खाद कारखाने की चिमनियों से निकलेगा धुंआ!
जागरण संवाददाता, गोरखपुर :
पिछले 23 वर्षो से बंद, यहां का खाद कारखाना लोगों के लिए सबसे बड़ा सवाल रहा है। हर चुनाव और संसद के हर सत्र में बहस का मुद्दा बनना इसका सबूत है। बंदी के बाद से अब तक के सभी प्रधानमंत्री और केंद्रीय उर्वरक एवं रसायन मंत्री इसे दुबारा चलाने भरोसा देते रहे हैं, पर 1998 में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार को छोड़ दें तो कभी गंभीर पहल नहीं हुई।
लेकिन लगता है कि केंद्र की मौजूदा सरकार इसे लेकर गंभीर है। गुरुवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा रांची में बरौनी से जगदीशपुर तक पाइप लाइन बिछाने का जिक्र करना इसका सबूत है। बात इसलिए और भी गंभीर है क्योंकि 14 अगस्त को प्रधानमंत्री कार्यालय ने केंद्रीय पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस और उर्वरक मंत्रालय के सचिवों की बैठक बुलाई थी। इसमें बंद पड़े खाद कारखानों को चलाने के लिए गैस की आपूर्ति ही मुख्य मुद्दा था। मालूम हो कि देश में गोरखपुर समेत कुल आठ खाद कारखाने बंद हैं। इसमें से 5 फर्टिलाइजर कार्पोरेशन आफ इंडिया और 3 हिंदुस्तान फर्टिलाइजर कार्पोरशन के हैं।
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सरकार की गंभीरता से
योगी भी सहमत
सदर सांसद योगी आदित्यनाथ भी इस पहल की गंभीरता से सहमत हैं। बताया कि पिछले दिनों इस मसले पर मैं पेट्रालियम एवं प्राकृतिक गैस मंत्री से मिला था। उनसे हुई वार्ता के आधार पर ही मैंने बताया था कि करीब 10 हजार करोड़ की लागत से जगदीशपुर से बरौनी तक पाइप लाइन बिछाने के लिए मंत्रालय सैद्धांतिक रूप से सहमत हो चुका है। इससे रास्ते में पड़ने वाले बंद खाद कारखाने तो चालू होंगे ही। गोरखपुर समेत कई शहरों में रसोई गैस की आपूर्ति पाइप लाइन से होने पर रसोई गैस की किल्लत और कालाबाजारी से भी मुक्ति मिलेगी। 24 अगस्त को मेरी इसी मुद्दे पर दोनों मंत्रालयों के अधिकारियों के साथ बैठक होनी है। उनके मुताबिक बंद कारखाने अब तभी चल सकते हैं जब उनको गैस की आपूर्ति सुनिश्चित हो। यह काम गैस एथारटी आफ इंडिया लिमिटेड (जीएआइएल) को करना है। यह पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस मंत्रालय के अधीन आता है। इसके बाद का काम उर्वरक मंत्रालय का है। दोनों मंत्रालयों का इस बाबत बेहतर तालमेल और प्रधानमंत्री की निजी रुचि से उम्मीद करिए कि बंद पड़े खाद कारखानों की चिमनियां शीघ्र धुंआ उगलेंगी।
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एक नजर में गोरखपुर खाद कारखाना
-1969 में उत्पादन में आया। स्वास्तिक छाप यूरिया किसानों की पसंदीदा ब्रांड थी। शुरू में इसका उत्पादन 570 टन रोज का था। 1976 में इसे बढ़ाकर 750 टन कर दिया गया। 1990 में एक हादसे के बाद से यह बंद है। करीब 1400 एकड़ में स्थित यह कारखाना सड़क और रेल मार्ग से भी जुड़ा है।