विनम्रता, उदारता, विशालता, तरलता, स्निग्धता, तत्परता, परोपकार, दया, सेवा-भावना इत्यादि से परिपूर्ण था। लोक-हित के कायरें के प्रति वे पूर्णत: समर्पित रहते थे। इससे पूर्व मुख्य अतिथि का स्वागत महाविद्यालय के नवागत प्राचार्य डा. शेर बहादुर सिंह ने स्मृति चिह्न देकर किया। अतिथिगण का स्वागत व्याख्यानमाला के संयोजक डा. शैलेन्द्र प्रताप सिंह तथा आभार ज्ञापन महाविद्यालय के प्राचार्य ने किया और कहा कि हम मंहत दिग्विजयनाथ के व्यक्तित्व एवं कृतित्व से देश के भावी पीढी को अवगत कराएं जिससे कि उनका राष्ट्रवादी चरित्र एवं चेतना प्रदीप्त हो सके। कार्यक्रम का संचालन डॉ. श्रीभगवान सिंह ने किया